
बता दें कि सीएम शिवराज सिंह ने खुद ऐलान किया था कि अध्यापक अब शिक्षा विभाग के कर्मचारी होंगे लेकिन बाद में 'राज्य शिक्षा सेवा' को मंजूरी दे दी गई। इस तरह सरकार ने अध्यापकों को तीसरी बार नया पदनाम दे दिया। अध्यापकों ने इसे सिरे से खारिज कर दिया था और एक बार फिर विरोध की बातें शुरू हो गईं थीं। पिछले बीस साल से आंदोलनरत अध्यापकों को इस बार सरकार से बड़ी उम्मीद थी। शिक्षा विभाग की मांग की जा रही थी, जिससे अध्यापकों को बीमा, पेंशन, तबादला व शिक्षक संवर्ग के समान अन्य सुविधाएं मिलतीं, लेकिन सरकार ने राज्य शिक्षा सेवा का गठन कर अध्यापकों को फिर जरूरी सुविधाओं से महरूम रखा।
नए कैडर से आपत्ति क्या है
नए कैडर में भी उक्त सुविधाएं के बारे में कोई जिक्र नहीं है, लेकिन जो नई सेवा शर्तें थोपी जा रही हैं, वह विसंगतिपूर्ण हैं। अब वरिष्ठता का निर्धारण अध्यापक संवर्ग दिनांक से किया जाएगा, जिसे 2007 में बनाया था, जबकि कई अध्यापक 1998 से कार्य कर रहे हैं। वरिष्ठता में तीन साल की संविदा अवधि की गणना भी नहीं की जाएगी। वर्तमान में वरिष्ठता की गणना प्रथम नियुक्ति दिनांक से होती है। प्रमोशन परीक्षा द्वारा किया जाएगा, लेकिन परीक्षा अर्हता में भी जातिगत भेदभाव किया जाएगा। प्रयोगशाला शिक्षक की पदोन्नति और गुरूजियों की वरिष्ठता का कोई प्रावधान नए कैडर में नहीं है।
प्रमोशन के लिए ग्रामीण क्षेत्र में तीन वर्ष सेवा करनी होगी, इस नियम से उन अध्यापकों को परेशानी हो सकती है, जिनकी नियुक्ति शहरी क्षेत्र में हुई और तबादला नीति नहीं होने से वह सालों से एक ही संस्था में कार्यरत हैं। इसके अलावा तबादला नीति के बारे में कुछ स्पष्ट नहीं किया गया। अवकाश नियमों को लेकर राज्य शिक्षा सेवा कोई उल्लेख नहीं है।
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