Motivational story in Hindi - चरित्र जीवन की बहुमूल्य संपदा

👉 जीवन की स्थायी सफलता का आधार मनुष्य का "चरित्र" ही है। इस आधार के बिना जैसे-तैसे सफलता प्राप्त कर भी ली जाए तो यह अधिक टिकाऊ नहीं हो सकती। व्यक्ति, परिवार, राष्ट्र की स्थाई समृद्धि और विकास हमारे चारित्रिक स्तर पर ही निर्भर करता है। चारित्रिक हीनता से ही शक्ति, समृद्धि और विकास का विघटन होता है। "चरित्र" एक दृढ़ चट्टान है, जिस पर खड़ा व्यक्ति अजेय और महान होता है। लोकमान्य तिलक ने कहा है- "संसार में सच्चरित्र व्यक्ति ही उन्नति प्राप्त करते हैं।"

👉 संपूर्ण जीवन कार्य, व्यवहार, विचार, मनोभावों की निर्मलता से ऊँचा उठता है। शुद्धि से ही "चरित्र" का गठन होता है। सेवा, दया, परोपकार, उदारता, त्याग, शिष्टाचार, सद्व्यवहार आदि चरित्र के बाह्य अंग हैं, तो सद्भाव, उत्कृष्ट चिंतन, नियमित-व्यवस्थित जीवन, शांत-गंभीर मनोभूमि चरित्र के परोक्ष अंग हैं।  आपके विचार इच्छाएँ, आकांक्षाएँ, आचरण जैसे हैं, उन्हीं के अनुरूप आपके चरित्र का गठन होता है और जैसा आपका चरित्र है, वैसी ही आपकी दुनिया बनती है। आपका जीवन, आपका संसार, आपके ही "चरित्र" की देन है ।

👉 चरित्रहीन व्यक्ति के पास यदि धन होगा, तो वह उसे भोग विलास और अन्य दुष्प्रवृत्तियों में जल्दी ही नष्ट कर डालेगा। ऐसा व्यक्ति यदि विद्वान है, तो वह अपनी प्रतिभा-बुद्धि को अनेक षड़यंत्र, छल-कपट, धोखा आदि में उपयोग करेगा। शक्तिशाली होगा तो अत्याचार करेगा। ऐसा धन, विद्वता, शक्ति समाज के लिए घातक है, जो चरित्रहीन व्यक्ति के हाथ में हों। चरित्रवान व्यक्ति हो इन विभूतियों का सदुपयोग कर अपना तथा दूसरों का भला कर सकता है।

👉 "उत्तम चरित्र" जीवन को सही दिशा में प्रेरित करता है, तो चरित्रहीनता पथ-भ्रष्ट करके कहीं भी विनाश के गर्त में ढकेल सकती है। खेद है कि भौतिकवाद की अंधी दौड़ में आज जीवन के मूल्यांकन के व्यापक स्तर बदलते जा रहे हैं। समाज में उनको प्रतिष्ठा मिलती है, लोग उनको महत्त्व देते हैं, जो धनी, संपत्तिवान विद्वान, प्रतिभाशाली और उच्च पदस्थ हैं। इन सबके समक्ष "चरित्र" को प्रायः हम भूलते जा रहे हैं। यही कारण है कि चरित्र का  मूल्य कम होता जा रहा है। हम धनवानों की जी हुजूरी करते हैं, नेताओं का मुँह तकते हैं, पंडितों की वाह-वाह करते हैं, किंतु चरित्रवान सदाचारी व्यक्ति को कोई महत्त्व नहीं देता। यह बहुत बड़ी सामाजिक विकृति है। इससे लोगों में चरित्र से विमुख होकर बाह्य सफलताएँ अर्जित करने की प्रवृत्ति पैदा होती है।
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