1993 में जो माधवराव के साथ हुआ वही ज्योतिरादित्य के साथ 2018 में दोहराया गया | POLITICAL NEWS

NEWS ROOM
भोपाल। मुख्यमंत्री कौन बनेगा, इस सवाल को लेकर गुरुवार को दिनभर दिल्ली में राहुल गांधी के घर पर मैराथन बैठकों का दौर चलता रहा. मध्य प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष, गांधी परिवार के करीबी माने जाने वाले कमलनाथ और ज्योतिरादित्य मुख्यमंत्री पद के लिए दावेदार थे. दिनभर की माथापच्ची के बाद सीएम के नाम का देर रात ऐलान हुआ और एक बार फिर सिंधिया परिवार राज्य का मुखिया बनने से चूक गया. कमलनाथ के नाम पर मुहर लगी जबकि ज्योतिरादित्य को अपने कदम पीछे खींचने पड़े। मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री पद की औपचारिक घोषणा के दौरान भोपाल स्थित कांग्रेस दफ्तर में लोगों के हुजूम में ज्योतिरादित्य सिंधिया थोड़े खोए-खोए से नजर आए. लगा वह शायद कुछ याद कर रहे हों.

यह पहली दफा नहीं है, जब मध्य प्रदेश में मुख्यमंत्री की कुर्सी सिंधिया परिवार के हाथ से फिसली है. ज्योतिरादित्य के पिता माधवराव सिंधिया 1993 के राज्य विधानसभा चुनावों के बाद कांग्रेस को मिली जीत के बाद इस बात को लेकर आश्वस्त थे कि उन्हें ही सीएम बनाया जाएगा. मगर मुख्यमंत्री की कुर्सी एक ऐसे शख्स को मिली जिसकी किसी को उम्मीद नहीं थी.

माधवराव सिंधिया V/S दिग्विजय सिंह के मुख्यमंत्री पद की कहानी 

असल में, उस समय मध्य प्रदेश का मुख्यमंत्री बनने की कहानी दिलचस्प है. कहा जाता है कि दिग्विजय सिंह मुख्यमंत्री बन गए और माधवराव सिंधिया दिल्ली में हेलीकॉप्टर तैयार कर  फोन आने का इंतजार करते रहे. दरअसल, बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद मध्य प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लगा. दिग्विजय सिंह उस समय प्रदेश के कांग्रेस अध्यक्ष थे. 1993 नवंबर में विधानसभा चुनाव हुए तो कांग्रेस को अप्रत्याशित रूप से जीत हासिल हुई. इस जीत के बाद मुख्यमंत्री बनने की दौड़ में श्यामा चरण शुक्ल, माधवराव सिंधिया और सुभाष यादव जैसे नेता शामिल हो गए. मजेदार बात यह है कि दिग्विजय सिंह उस समय सांसद थे और विधानसभा चुनाव नहीं लड़े थे.

कहा तो यह भी जाता है कि माधवराव को रोकने के लिए अर्जुन सिंह और दिग्विजय सिंह ने स्वांग रचा था. हालांकि इसका कोई प्रमाण नहीं है. राजनीतिक विश्लेषक गौरी शंकर राजहंस बताते हैं कि दिग्विजय को श्यामा चरण शुक्ल राजनीति में लेकर आए और अर्जुन सिंह ने उन्हें पहली बार मंत्री बनाया और दोनों के साथ डिब्बा खुला तो दिग्विजय सिंह मुख्यमंत्री बन गए.

भारी कशमकश के बीच विधायक दल की बैठक शुरू हुई जिसमें मुख्यमंत्री का चुनाव होना था. वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक एनके सिंह की मानें तो अर्जुन सिंह ने पिछड़ा वर्ग से मुख्यमंत्री बनने की वकालत करते हुए सुभाष यादव का नाम आगे बढ़ा दिया. बैठक में सुभाष के नाम पर सहमति न बनते देख अर्जुन सिंह ने अपनी हार मान ली और भाषण खत्म कर बाहर चले गए.

इस दौरान माधव राव सिंधिया दिल्ली में हेलीकॉप्टर के साथ फोन आने का इंतजार कर रहे थे. उनसे कहा गया था कि जैसे ही खबर दी जाए तत्काल भोपाल आ जाइएगा. श्यामाचरण और सुभाष यादव के मुख्यमंत्री न बनने पर अर्जुन सिंह अपने विधायकों का समर्थन माधवराव को दे देंगे. बैठक में जोर आजमाइश जारी थी. केंद्रीय पर्यवेक्षक के तौर पर वहां प्रणब मुखर्जी, सुशील कुमार शिंदे और जनार्दन पुजारी मौजूद थे.

विवाद बढ़ा तो प्रणब मुखर्जी ने गुप्त मतदान कराया जिसमें 174 में से 56 विधायकों ने श्यामाचरण के पक्ष में राय जताई. जबकि 100 से ज्यादा विधायकों ने दिग्विजय के पक्ष में मतदान किया था. नतीजा आने के बाद कमलनाथ दौड़ते हुए उस कक्ष की तरफ भागे, जहां पूरे भवन का एक मात्र टेलीफोन चालू था. कमलनाथ ने वहां से दिल्ली किसी को फोन किया. दिल्ली से तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव ने फोन पर प्रणब मुखर्जी से कहा कि विधायकों ने जिसके पक्ष में सबसे ज्यादा मतदान किया है, उसे मुख्यमंत्री बना दिया जाए. इस पूरे नाटकीय घटनाक्रम के बाद दिग्विजय सिंह मुख्यमंत्री बन गए और माधवराव फोन का इंतजार ही करते रहे.
भोपाल समाचार से जुड़िए
कृपया गूगल न्यूज़ पर फॉलो करें यहां क्लिक करें
टेलीग्राम चैनल सब्सक्राइब करने के लिए यहां क्लिक करें
व्हाट्सएप ग्रुप ज्वाइन करने के लिए  यहां क्लिक करें
X-ट्विटर पर फॉलो करने के लिए यहां क्लिक करें
Facebook पर फॉलो करने के लिए यहां क्लिक करें
समाचार भेजें editorbhopalsamachar@gmail.com
जिलों में ब्यूरो/संवाददाता के लिए व्हाट्सएप करें 91652 24289

#buttons=(Ok, Go it!) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Check Now
Ok, Go it!