शिवराज की भाजपा और दिग्गी की कांग्रेस ? | EDITORIAL by Rakesh Dubey

अंतिम सूचना तक प्रदेश विधान सभा की 230 सीटों के लिए लगभग 4001 नामांकन भर जा  चुके थे | इनमे पार्टियों के अधिकृत, अनधिकृत, बागी, आये-गये और निर्दलीय प्रत्याशी शमिल है | परिस्थिति जो न कराए, थोडा है | इस बार रायता कुछ ज्यादा फ़ैल गया है |बड़े राजनीतिक दल  मान मनौव्वल, लोभ- लालच और चमकाने- धमकाने में लगे हैं | निराश लोग,आयाराम- गयाराम होने, पुतले जलाने से लेकर जहर खाने तक जैसी प्रतिक्रिया व्यक्त कर  रहे हैं, इनमें ज्यादातर भाजपा और उसके बाद कांग्रेस के लोग हैं  | सवाल यह हैं कि भाजपा और कांग्रेस जैसे दलों  यह स्थिति क्यों बनी और परिणाम क्या होंगे ? उत्तर एक ही है भाजपा में किसी एक ने भाजपा को अपना निजी सन्गठन मान कर खेल खेला है तो कांग्रेस में किसी एक के सारे प्रयास सन्गठन को मजबूर कर अपना महत्व बनाये रखने के हैं | दोनों खिलाडी चतुर-सुजान हैं | हाई कमान जैसी संस्थाओं की इससे ज्यादा किरकिरी पहले कभी नहीं हुई |

पहले भाजपा, सब कुछ भाजपा को समझने वाले और अपना तन मन और धन  भाजपा को देने वाले इस बार टिकट पाने से वंचित हो गये | संघ के अधिकारियों के नाम का खूब दुरूपयोग हुआ | गोविन्दपुरा से टिकट की ख्वाहिश रखने वाले व्यक्ति के बारे में तो संघ में अपने तरीके से साफ़ किया गया कि उनकी कोई सिफारिश/ सहमति नहीं है | धीरज पटेरिया[जबलपुर], रामोराम गुप्ता [सतना]. करण सिंह परमार [नीमच ], दीपक विजयवर्गीय [भोपाल], तेजसिंह सेंधव [देवास] और राजो मालवीय [सुहागपुर ] जैसे नाम सिर्फ एक व्यक्ति की नाराजी से सिरे नहीं चढ़ सके | इसी व्यक्ति की प्रसन्नता ने अपने चहेतों को नवाज दिया | इससे कार्यकर्ताओं में संदेश गया कि अलग दिखने वाली भाजपा इतनी अलग हो गई है कि वह सिर्फ एक व्यक्ति का व्यक्तिगत सन्गठन दिखने लगी है |  मुख्यमंत्री के इर्द-गिर्द घूमने वाले नेताओ ने भोपाल उत्तर में जो चमत्कार दिखाया है उसका कोई सानी नहीं है, कांग्रेस के उम्मीदवार आरिफ अकील के समर्थक इसे वाक्ओवर मान कर ७ नवम्बर को ही इमरती बाँट चुके हैं | ऐसे नवोदित टिकट प्राप्त कर्ता अन्य जगह भी हैं | पुराने कार्यकर्ता या तो अनुशासन का ताला अपने मुंह पर लगा चुके हैं  या बुन्देलखण्ड के पूर्व विधायक के के श्रीवास्तव के स्वर में स्वर मिलाकर  हाई कमान  को चेताना चाहते हैं कि पार्टी एक व्यक्ति की जेब में चली जा रही है |

और कांग्रेस को धार झाबुआ की धार को समझना चाहिए | जिस झाबुआ में हेलीकाप्टर को देखने के लिए ही भारी भीड़ जमा हो जाती है | कल कांग्रेस की आपदा प्रबन्धन टीम को दरवाजे बंद मिले | कांग्रेस के कार्यकर्ता जयस से हुए समझौते से अब तक नाराज है | कोई उन्हें नहीं मना पा रहा है | प्रदेश के दूसरे हिस्से में एक नेता के पुतले जल रहे हैं | यह बिछात अगले लोकसभा और विधानसभा चुनावों  के लिए बिछाई गई है | उद्देश्य अपनी अपरिहार्यता सिद्ध करना है | यहाँ भी हाई कमान  फेल है |

शिवराज सिंह और दिग्विजय सिंह दोनों ही अपनी अपनी पार्टी को माँ का दर्जा देते हैं | ये उनके लिए आत्ममंथन  का दौर है | माँ[पार्टी ] को जेब में रखने से घर [प्रदेश] में काकी [छोटे दलों का उदय ] की धाक बढ रही है | जो घर को बर्बाद करेगी |
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श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क  9425022703        
rakeshdubeyrsa@gmail.com
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