आईआईटी खडगपुर से बीटेक एके सिन्हा बताते हैं कि ट्रैक्टर के पिछले पहिये बड़े होने का कारण समझने के पहले यह समझना जरुरी है कि ट्रैक्टर आखिर है क्या और यह अन्य सड़क वाहनों से कैसे अलग है।
ट्रैक्टर - ट्रैक्शन शब्द से बना है - जिसका अर्थ है खींचना।
ज्यादा खींचने के लिए - कोई जरुरी नहीं है कि - इंजन ही ज्यादा शक्तिशाली हो - गियर और वाहन के वजन वितरण में बदलाव कर भी यह किया जा सकता है।
आम तौर पर लोगों में बड़ी गलतफहमी है कि - ट्रैक्टर का इंजन बहुत शक्तिशाली होता है - पर ऐसी बात नहीं है। एक आम कार का इंजन - ज्यादातर ट्रैक्टर के इंजन से ज्यादा powerful होता है।
आप जानकर चौंक जाएंगे कि बलेनो कार का इंजन (90 हार्सपावर) जॉन डिअर ट्रैक्टर 5055 E के इंजन (55 हार्सपावर) से ज्यादा शक्तिशाली होता है। इस तुलना में हम देखते हैं कि, ट्रैक्टर की शक्ति - कार के इंजन का मात्र 2 तिहाई है, पर टॉर्क ( पहिया घुमाने या खींचने की क्षमता ) डेढ़ गुणा ज्यादा है।
ट्रैक्टर का इंजन कमजोर होता है तो वो ज्यादा बोझ कैसे उठाता है
ऐसा इस लिए क्यूंकि - ट्रैक्टर - ज्यादा ट्रैक्शन या टार्क पैदा करता है - अपनी स्पीड की क्षमता गँवा कर जो कि - कार के स्पीड का मात्र छठा भाग है। सरल शब्दों में यह कि इंजन की ताकत बोझ उठाने में खर्च की जाती है, स्पीड में नहीं।
इसीलिए ट्रैक्टर में स्पीड घटाने का अनुपात कार की तुलना में 40 गुणा है।
कोई भी वाहन चाहे वह रोड पर चलने वाला हो या रेल पर चलने वाला इंजन हो - उसके डिज़ाइनर तय करते हैं कि - उसे ज्यादा ट्रैक्शन / टार्क पैदा करना है या ज्यादा स्पीड।
सो एक समान हार्सपावर वाले इंजन से ट्रैक्टर भी बना सकते हैं, ट्रक भी या रेसिंग कार भी। उसी तरह एक समान हार्सपावर वाले इंजन से मालगाड़ी का इंजन भी बना सकते हैं जिसकी स्पीड 80 से ज्यादा नहीं होगी पर जो 10,000 टन वजन खींच ले या हाईस्पीड यात्री ट्रेन का इंजन जिसकी स्पीड 300 किलोमीटर/घंटा हो पर 2500 टन से ज्यादा वजन नहीं खींच पाए।
यदि हमें -ट्रैक्टर चाहिए तो स्थिर शक्ति वक्र के सबसे ऊपरी भाग पर काम करने योग्य गियर बनायेंगे और वैसा ही पहिया लगायेंगे।
ट्रक चाहिए तो स्थिर शक्ति वक्र के बीच वाले भाग हेतु डिजाईन करेंगे।
कार चाहिये तो स्थिर शक्ति वक्र के सबसे नीचे भाग पर ध्यान रखेंगे जहाँ स्पीड ज़बरदस्त है पर भार खीचने की क्षमता कुछ नहीं।
अब ट्रैक्टर का काम अगर ज्यादा वजन खीचना है तो पहिया भी उसी अनुरूप होगा।
आईए देखते हैं कि ट्रैक्टर के पहिये का क्या काम है।
ट्रैक्टर के पहिये के तीन प्रमुख कार्य हैं।
ट्रेक्टर के वजन को ढोना और साथ में लगे उपस्कर ( हार्वेस्टर , मोअर या टिलर इत्यादि ) के वजन और बल को भी ढोना साथ ही गीली जमीन में धंसने से रोकना।
जमीन के संपर्क में आ कर समस्त बलों का वहन करना।
जमीन को पकड़ के रखना और स्प्रिंग एवं शॉक अब्सोर्बेर का काम करना।
पीछे के बड़े पहियों से उपरोक्त कार्य पूरे होते हैं।
बड़े पहिये - ज्यादा ट्रैक्टीव बल - ट्रांसमिट /संप्रेषित कर सकते हैं ( बल X त्रिज्या ) और रोलिंग रेजिस्टेंस (rolling resistance ) कम कर देते हैं। जो टायर की ऊँचाई और चौड़ाई एवं हवा के दबाव पर निर्भर करता है।
जितनी भीगी या नर्म जमीन होगी टायर पर उभार या ट्रैड उतना ही गहरा होगा। साथ ही टायर गीले जमीन में ज्यादा धंसेगा जो कि एक फीट तक हो सकता है। तो जाहिर है टायर की ऊँचाई इस धंसाव से ज्यादा तो होना ही चाहिए।
सॉफ्ट टायर या कम हवा वाले टायर - शॉक अब्सोर्बेर /स्प्रिंग का भी काम करते हैं।
ट्रैक्टर शब्द का प्रयोग Hart-Parr कंपनी द्वारा 1906 से शुरू हुआ, हालाँकि , ट्रैक्शन इंजन या स्टीम ट्रेक्टर के नाम से इनका प्रयोग, 1860 के आसपास से थॉमस एवेलिंग Thomas Aveling ने इंग्लैंड में शुरू कर दिया था।
ट्रैक्टर के बड़े पहिये का एक बहुत ही महत्वपूर्ण कारण है - ट्रेक्टर के - पीछे लगाये जाने वाले उपस्कर - जैसे हार्वेस्टर , मोवर।
यह जो उपस्कर पीछे लगते हैं - उनका ट्रेक्टर के गुरुत्व केंद्र के नीच लगना जरुरी है वरना - ट्रैक्टर, पलट जायेगा - पीछे की ओर। इसके लिए draw बार लगा हुआ होता है।