भोपाल। मध्यप्रदेश में भाजपा की रणनीति बदल दी है। सीएम शिवराज सिंह ने कमाने अपने हाथ में रखने की काफी कोशिश की। कन्यादान योजना में मंगलसूत्र घोटाले हुए, भावांतर योजना ने किसानों को परेशान कर दिया, 'माई का लाल' से दलित तो खुश नहीं हुए सवर्ण नाराज हो गए, संबल योजना से संभलने की कोशिश की लेकिन अब समझ आने लगा है कि सभी हितग्राही वोटर नहीं हो सकते, और ज्यादातर लाभार्थी तो पहले से ही भाजपा के वोटर हैं। कुल मिलाकर मध्यप्रदेश में 'फिर शिवराज' वाली लहर नहीं चल पाई। अब अटल बिहारी और हिंदुत्व पर फोकस किया जा रहा है ताकि लोगों के दिमाग में से 2013 से 2018 तक की यादें मिटाकर नए मुद्दे भरे जा सकें।
दिलों में आग भड़काकर वोट की रोटियां सिकेंगी
बता दें कि मध्यप्रदेश आरएसएस और भाजपा का मजबूत गढ़ जरूर रहा है परंतु यहां कट्टरवाद को कभी प्रोत्साहन नहीं मिला। जातिवाद दल सपा/बसपा को इस बार कांग्रेस जरूर महत्व दे रही है परंतु मतदाताओं ने कभी महत्व नहीं दिया। यहां राममंदिर के लिए चंदा दिया गया लेकिन बावरी के लिए दंगे नहीं भड़के। मध्यप्रदेश के नागरिक ना तो जातिवादी हैं और ना ही सम्प्रदायवादी। भाजपा ने भी यहां कभी कोई सुर्ख कार्ड नहीं खेला परंतु इस बार चाल शुरू हो गई है। 15 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस पर मदरसों को तिरंगा यात्रा निकालने और विडियो बनाने का फरमान इसी कड़ी का हिस्सा है। स्वयं CM शिवराज सिंह चौहान अपनी जीवन संगीनी साधना सिंह के साथ प्रदेश के मंदिर मंदिर का भ्रमण कर रहे हैं। भाजपा के नेता सोशल मीडिया पर देश भर के हिंदू विरोधी मामलों को मप्र की जनता के सामने प्रस्तुत कर रहे हैं ताकि दिलों में आग भड़काई जा सके।
समझदारों के लिए अटलजी हैं ना
भाजपा की दूसरी रणनीति है 'अटल बिहारी'। देश के सबसे लोकप्रिय नेता की मृत्यु का ऐसा लाभ भी लिया जा सकता है शायद किसी ने सोचा भी नहीं होगा। मध्यप्रदेश में एक बड़ा वर्ग है जो काफी कोशिशों के बावजूद कट्टरवादी बहाव में नहीं बहेगा। भाजपा ने ऐसे लोगों के लिए 'अटल बिहारी' का फोटो सजा लिया है। श्रृद्धांजलि सभाएं, कलश यात्राएं, योजनाओं के नाम और पता नहीं क्या क्या। टारगेट सिर्फ एक है। समझदार नागरिकों के सामने उम्मीद की एक किरण जगाना। जो कुछ मध्यप्रदेश और चुनावी राज्य राजस्थान व छत्तीसगढ़ में हो रहा है, देश के दूसरे राज्यों में नहीं हो रहा जबकि अब तो 80 प्रतिशत राज्यों में भाजपा की सरकार है।
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