मध्यप्रदेश : नागरिकों की मजबूरी और मल्हार गाती सरकारें | EDITORIAL by Rakesh Dubey

भोपाल। किसी ने शायद मध्यप्रदेश के लिए ही यह कहा है कि --------- में, हम गायें मल्हार | 63 साल बाद मल्हार गायन हो रहा है, हकीकत यह है कि एक नवम्बर 1956 को बने मध्यप्रदेश के खाते में विकास कम और पिछड़ापन अधिक है | एक किस्से के साथ शुरुआत | दृष्टिकोण देखिये और समझिये, पिछले दिनों इंदौर के उद्योग पतियों ने बिडला समूह के सामने इंदौर में बिडला इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नालजी और साइंस पिलानी की शाखा को खोलने की मांग रखी | यह मांग प्रदेश के मुखियाओं का विकास के प्रति दृष्टिकोण की कहानी कहती है | जी डी बिडला कुमारमंगलम बिडला के पितामह थे, वे पं० द्वारका प्रसाद मिश्र के कार्यकाल में जी डी बिडला ऑक्ट्राय में छूट के बदले में बिट्स पिलानी की शाखा नागदा में खोलना चाहते थे | 

पं द्वारका प्रसाद मिश्र ने अपने सलाहकारों से सलाह की और जी डी बिडला के प्रस्ताव को लौटा दिया | 63 साल में सरकार ने अपने और राजनेताओं ने अपने इंजीनियरिंग कालेजों की भीड़ प्रदेश में खड़ी कर दी | अब वे कालेज शनै: शनै: बंद हो रहे हैं | क्यों ? गुणवत्ता नहीं है | पं मिश्र से लेकर वर्तमान तक 20 मुख्यमंत्री हो चुके है, [दो बार और तीन बार रहने वालों को भी एक बार ही गिना है] सब मिलकर बिट्स पिलानी सा एक भी इंजिनियरिंग सरकारी और निजी क्षेत्र में नहीं खोल पाए | अब बिडला की तीसरी पीढ़ी से प्रदेश के उद्ध्योगपति मांग कर रहे हैं| सारी सरकारें पूंजीपतियों को सुविधा बाँटती रही और आगे भी बाँट रही है, बदले में उनका दृष्टिकोण चुनावी चंदा, पार्टी फंड और निजी आनंद के अवसर से ज्यादा कुछ नहीं था और है |

मध्यप्रदेश विधानसभा में सरकार द्वारा पेश आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार मध्यप्रदेश में प्रति व्यक्ति आय देश एवं समान परिस्थिति वाले राज्यों की तुलना में कम है। मध्यप्रदेश को कम प्रति व्यक्ति आय वाले राज्यों की श्रेणी में रखा जाता है। वित्त वर्ष 2018-19 के प्रचलित मूल्य पर प्रदेश की प्रति व्यक्ति आय 90 हजार 998 रूपए थी, जो देश की प्रति व्यक्ति आय एक लाख 26 हजार छह सौ 99 रूपयों का मात्र कुछ प्रतिशत है। देश के कुछ प्रमुख राज्यों की प्रति व्यक्ति आय मध्यप्रदेश से अधिक है। इसी सर्वेक्षण के मुताबिक देश में गरीबी रेखा के नीचे जीवनयापन करने वाले व्यक्तियों का अनुपात 21.93 प्रतिशत और मध्यप्रदेश में 31.65 प्रतिशत है। देश के एक दो राज्यों को छोड़कर मध्यप्रदेश में सर्वाधिक लोग गरीबी रेखा के नीचे है, जिनकी संख्या दो करोड़ 34 लाख से अधिक है। 

अब पिछड़ेपन की बानगी, राज्य में केवल 30 प्रतिशत लोग खाना बनाने के लिए स्वच्छ ईंधन का इस्तेमाल करते हैं।राज्य में सिर्फ 23 प्रतिशत घरों में नल द्वारा पानी आता है। कृषि मजदूरी की दर 210 रूपए देश के अन्य राज्यों की तुलना में न्यूनतम है।केवल मनरेगा में ही प्रदेश के 68.25 लाख परिवार दर्ज हैं, जो व्यापक गरीबी का सूचक है। इसे क्या कहेंगे ? ये आंकड़े सरकारी है और विधानसभा में मौजूद हैं | राज्य में प्रति हजार जीवित जन्म पर शिशु मृत्यु दर 47 है, जो देश के अन्य राज्यों की तुलना में सर्वाधिक है। राष्ट्रीय स्तर पर शिशु मृत्यु दर 33 प्रति हजार है। राज्य में मातृत्व मृत्यु दर प्रति एक लाख प्रसव पर 173 है, जो राष्ट्रीय दर 130 और अधिकतर राज्यों की तुलना में बहुत अधिक है। राज्य में पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चों में मृत्यु दर 77 (वर्ष 2011 के बाद के आंकड़े अनुपलब्ध ) है, जो कि देश के अन्य राज्यों की तुलना में असम को छोड़कर सर्वाधिक है।प्रदेश में 52.4 प्रतिशत महिलाएं खून की कमी से पीड़ित हैं। प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में चिकित्सकों, नर्सों और अन्य स्वास्थ्य कर्मचारियों के पद बड़ी संख्या में रिक्त हैं। किसानों द्वारा आत्महत्या कर्जमाफी के बाद जारी है | अपराध के आंकड़े, राज्य की लाज बचाने के लिए नहीं लिखे हैं | इसके बाद भी सरकार की इच्छा मल्हार गाने की है तो गाईये, आप सरकार है | विकल्प के अभाव में नागनाथ या सांपनाथ में से किसी को चुनना नागरिकों की मजबूरी है |
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श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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rakeshdubeyrsa@gmail.com
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