ग्वालियर। जीवाजी विश्वविद्यालय (Jiwaji University) में पीएचडी (PHD) के मामले में एक बड़ी लापरवाही सामने आई है। विश्वविद्यालय को पीएचडी करने वाले छात्र से हर 6 महीने में 9 हजार 500 रुपए फीस लेनी थी, लेकिन विश्वविद्यालय ने हर 6 महीने के 4 हजार 200 रुपए ही जमा कराए। जिससे पिछले चार साल में जेयू को लाखों रुपए का चूना लगा है। इस बड़ी लापरवाही को जेयू (JU) के किसी भी जिम्मेदार अधिकारी ने नहीं पकड़ा। लेकिन अब गलती पकड़ में आने पर जेयू ने अपने दस्तावेज खंगालने शुरू कर दिए हैं।
जीवाजी विश्वविद्यालय से दी जाने वाली पीएचडी की डिग्री पहले से विवादों में है। न्यायिक आयोग की जांच में खुलासा हुआ था कि नियम विरुद्ध छात्रों को पीएचडी की डिग्रियां दी गई हैं, लेकिन अब जेयू ने अपने ही खजाने को चपत लगा दी। जेयू की समन्वय समिति की बैठक में 30 जून 2015 को पीएचडी के लिए फीस का निर्धारण किया गया था। इस दौरान फीस में दोगुनी वृद्धि की गई थी।
प्रस्ताव पास होने के बाद फीस वृद्धि की अधिसूचना भी जारी की गई थी, लेकिन विश्वविद्यालय छात्रों से यह फीस वसूलना भूल गया। पिछले चार साल में करीब 200 छात्र कम फीस अदा करके पीएचडी की डिग्री लेकर चले गए और करीब 400 छात्र अभी शोध कर रहे हैं।
इसकी पड़ताल की गयी और कुलसचिव को दस्तावेज भी दिखाए। इस स्थिति को देखकर वे भी हैरान रह गए। जिम्मेदार कर्मचारियों से इस संबंध में रिकॉर्ड भी तलब किया गया है। साथ ही कारण पता किया जा रहा है कि किस स्तर पर यह गलती हुई है। वर्तमान में जेयू वर्ष 2014 में निर्धारित फीस ही छात्रों से ले रही है। हर 6 महीने में 4200 रुपए (700 रुपए प्रति महीना) जमा कराए हैं।
ऐसे समझें जेयू को कितना हुआ है नुकसान
रजिस्ट्रेशन दिनांक से पीएचडी 2 साल की होती है। हर 6 महीने में छात्र को अपनी प्रोग्रेस रिपोर्ट पेश करनी होती है। उसके साथ फीस भी जमा करनी होती है। एक छात्र से जेयू के खजाने में 38 हजार रुपए जमा होना चाहिए थे, लेकिन जेयू को 16 हजार 800 रुपए ही मिले हैं।
वर्ष 2015 से 2019 के बीच अलग-अलग विषय में करीब 600 छात्रों ने पीएचडी के लिए रजिस्ट्रेशन कराया। जिसमें करीब 200 छात्र 16 हजार 800 रुपए फीस जमा करके अपनी डिग्री ले चुके हैं। करीब 400 की अभी लंबित है। 20 अगस्त 2019 से पीएचडी की नई काउंसिलिंग है। इन छात्रों को अब गाइड अलोट किए जाएंगे।
क्यों लिया जाना है हर महीने में रजिस्ट्रेशन शुल्क
छात्र को हर 6 महीने में अपनी प्रोग्रेस रिपोर्ट जेयू में जमा करनी है। अगर उसकी प्रोग्रेस अच्छी है, उसके बाद ही आगे के कार्य की अनुमति दी जाएगी। इसलिए जेयू ने हर 6 महीने में रजिस्ट्रेशन शुल्क वसूलने का निर्णय लिया था। इस व्यवस्था की अनदेखी होने की वजह से छात्रों ने फर्जी पीएचडी भी कर ली हैं। क्योंकि हर 6 महीने में फीस जमा कराई होती तो फर्जीवाड़े पर रोक लगाई जा सकती थी।
आयोग ने इस आधार पर मानी है पीएचडी नियम विरुद्ध
न्यायिक आयोग ने पीएचडी की जांच की है जिसमें दो नियमों का उल्लंघन बताया गया है। 7, 8, व 11 के कॉज 16 का उल्लंघन पीएचडी में सबसे ज्यादा हुआ है। कॉज 16 में स्पष्ट किया गया है कि छात्र को जो शोध केन्द्र आवंटित किया है, उसे 200 दिन वहीं कार्य करना है। लेकिन छात्र शोध केन्द्र पर आता नहीं है। गाइड उसकी हाजिरी को प्रमाणित कर देता है। इसलिए कॉज 16 का सबसे ज्यादा उल्लंघन हो रहा है। कॉज 22 (ए) में निर्धारित किया गया है कि शोधार्थी को हर 6 महीने में अपने शोध की प्रोग्रेस रिपोर्ट एक निर्धारित फॉर्मेट में जमा करनी होती है। जेयू में शोधार्थी अपनी रिपोर्ट थीसेस के साथ जमा करते हैं। फीस भी जमा करनी होती है। यह सीधा-सीधा नियम का उल्लंघन है।
यह निर्धारित की गई थी फीस
रजिस्ट्रेशन फीस- 5000 प्रति 6 माह
रिसर्च सेंटर फीस-3000 प्रति 6 माह
इन्फ्रास्ट्रक्चर फीस-500 प्रति 6 माह
लाइब्रेरी फीस- 1000 प्रति 6 माह
नोट- 3000 कॉशल मनी, 100 आई कार्ड, यूनिवर्सिटी लाइब्रेरी कॉशल मनी 1000 जमा करनी होगी। यह एक बार लगेगी। अगर छात्र का विषय विज्ञान है तो उसे हर 6 महीने में 3000 अतिरिक्त देने होंगे।
रिकार्ड निकलवा रहे हैं
फीस वृद्धि का मामला पुराना है। इसका पूरा रिकार्ड निकलवा रहे हैं। कहीं कोई बदलाव तो नहीं हुआ है, जिसकी वजह से कम फीस ली गई है। जांच के बाद सुधार किया जाएगा।-आईके मंसूरी, कुलसचिव जेयू
आर्थिक अनियमितता है
फीस निर्धारण का प्रस्ताव समन्वय समिति से पास है। सभी तरह की औपचारिकता पूरी होने के बाद अधिसूचना जारी की जाती है। जिस दिन से अधिसूचना जारी हुई, वह नियम उसी दिन से लागू हो जाता है। कम फीस वसूलना आर्थिक अनियमितता की श्रेणी में आता है, इसकी जांच होनी चाहिए। जिम्मेदारों से पैसे की वसूली होनी चाहिए।
डीपी सिंह, अधिवक्ता व पूर्व कार्य परिषद सदस्य जेयू