जितनों को मैंने बनाया, वही मुझे काटने में लगे हैं: सुरेंद्रनाथ सिंह | BHOPAL NEWS

भोपाल। भाजपा के कद्दावर नेता सुरेंद्रनाथ सिंह जिन्हे हम इन दिनों प्यार से गुमठी मम्मा भी बुला रहे हैं, अपनी ही पार्टी में साजिश का शिकार हो रहे हैं। उनका यह दर्द अब झलककर बाहर भी आने लगा है। संगठन की एक बैठक में उन्होंने खुलकर कहा कि 'जितनों को मैंने बनाया, अब वही मुझे काटने में लगे हैं।' बता दें कि इन दिनों सुरेंद्रनाथ सिंह, गुमठी संचालकों के बचाव में विवादित बयान देने के लिए सुर्खियों में हैं। 

अरेरा मंडल की बैठक में बयान दिया

मध्य प्रदेश सहित भोपाल की हर विधानसभा के अधीन आने वाले मंडलों में निर्वाचन अधिकारी की नियुक्ति की गई, लेकिन मध्य विधानसभा क्षेत्र के पूर्व विधायक सुरेंद्रनाथ से नहीं पूछा गया। सोमवार को अरेरा मंडल में चुनाव को लेकर बैठक हुई और संचालन कर रहे मुकुल लोखंडे ने कहा कि सुरेंद्रनाथ ऐसे हैं, जिन्होंने कई लोगों को बनाया, जो आज नेता हैं। सुरेंद्रनाथ के भाषण देने की बारी आई तो उन्होंने कहा-‘जितनों को मैंने बनाया, वही लोग अब मुझे काटने में लगे हैं।’ बैठक में महापौर आलोक शर्मा, जिलाध्यक्ष विकास वीरानी और सुरजीत सिंह चौहान भी मौजूद थे। 

सुरेंद्रनाथ सिंह विरोधियों को चुनाव अधिकारी बनाया गया

पार्टी सूत्रों का कहना है कि मध्य विधानसभा में चुनाव कराने के लिए चौक मंडल का जिम्मा रामदयाल प्रजापति, अरेरा मंडल में सुमित पचौरी और बरखेड़ी मंडल में पार्षद गणेशराम नागर को चुनाव अधिकारी बनाया गया है। ये तीनों नेता सुरेंद्रनाथ खेमे से नहीं हैं। बताया जा रहा है कि यह मामला संगठन तक पहुंचा है। यह भी चर्चा है कि भोपाल शहर जिला उपाध्यक्ष अशोक सैनी, केवल मिश्रा, वंदना परिहार, रामेश्वर राय दीक्षित को भी चुनाव से दूर रखा गया है। 

संगठन मंत्री आशुतोष तिवारी के सामने भी हो चुका है विवाद

भोपाल शहर के नेताओं में खींचतान की शुरुआत उस समय हुई थी, जब दो सप्ताह पहले संगठन मंत्री आशुतोष तिवारी ने सभी नेताओं की बैठक बुलाई। इसमें अनिल अग्रवाल, अशोक सैनी समेत कई नेताओं ने खुलकर जिला भाजपा पर आरोप लगाए थे कि संवादहीनता हो रही है। कार्यक्रमों के बारे में जानकारी नहीं दी जाती। बहरहाल, जिला भाजपा ऐसी किसी भी खींचतान से इनकार कर रही है। इस बारे में पूछने पर सुरेंद्रनाथ सिंह ने सिर्फ इतना कहा कि मंडल चुनाव अधिकारी सलाह-मशविरे के साथ किए जाएं या नहीं, यह निर्णय करने का आधार प्रदेश निर्वाचन अधिकारियों का है। इससे ज्यादा क्या कहा जा सकता है? 

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