भय्यूजी महाराज: कुछ इस तरह गुजरा जीवन कि कहानी बन गया

प्रदीप सौरभ। भय्यूजी महाराज देश के लिए जानी-पहचानी शख्सियत नहीं थे लेकिन अन्ना का अनशन तुड़वाने में उनकी सक्रियता ने उनको देश भर में प्रख्यात कर दिया। भय्यूजी का असली नाम उदय सिंह शेखावत है लेकिन महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश में लोग उन्हें भय्यूजी महाराज के नाम से ही जानते हैं। दोनों राज्यों में भय्यूजी महाराज के हजारों अनुयायी हैं। भय्यूजी महाराज का दोनों प्रदेशों के दिग्गज नेताओं और कारोबारियों से भी अच्छे रिश्ते रहे हैं। वो खुद को गृहस्थ संत कहते थे। उन्होंने 2 शादियां की थीं। उनकी पर्सनल लाइफ किसी फिल्मी स्टोरी से कम नहीं है। 

भय्यूजी जरा दूजे किस्म के संत थे

भय्यूजी महाराज गृहस्थ जीवन में रहते हुए संत-सी जिंदगी जीते हैं। उनकी वाणी में ओज है। चेहरे पर तेज है। उनकी एक बेटी कुहू है। वह आपको ट्रैक सूट में भी मिल सकते हैं और पैंट-शर्ट में भी। भय्यूजी जरा दूजे किस्म के संत हैं। एक किसान की तरह वह अपने खेतों को जोतते-बोते हैं तो बढ़िया क्रिकेट भी खेलते हैं। घुड़सवारी और तलवारबाजी में उनकी महारत है तो वह कविताएं भी लिखते हैं। जवानी में उन्होंने सियाराम शूटिंग शर्टिंग के लिए पोस्टर मॉडलिंग भी की है। मजेदार यह है कि वह फेस रीडर भी हैं।

राजनीति में गहरी पैठ, RSS प्रमुख भागवत भी उनके भक्त

29 अप्रैल 1968 में मध्य प्रदेश के शाजापुर जिले के शुजालपुर में जन्मे भय्यूजी के चहेतों के बीच धारणा है कि उन्हें भगवान दत्तात्रेय का आशीर्वाद हासिल है। महाराष्ट्र में उन्हें राष्ट्र संत का दर्जा मिला हुआ है। वह सूर्य की उपासना करते हैं। घंटों जल समाधि करने का उनका अनुभव है। राजनीतिक क्षेत्र में उनका खासा प्रभाव है। उनके ससुर महाराष्ट्र कांग्रेस के अध्यक्ष भी रहे हैं। केंद्रीय मंत्री विलासराव देशमुख से उनके करीबी संबंध हैं। बीजेपी अध्यक्ष नितिन गडकरी से लेकर संघ प्रमुख मोहन भागवत भी उनके भक्तों की सूची में हैं। महाराष्ट्र की राजनीति में उन्हें संकटमोचक के तौर पर देखा जाता है।

वेश्याओं के 51 बच्चों अपना नाम दिया

भय्यूजी महाराज पद, पुरस्कार, शिष्य और मठ के विरोधी थे। उनके अनुसार देश से बड़ा कोई मठ नहीं होता। व्यक्तिपूजा को वह अपराध की श्रेणी में रखते थे। उन्होंने महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश में शिक्षा, स्वास्थ्य, पर्यावरण और समाज सेवा के बडे़ काम किए। महाराष्ट्र के सोलापुर जिले के पंडारपुर में रहने वाली वेश्याओं के 51 बच्चों को उन्होंने पिता के रूप में अपना नाम दिया। बुलडाना जिले के खामगांव में उन्होंने आदिवासियों के बीच 700 बच्चों का आवासीय स्कूल बनवाया। इस स्कूल की स्थापना से पहले जब वह पार्धी जनजाति के लोगों के बीच गए तो उन्हें पत्थरों से मार कर भगा दिया गया लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और आखिर में उनका भरोसा जीत लिया। मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र में उनके कई आश्रम हैं। 

दक्षिणा के पैसों से 10 हजार छात्रों को स्कॉलरशिप

भय्यूजी महाराज ग्लोबल वॉर्मिंग से भी चिंतित थे, इसीलिए गुरु दक्षिणा के नाम पर एक पेड़ लगवाते थे। अब तक 18 लाख पेड़ उन्होंने लगवाए हैं। आदिवासी जिलों देवास और धार में उन्होंने करीब एक हजार तालाब खुदवाए। वह नारियल, शॉल, फूलमाला भी नहीं स्वीकारते थे। वह अपने शिष्यों से कहते हैं फूलमाला और नारियल में पैसा बर्बाद करने की बजाय उस पैसे को शिक्षा में लगाया जाना चाहिए। ऐसे ही पैसे से उनका ट्रस्ट करीब 10 हजार बच्चों को स्कॉलरशिप देता है। उनका मानना है कि सही होने पर कभी भी समझौता नहीं करना चाहिए और मैं ऐसा ही करता हूं।
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