सर संघचालक मोहन भागवत का दहशरे पर दिया गया भाषण | NATIONAL NEWS

नागपुर। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सर संघचालक मोहन भागवत ने गुरुवार को कहा- हमें शत्रुओं से बचाव का उपाय करना ही होगा। हमें यह करना होगा कि कोई हमसे लड़ने की हिम्मत ही न करे। दशहरे के मौके पर संघ मुख्यालय में हुए कार्यक्रम में उन्होंने कहा कि प्रजातंत्र में आंदोलन सामान्य बात है, लेकिन पिछले दिनों हुए आंदोलनों में छोटी बातों को बड़ा किया गया। नारे लगे- ‘भारत तेरे टुकड़े होंगे, बंदूक की नली पर सत्ता हासिल करेंगे।’ ऐसा पहले कभी नहीं हुआ। इसका राजनीतिक लाभ भी लिया जाता है। इसका नरेटिव सोशल मीडिया पर खूब चलता है। इसके विचार पाकिस्तान, इटली और अमेरिका से आते हैं। 

माओवाद तो हमेशा से अर्बन ही रहा है।

संघ प्रमुख के मुताबिक, समाज की विषमता का लाभ उठाकर उपेक्षित लोगों को राजनीतिक लोग अपने लिए बारूद की तरह इस्तेमाल कर रहे हैं। इसके जरिए समाज में प्रचलित श्रद्धाओं और नेतृत्व को ढहाया जा रहा है। उन्होंने कहा कि माओवाद तो हमेशा से अर्बन ही रहा है।

बाहर जाकर देश की बुराई करना गलत

भागवत ने कहा, "कुछ लोगों ने यह नियम बना रखा है कि देश के बाहर जाएंगे तो भारत की निंदा ही करेंगे। ऐसा लगता है कि ये लोग आत्ममुग्धता के शिकार हैं। सरकार धीमे चलती है, ये हम 70 साल से देख रहे हैं लेकिन कुछ लोग इस बात को नहीं मानते। देश में पंथ, जाति, संप्रदाय की विविधता है तो सबके हित में भी विविधता है, लेकिन समरसता और एकरूपता से चला जा सकता है। अन्याय की प्रतिक्रिया में किसी अन्य अन्याय को जन्म नहीं देना चाहिए। बाबा साहब अंबेडकर कहते थे- देश में फूट का स्थान नहीं होना चाहिए। किसी को भी नियम-कानून नहीं, बल्कि उसका व्यवहार ही बचाएगा। रोज के जीवन में अनुशासन रखना ही देशभक्ति है।"

सीमा की सुरक्षा जरूरी

आरएसएस प्रमुख ने कहा, "सीमा की सुरक्षा देश की सुरक्षा का बड़ा अंग है। सेना के जवानों को यह विश्वास देना होगा कि वे लड़ाई जीत लेंगे। वहीं, प्रशासन को चाहिए कि वह समाज में रहने वाले सैनिकों के परिजन के हितों का ध्यान रखे और उन्हें कोई तकलीफ न हो। सेना, नौसेना और वायुसेना को न केवल साधन संपन्न, बल्कि उनमें बेहतर तालमेल भी बनाना होगा। अरब सागर से लेकर बंगाल की खाड़ी तक जितने द्वीप हैं, उनकी सुरक्षा की जानी चाहिए। सीमावर्ती भू-भाग में रहना कठिन है। लेकिन वहां के लोग डटकर रहते हैं। वे कहते हैं कि सीमा सुरक्षा को मजबूत करो, हमें यहां रहने में कोई दिक्कत नहीं।"

हथियार बनाने में स्वावलंबी बनें

भागवत ने कहा, "सुरक्षित देश वही रहता है, जो शस्त्र-अस्त्र बनाने में स्वावलंबी रहता है। कभी-कभी विदेशों से सैन्य उपकरण लेना जरूरी होता है, लेकिन हमें यह तय करना होगा कि सुरक्षा के लिए किसी दूसरे पर निर्भर न रहें। सरकार की कई प्रकार की योजनाएं हैं, लेकिन इनसे समय पर मदद मिलनी चाहिए। समय पर मदद न मिलना दुखद है। शासन-प्रशासन को इसके लिए सक्रिय होना चाहिए।"

गांधीजी ने आत्मबल का अनूठा उदाहरण पेश किया

भागवत के मुताबिक, "आजादी के दौरान राजनीति को लेकर भी अभिनव प्रयोग हुए। आज हम गांधीजी की 150वीं जयंती मना रहे हैं। गांधीजी ने आत्मबल के साथ निहत्थे रहकर अंग्रेजों से लोहा लिया। जलियांवाला बाग में इकट्ठा हुए लोगों को पता था कि वहां गोलियां चलेंगी। प्राणों का भय न होते हुए भी उस समय के लोगों ने आत्मबल का जो उदाहरण पेश किया वह अभूतपूर्व है।"

मौजूदा समय में संघ की 50 हजार से ज्यादा शाखाएं

संघ की स्थापना 27 सितंबर, 1925 को विजयादशमी के ही दिन मोहिते के बाड़े नामक स्‍थान पर केशवराव बलिराम हेडगेवार ने की थी। इसका मुख्यालय महाराष्ट्र के नागपुर में है। संघ की पहली शाखा में सिर्फ पांच लोग शामिल हुए थे। आज देशभर में 50 हजार से अधिक शाखाएं और उनसे जुड़े लाखों स्वयंसेवक हैं।
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