यदि शिवराज ना दोहाराएं, तो कांग्रेस रेस से बाहर नजर आए | MP NEWS

भोपाल। मध्यप्रदेश में चुनाव की सरगर्मियां पूरे खुमार पर हैं परंतु कांग्रेस की उपस्थिति औपचारिक बनकर रह गई है। हालात यह हैं कि यदि सीएम शिवराज सिंह चौहान अपनी सभाओं में बार बार ना दोहराएं तो कांग्रेस रेस से बाहर हो जाए। मध्यप्रदेश में यह 'कांग्रेस का कड़वा सच' है कि उसके प्रचार अभियान में भी जोश और उम्मीदें नजर नहीं आ रहीं हैं। कांग्रेस की ओर से बेहद थका हुआ और खानापूर्ति का प्रचार अभियान चल रहा है। 15 साल से जमी सरकार को उखाड़ फैंकने की ताकत इस अभियान में तो कतई नजर नहीं आ रही। 

टिकट वितरण और नाम वापसी के बाद मध्यप्रदेश में चुनाव की सूरत बदल गई है। अब चुनाव कुछ सुस्त सा नजर आ रहा है। हालात यह है कि आम जनता क्या, पार्टियों के कार्यकर्ताओं तक में जोश नजर नहीं आ रहा है। एक तरफ शिवराज सिंह चौहान हैं जिनसे इस बार जनता नाराज है और तो दूसरी तरफ कमलनाथ जो यह साबित करने मेें अब तक नाकाम साबित हुए हैं कि वो शिवराज सिंह का बेहतर विकल्प हो सकते हैं। 

पीसीसी में मौजदू कांग्रेस मीडिया सेल की चेयरमैन शोभा ओझा हर रोज कुछ बयान जारी कर अपनी जमीन मजबूत करने में जुटी हुईं हैं। सरकार बने ना बने, शोभा ओझा प्रदेश स्तरीय नेता जरूर बन जाएंगी और अगली प्रदेश कार्यसमिति में उन्हे अच्छा पद भी मिल जाएगा। कांग्रेस कार्यालय में कार्यकर्ताओं की हलचल अब भी नजर नहीं आ रही है। हालात यह हैं कि पीसीसी कार्यालय की दीवारें भी गवाही दे रहीं हैं कि वो बहुत पुरानी हो गईं हैं। पुताई तो दूर की बात, ठीक से सफाई तक नहीं हुई है। 

कांग्रेस के सबसे दिग्गज नेता दिग्विजय सिंह पिछले 6 महीने से एक जुलाहे की तरह अपनी अलग योजना की बुनाई कर रहे हैं। कभी कभी कांग्रेस का काम भी कर लेते हैं। टिकट वितरण से पहले ज्योतिरादित्य सिंधिया में जोश नजर आ रहा था परंतु अब वो भी हवाई नेता बनकर रह गए हैं। कमलनाथ घर से निकलते नहीं और सिंधिया घर में टिकते नहीं। वो दिल्ली से अपडाउन कर रहे हैं। 

चुनाव के ऐलान से पहले मध्यप्रदेश में सपाक्स पार्टी, जयस और बसपा से कुछ उम्मीदें थीं कि वो धमाकेदार प्रदर्शन करेंगी परंतु सपाक्स पार्टी हीरालाल त्रिवेदी के जाल में उलझकर रह गई। जयस हिरा अलावा के लालच में फंसकर पिस गई और बसपा मौके का फायदा उठाती नजर नहीं आ रही है। कुल मिलाकर चुनाव में एक नीरसता का माहौल है। कोई बड़ी बात नहीं कि इस बार या तो मतदान का ग्राफ नीचे गिर जाए या फिर नोटा कोई चमत्कारी वोट लेकर सामने आए। 

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