भोपाल। मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल लोकसभा सीट पर चुनाव दूसरी सीटों से काफी अलग हो गए हैं। इधर कांग्रेस प्रत्याशी दिग्विजय सिंह काफी भयभीत हैं तो उधर भाजपा दिग्विजय सिंह से डरी हुई है। वो अपना प्रत्याशी ही घोषित नहीं कर पा रही है। हिंदू ब्रांड की तलाश अब तक पूरी नहीं हुई है। दिग्विजय सिंह की हालत यह है कि उन्होंने कांग्रेस के स्टार प्रचारकों की लिस्ट में अपना नाम तक नहीं आने दिया। वो भोपाल सीट छोड़कर कहीं जाने को तैयार नहीं है।
दिग्विजय सिंह क्यों भयभीत हैं
मध्यप्रदेश में दिग्विजय सिंह आम जनता के बीच दहशत का दूसरा नाम है। 15 साल हो गए लेकिन लोग भुला नहीं पाते कि किस तरह वो बिना बिजली, सड़क और पानी के जिंदगी बसर कर रहे थे। सरकार में जनता की सुनवाई ही नहीं थी। कर्मचारियों का सवर्ण वर्ग नाराज हैं क्योंकि प्रमोशन में आरक्षण का कानून दिग्विजय सिंह ने ही बनाया था। अध्यापक से हाल ही में शिक्षक बने लोग नाराज हैं क्योंकि उनकी 'शिक्षाकर्मी' के रूप में भर्ती दिग्विजय सिंह ने ही की थी। सवर्ण समाज नाराज है क्योंकि दलित ऐजेंडा के तहत मुआवजा के लालच में सवर्णों के खिलाफ हजारों झूठे मामले दर्ज हुए। नि:संदेह दिग्विजय सिंह कांग्रेस के सर्वमान्य नेता है लेकिन चुनाव में वोट तो जनता को देना है। केवल कार्यकर्ताओं के वोट से काम कैसे चलेगा। हालात यह हैं कि कार्यकर्ता गारंटी से नहीं कर पा रहे कि उनके निजी और करीबी रिश्तेदार भी दिग्विजय सिंह को वोट देंगे।
भाजपा क्यों डरी हुई है
भोपाल सीट भाजपा के लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न है परंतु पिछली बार यहां से आलोक संजर को टिकट दिया गया। शिवराज सिंह की कृपा से सीट निकल गई लेकिन इस बार आलोक संजर, दिग्विजय सिंह के सामने काफी कमजोर प्रत्याशी नजर आते हैं। महापौर आलोक शर्मा टिकट की आस लगाए बैठे हैं परंतु उनका कद भी दिग्विजय सिंह के सामने बौना ही है। वीडी शर्मा तो रेस से बाहर हो चुके हैं। आरएसएस यहां से हिंदू ब्रांड चाहता है ताकि जीत आसान और सुनिश्चित हो जाए। उमा भारती ने चुनाव ना लड़ने का ऐलान कर दिया है और प्रज्ञा सिंह ठाकुर के नाम पर अमित शाह तैयार नहीं हैं। भाजपा को डर है कि यदि दिग्विजय सिंह पर बड़ा हमला नहीं किया गया तो यह सीट हाथ से निकल जाएगी।