भोपाल। मध्यप्रदेश के शिक्षा विभाग का एक शिक्षक तनाव में था, अधिकारियों ने उसकी ड्यूटी 12वीं बोर्ड के मूल्यांकन में लगा दी। उसने तनाव के कारण छात्रों को कम नंबर दिए। यह मामला हाईकोर्ट में प्रमाणित हो गया। हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता छात्र के नंबर बढ़ाने एवं शिक्षक के खिलाफ कार्रवाई करने के आदेश दिए हैं। प्रश्न यह है कि जिन छात्रों ने याचिका दाखिल नहीं की और शिक्षक के तनाव का शिकार हुए उनका क्या।
मामला क्या है
12 वीं कक्षा के छात्र प्रखर पंडित ने अंग्रेजी विषय में विशेष योग्यता होने के बावजूद कम अंक दिए जाने को लेकर हाईकोर्ट की इंदौर बैंच याचिका दायर की थी, उस पर कोर्ट ने शुक्रवार को अंतिम निर्णय जारी कर दिया। अंग्रेजी में उसे 88 नंबर आए थे। हाई कोर्ट में काॅपी जांची गई तो छह नंबर और मिले। इस तरह उसके अंक 94 हो गए। छात्र के वकील ने आपत्ति ली कि एक तरफ शिक्षा विभाग ने नियम बना रखा है कि रिजल्ट जारी होने के बाद रिवेल्यूशन नहीं होगा। दूसरी तरफ इस तरह काॅपी जांचे जाने से छात्रों का भविष्य खराब हो रहा है। शिक्षक ने ऐसी काॅपी क्यों जांची यह विभाग को बताना चाहिए। शिक्षा विभाग की ओर से कोर्ट में बताया गया कि जिस शिक्षक ने काॅपी जांची वह मानसिक तनाव में था। उसके पिताजी की तबियत ठीक नहीं है। कोर्ट ने शिक्षा विभाग को आदेश दिए कि ऐसे शिक्षक पर वह कार्रवाई करे। छात्र की ओर से अधिवक्ता धमेंद्र चेलावत ने याचिका दायर की थी।
यह तो अधूरा न्याय हुआ, माध्यमिक शिक्षा मंडल पूरी कार्रवाई करे
इस मामले में यह तो प्रमाणित हो गया कि संबंधित शिक्षक के तनाव में होने के कारण उसने कम नंबर दिए। अब यह दावा किया जा सकता है कि जैसा उसने प्रखर पंडित के साथ किया, शेष सभी के साथ किया होगा। सभी छात्रों को कम नंबर दिए गए होंगे। उनमें से कुछ फेल भी हो गए होगे या कम नंबर के कारण लक्ष्य प्राप्त करने से चूक गए होंगे। शिक्षा विभाग, शिक्षक पर कार्रवाई कर भी दे तब भी यह पूरा न्याय तो नही कहा जा सकता। पूरा न्याय तो तब होगा जब शिक्षक द्वारा जांची गईं सभी उत्तरपुस्तिकाओं में औसत 6 नंबर बढ़ाए जाएं।