आजकल देश के ज्यादातर शहरों में पाश्चुरीकृत दूध का ही उपयोग होता है। यह एक विशेष प्रक्रिया से तैयार किया गया दूध होता है परंतु ज्यादातर घरों में पाश्चुरीकृत दूध का उपयोग ठीक उसी प्रकार किया जाता है जैसे वर्षों पहले डेयरी से लाए गए गाय या भैंस के दूध का किया जाता था। पाश्चुरीकृत दूध के पैकेट से दूध को निकालकर एक बर्तन में अच्छी तरह से उबाला जाता है और फिर उसका उपयोग किया जाता है परंतु प्रश्न यह है कि क्या यह प्रक्रिया सही है।
गाय या भैंस का दूध बिना गर्म किए पीना फायदेमंद है या नहीं
बिरसा कृषि विश्वविद्यालय से स्नातक शैलेंद्र सिंह (Shailendra Singh) बताते हैं कि भारत में हम दूध तीन तरीके से पीते हैं। कुछ लोग कच्चा दूध पीते हैं मतलब बिना उबाले सीधे गाय से दूध निकालने के बाद। इसमें दूध को गर्म नहीं करने के कारण पौष्टिक तत्व 100 प्रतिशत उपस्थित रहते हैं परंतु यह सुरक्षित नहीं है क्योंकि बीमारी फ़ैलाने वाले कीटाणु इसमें हो सकते हैं और यह सेहत को नुकसान पहुंचा सकता है। यह प्रयोगशालाओं की जांच में पाया गया है कि गाय या भैंस जो कुछ खाते हैं, उसका अंश उनके दूध में भी मिलता है। कई बार दूध में यूरिया तक की उपस्थिति मिली है।
दूसरा जो सामान्य तरीका है वह है दूध को उबाल कर पीना। अधिकाँश भारतीय घरों में यही तरीका इस्तेमाल होता है। गाय या भैंस के दूध को उबाला जाता है ताकि उसमें अच्छी मलाई आ जाए और फिर इस तरह के दूध को पीने के लिए भी उपयोग किया जाता है। यह वर्षों पुरानी प्रेक्टिस है। हम सभी ने अपने घरों में ऐसा ही होते हुए देखा है इसलिए पाश्चुरीकृत दूध को भी हम उबाल कर ही पीते हैं।
पाश्चुरीकृत दूध कैसे तैयार किया जाता है
दूध को ख़ास तापमान पर ख़ास समय के लिए गर्म कर तुरंत ठंडा कर दिया जाता है। दूध को जिस तापमान पर गर्म किया जाता है वह घर में उबलने वाले तापमान से कम होता है। ऐसा माना जाता है कि कम तापमान पर गर्म करने से दूध के पोषक तत्व नष्ट नहीं होते और बीमारी फ़ैलाने वाले कीटाणु भी मर जाते हैं। ऐसे दूध घर में बिना उबाले इस्तेमाल करने के प्रयोजन से बनाये जाते हैं। सीधे ग्लास में दूध डालिये और पी लीजिये। आप चाहें तो इसे थोड़ा गुनगुना कर सकते हैं।
बिना उबाला पाश्चुरीकृत दूध कितना सुरक्षित है
अब सवाल यह उठता है कि यह कितना सुरक्षित है। दूध में जीवाणुओं की संख्या कम होगी या ज्यादा इसका निर्धारण जहाँ गाय रखी जाती है और दूध दुहा जाता है वहीँ से शुरू हो जाता है। जितने भी सहकारी संस्था हैं जिसमे अमूल भी शामिल है वो हज़ारों किसानों से प्रतिदिन सुबह और शाम दूध इकठ्ठा करती हैं। किसान जो दूध दे रहे हैं वह कितना हाइजीनिक माहौल से आ रहा है इसका आकलन मुश्किल है। वह दूहने के पहले गाय के थन को और दूहने के बरतन को कैसे साफ़ करते हैं कहना कठिन है। एक बार दूध जब प्लांट में आ जाता है तो अंतिम उत्पाद बनने के समय तक किसी को उसमे हाथ लगाने की आवश्यकता नहीं पड़ती, सभी काम मशीनों के माध्यम से होते हैं। परंतु प्लांट में आने से पूर्व ही दूध जो हज़ारों किसानों से गांव में इकठ्ठा किया जाता है, काफी दूषित हो चूका होता है। जिस दूध में जीवाणु का भार (माइक्रोबियल लोड) अत्यधिक है उसपर पाश्चुरीकरन प्रभावी नहीं। ऐसे में दूध को अच्छी तरह उबाल लेना ही उचित हैं।
निष्कर्ष :-कच्चा दूध तो कभी ग्रहण नहीं करना चाहिए और पाश्चुरीकृत दूध भी भारत जैसे गर्म तापमान वाले देश में उबाल कर ही पीना उचित है। उबालने से दूध के पोषक तत्व कुछ नष्ट हो सकते हैं पर जीवाणु वाले दूध को पीने से यह बेहतर है। उबला दूध भी काफी पोषक है और बीमार होने के खतरे को काफी हद तक काम कर देता है।