भोपाल। मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल के लिए आवारा कुत्ते अब खतरा बन गए हैं। अवधपुरी में आदमखोर कुत्तों ने एक 6 साल के मासूम को उसकी मां और मोहल्ले वालों के सामने चीथ डाला। मासूम की मौत ने पूरे शहर को हिलाकर रख दिया है। इधर एक रिपोर्ट बताती है कि शहर में प्रत्येक 5 नागरिकों के बीच 1 आवारा कुत्ता है। चौंकाने वाली बात यह है कि लगभग हर 2 कुत्तों के बीच एक बच्चा है।
राजधानी में आवारा कुत्तों की तादात पांच साल में 1 लाख से बढ़कर 3 लाख पर जा पहुंची है। भोपाल के शहरी क्षेत्र की अनुमानित 15 लाख की आबादी में हर पांच व्यक्तियों को एक कुत्ता डरा रहा है। नगर निगम का दावा है कि इन 5 सालों में एक लाख आठ हजार 403 कुत्तों की नसबंदी की जा चुकी है। सवाल यह है कि यदि कुत्तों की नसबंदी नियमित रूप से की जा रही है तो इनकी आबादी इतनी तेजी से कैसे बढ़ रही है।
एनीमल बर्थ कंट्रोल सेंटर को सिर्फ पेमेंट हो रहा है
सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन का हवाला देकर बेबसी जताने वाले निगम ने इसके लिए 5 करोड़ 71 लाख 41 हजार 147 रुपए का भुगतान किया है। ये भुगतान एनीमल बर्थ कंट्रोल सेंटर (एबीसी) का संचालन करने वाली नवोदय वेट सोसायटी काे किया गया। चौंकाने वाली बात यह है कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश की आढ़ लेकर एनीमल बर्थ कंट्रोल सेंटर को सिर्फ पेमेंट किया जा रहा है। वेरिफिकेशन कमेटी क्या कर रही है। क्या सचमुच कुत्तों की नसबंदी हो रही है या सबकुछ रजिस्टर्ड में ही चल रहा है, इन सवालों के पुख्ता जवाब नहीं है। दो बच्चों की मौत के बाद निगम कमिश्नर अब वेरिफिकेशन कमेटी को रिवाइज करने की बात कर रहे हैं। एबीसी का दावा है कि रोज 45-50 कुत्तों की नसबंदी की जा रही है। सेंटर का रिकॉर्ड बताता है कि यहां 25-30 नसबंदियां ही हो रही हैं।
आदमखोर हुए आवारा कुत्ते अब भी पकड़ से बाहर
2018 में निगम ने राजधानी में चार शेल्टर होम बनाने के लिए 50 लाख रुपए मंजूर किए थे। इंदौर रोड, विदिशा रोड, रायसेन रोड और कोलार रोड पर शेल्टर होम बनने तय हुए थे। जमीन आवंटन के लिए जिला प्रशासन को पत्र भी लिखा गया, लेकिन शेल्टर होम सालभर बाद भी नहीं बन पाए हैं। शिव संगम नगर में छह साल के संजू का नोंच-नोंचकर मार डालने वाले कुत्तों को निगम अमला शनिवार को भी नहीं पकड़ सका। इसका तात्पर्य यह है कि वो आदमखोर आतंक
वेरिफिकेशन कमेटी करती है माॅनीटरिंग:
एबीसी ठीक तरह से काम कर रहा है या नहीं इस पर नजर रखने के लिए एक वेरिफिकेशन कमेटी बनाई गई है। कमेटी का गठन नवंबर 2013 में किया गया था। इसमें निगम के पशु चिकित्सक डाॅ. एसके श्रीवास्तव, वेटरनरी विभाग से डाॅ. बीके गुप्ता और डाॅ. पीपी सिंह के अलावा लाेकल इंडिपेंट सदस्य के ताैर एनजीओ संचालिका नीलम काैर शामिल हैं। ये कमेटी 2017 में रिवाइज हुई थी, लेकिन एक भी सदस्य नहीं बदला गया।
19 वर्ष पुराने कानून का पालन नहीं करा पाई मप्र सरकार
इंदौर और भोपाल जैसे जिले में आए दिन ऐसी घटनाएं होते रहती है क्योंकि यहां कि नगर निकायों को अर्बन डिपार्टमेंट की ओर से इंस्ट्रक्शन ही नहीं दी गई है। नेशनल ज्यूडिशियल एकेडमी से भी आग्रह किया गया कि कुत्तों की नसबंदी कानून का पालन कराया जाए बावजूद सरकार ने कुछ नहीं किया। वर्ष-2000 में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कहा है कि सिर्फ नसबंदी ही एक मात्र उपाय है, इससे कुत्ते कम हिंसक हो जाते हैं और शांत भी हो जाते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा है कि हर प्रदेश में शहरी विकास सचिव की अध्यक्षता में एक मॉनिटरिंग कमेटी बनाई जाए और वह नसबंदी का टारगेट तय करे लेकिन मध्य प्रदेश सरकार की ओर से अभी तक यह कमेटी नहीं बनी है।
गौरी मौलेखी, पीपुल्स फॉर एनिमल्स की ट्रस्टी और नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एनिमल वेलफेयर मैनेजमेंट कमेटी की सदस्य