अध्यापक अधूरे रह गए: माला में सज नहीं पाए और पेड़ से टूट गए | khula khat @ adhyapak

Bhopal Samachar
भोपाल। आदर्श आचार संहिता लागू होते ही समस्त कर्मचारी चुनाव आयोग के अधीन हो जाते हैं। ऐसे में सभा, सम्मेलन, समारोह, हड़ताल, आंदोलन एवं किसी राजनीतिक दल के पक्ष में प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष रूप से समर्थन या विचार भी प्रतिबंधित हो जाते है। कोई कर्मचारी धार्मिक-जातीय उन्माद बढ़ाने वाले विचार व्यक्त करें इस पर भी कड़ी पाबंदी लागू हो जाती है। किसी राजनीतिक दल से या नेतृत्व से नजदीकी प्रदर्शित करते छायाचित्र भी आचार संहिता उल्लंघन के दायरे में आ जाते हैं। कोई भी कर्मचारी किसी राजनीतिक दल के समर्थन में न कार्य कर सकता है ना रूझान प्रदर्शित कर सकता है और ना ही प्रचार-प्रसार कर सकता है। कुल मिलाकर समस्त कर्मचारी का दायित्व है कि वह चुनाव आयोग के आदर्श आचार संहिता का 100% पालन करें और उल्लंघन करता है तो दंड भूगतने के लिए तैयार रहे। सभी कर्मचारियो को तटस्थता बनाए रखते हुए आदर्श आचार संहिता का कडाई से पालन करना चाहिए।

21 जनवरी को अध्यापकों का शिक्षा विभाग में संविलियन की घोषणा का सिलसिला जो प्रारंभ हुआ था उस पर बहुत हद तक विराम लग गया है। शिक्षा विभाग में संविलियन तो नहीं हुआ मध्यप्रदेश राज्य स्कूल शिक्षा सेवा में नियुक्ति की प्रक्रिया प्रचलन में है जिसकी कभी अध्यापकों ने मांग ही नही की थी। अब जो राज्य स्कूल शिक्षा सेवा मे नियुक्त की प्रक्रिया प्रचलन में है वह चलते रहेगी अर्थात अध्यापकों का राज्य स्कूल शिक्षा सेवा में नियुक्ति का सिलसिला चलता रहेगा। इसमें किसी प्रकार की बाधा नहीं आएगी।

29 मई को राजपत्र प्रकाशन के साथ ही शिक्षाकर्मी, संविदा शाला शिक्षक और गुरुजी को प्रथम नियुक्ति दिनांक से सेवा की गणना, वेतन निर्धारण का फॉर्मूला, पुरानी पेंशन बहाली, क्रमोन्नति-पदोन्नति और ग्रेच्युटी का प्रथम नियुक्ति दिनांक से लाभ आदि शंकाओ को लेकर निरंतर अध्यापक संघर्ष समिति मध्यप्रदेश, शासकीय अध्यापक संघ, अध्यापक कांग्रेस मध्यप्रदेश और आजाद अध्यापक संघ (शिल्पी) प्रश्न उठाते रहे है वह सब अनुत्तरित रह जाएंगे। दुख इसी बात का है की इन अध्यापक संघो/संघर्ष समिति द्वारा उठाए गए प्रश्नों का इन संघों/संघर्ष समिति में शामिल अध्यापकों ने ही अपने नेतृत्व के आव्हानों का ईमानदारी से पालन नहीं किया और भरोसा उन अध्यापक संघों पर किया जिन पर सीधे सीधे आरोप लगते रहे हैं कि वे अध्यापक हित में काम ना करते हुए विशिष्ट उद्देश्य की पूर्ति के लिए अध्यापकों को भ्रमित करते रहे हैं और दावा करते रहे हैं कि हम अध्यापकों को शिक्षा कर्मी, संविदा शाला शिक्षक, गुरुजी नियुक्ति दिनांक से सेवा अवधि में वरिष्ठता दिलाकर रहेंगे और नियमित शिक्षक संवर्ग के सभी लाभ दिलवायेगे। 

इसी संदर्भ में 7 आॅक्टोबर को भोपाल में स्वागत समारोह का भी आयोजन अध्यापक संघों ने भोपाल में कर रखा था। आदर्श आचार संहिता के लगने के बावजूद यदि कुछ अध्यापक संघ स्वागत समारोह का आयोजन करते हैं तो यह उनका दुस्साहस ही माना जाएगा क्योंकि आदर्श आचार संहिता के लागू होते ही कोई भी राजनेता कोई नवीन घोषणा या आश्वासन अब अध्यापकों को देने की स्थिति मे नही है और ना अध्यापक संघो के नेता चरण वंदना कर नजदीकी होने का परिचय दे सकते है। चुनाव आयोग की कडी निगरानी रहेगी।

अध्यापकों की अब स्थिति यह है कि मध्यप्रदेश राज्य स्कूल शिक्षा सेवा में नियमित कैडर का चयन ना निगलते बनेगा ना उगलते बनेगा। बस दिसम्बर तक "दिल के अरमा आंसूओ मे बह गये "करूण गीत मन ही मन गुनगुनाते रहना है। जो अध्यापक संघ और संघर्ष समिती शोषण के नए क्रम को बहुत पहले ही भांप गई थी। उसने समय अनुकूल निर्णय लेकर माननीय न्यायालय की शरण समय रहते ले ली थी। अब सभी नियमित कैडर चयन करने वाले अध्यापकों को नियुक्ति तो मिल जाएगी लेकिन यह समस्त नियुक्तियां माननीय न्यायालय के निर्णय के अधीन होगी। 

इसलिए पूरे आदर्श आचार संहिता के दौरान नियमित कैडर चयन करने वाले अध्यापक और नियुक्ति पर असहमति देकर आक्रोश व्यक्त करने वाले अध्यापक संयमित आचरण करें और माननीय न्यायालय के नियुक्ति के संबंध में निर्णय का इंतजार करें। तब तक हर अध्यापक चिंतन करे की कही हम आवश्यकता से अधिक स्वार्थी तो नहीं हो गए थे या स्वार्थी अध्यापक संघो के बहकावे में तो नहीं आ गए थे। साथ ही उन चर्चित अध्यापक नेताओ को भी रोज याद करे जो बगैर सेवा शर्तों वाले चेक पर हस्ताक्षर करने के लिए प्रोत्साहित करने मे सफल हुए। अध्यापक संघो और संघर्ष समिति के संघर्षशील साथियों का तो अब भी मानना है कि 20 साल के संघर्ष का 100% लाभ लेने के लिए एक सप्ताह का भी धैर्य रख लेते तो स्थिति दूसरी होती।
एक अज्ञात व्यक्ति द्वारा भेजा गया पत्र
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