ई-टेंडर घोटाला: अब तक 1500 करोड़ की गडबड़ी मिली

भोपाल। सरकार के ई-प्रोक्योरमेंट सिस्टम के जरिए हुए ई-टेंडर घोटाला की जांच शुरू हो गई है। अब तक मध्यप्रदेश रोड डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन (एमपीआरडीसी) और जल संसाधन विभाग के टेंडरों में भी सेंधमारी उजागर हुई है। मैपआईटी के प्रमुख सचिव मनीष रस्तोगी इसकी वजह तकनीकी ख्रामी और वेबसाइट हैक होना बता रहे हैं। आरोप है कि इस ई-टेंडर घोटाला कुल 3 लाख करोड़ रुपए का है, जांच के दौरान 1500 करोड़ रुपए की गड़बड़ियां पकड़ी जा चुकीं हैं। इस मामले में तकनीकी खराबी के नाम पर अधिकारियों को बचाने का प्रयास किया जा रहा है जबकि कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ का कहना है कि यह एक सोची समझी साजिश है। इसकी सीबीआई जांच होनी चाहिए। 

रद्द हो चुके हैं 1 हजार करोड़ के तीन टेंडर
इससे पहले मैपआईटी जल निगम के 1 हजार करोड़ के तीन टेंडर निरस्त करवा चुका है। विभाग द्वारा ई-प्रोक्योरमेंट पोर्टल से होने वाले दूसरे विभागों के टेंडर भी जांचे गए हैं। ई पोर्टल में टेंपरिंग से दरें संशोधित करके टेंडर प्रक्रिया में बाहर हो रही कंपनी को टेंडर दिलवा दिया जाता था। ऐसा करके मनचाही कंपनियों को कांट्रेक्ट हासिल हो जाता था। हालांकि अभी टेंपरिंग के सभी मामलों की जांच शुरू नहीं हुई है। इसमें कुछ ऐसे टेंडर भी हैं जिनके एग्रीमेंट होने के बाद काम शुरू हो चुका है।

बचाव- 24 घंटे पुराने टेंडर भी पोर्टल से हटाए
1. मैप आईटी अफसरों ने ई-प्रोक्योरमेंट पोर्टल से पुराने ओपन टेंडर और ठेके पर दिए जा चुके टेंडर को देखने की सुविधा हटा दी है। पहले टेंडर में फाइनेंशियल बिड में पहले और दूसरे नंबर पर आने वाली कंपनियों को देखा जा सकता था।
2.पीएस रस्तोगी ने जल संसाधन विभाग के 300 करोड़ के दो टेंडर निरस्त करने भी पत्र लिखे है। इनमें संदिग्ध लाल क्रास दिखा था, जो हैक होने की पुष्टि करता है। इसमें पहले और दूसरे नंबर पर आने वाली कंपनियों के टेंडर कीमतों में मामूली अंतर है।

मुंबई से हुई ऑनलाइन घुसपैठ
ई टेंडरिंग की वेबसाइट को हैक कर जल निगम के टेंडर की शर्तें बदलने के लिए दो कंप्यूटर का उपयोग किया गया। इनकी आईपी आर्थिक अपराध शाखा (ईओडब्ल्यू) को मिल गई है। यह दोनों आईपी एड्रेस एयरटेल कंपनी के हैं। इनकी लोकेशेन मुंबई बताई जा रही है। ईओडब्ल्यू एयरटेल को पत्र लिखकर उनसे डिटेल मांगेगा। हैकर्स ने पिछले माह कंपनी के डिजिटल सिग्नेचर बदल दिए थे। इस सिग्नेचर के जरिए ई प्रोक्योरमेंट के संचालक टेंडर बिड को अथेंटिकेट करते हैं। टेंडर में गड़बड़ी सामने आने के बाद जब अधिकारियों ने अपने डिजिटल सिग्नेचर डालकर उसके हैश से अथेंटिकेशन करना चाहा तो नहीं हो सका। हैश किसी बैंक लॉकर कि दूसरी चॉबी की तरह होता है जो बैंक के पास होती है। वह उसे ग्राहक के चाबी लगाने के बाद लगाकर लॉकर खोलता है। यह खुलासा होने के बाद अधिकारी हतप्रभ रह गए। उन्होंने तत्काल इसकी जानकारी अपने वरिष्ठ अधिकारियों को दी।

पीएचई के टेंडर के लिए बदले गए थे हैश
यह हैश केवल जल निगम के 1100 करोड़ के टेंडर के लिए बदले गए थे। आईपी की पड़ताल होने के बाद यह पता चल सकता है कि डिजिटल सिग्नेचर के कोड बदलने में किसी ई टेंडरिंग की साइट से जुड़े अधिकारी या कर्मचारी का हाथ तो नहीं है। अधिकतर अधिकारियों के डिजिटल सिग्नेचर उनके स्टाफ के पास होते हैं। ऐसे में ये सभी लोग जांच के दायरे में आ सकते हैं।

चारों टेंडर में रेट एक जैसे
एमपीआरडीसी ने 7 और 27 दिसंबर 2017 को 5 पैकेज के टेंडर जारी किए थे। ये सभी टेंडर एक साथ 10 मई को निरस्त कर दिए गए। मैप आईटी ने पैकेज-12 के लिए लिखा है, लेकिन टेंडर में लगभग एक जैसी कीमतें आने से सवाल उठ रहे है। बाकी के 4 पैकेज में सभी कंपनियों के टेंडर की कीमतों में मामूली अंतर दिखा है।

कैसे होता फैसला?
ई-प्रोक्योरमेंट सिस्टम में टेंडर को एंपावर्ड कमेटी अंतिम रुप देती है। इसके प्रमुख मुख्य सचिव बसंत प्रताप सिंह है। कमेटी में संबंधित विभाग के प्रमुख सचिव, वित्त के प्रमुख सचिव, मैप आईटी के प्रमुख सचिव को रखा गया है। ये कमेटी एमपीआरडीसी में 10 करोड़ से उपर की लागत वाले तथा जल निगम में 5 करोड़ की लागत के प्रोजेक्ट वाले टेंडरों को मंजूरी देती है।

अब तक का सबसे बड़ा घोटाला सीबीआई जांच की मांग
मध्यप्रदेश कांग्रेस कमेटी अध्यक्ष कमलनाथ का कहना है कि ई-टेंडर टेम्परिंग के मामले की जांच सीबाीआई को सौंपी जाए। ई-टेंडरिंग के मामलों की निष्पक्ष जांच हुई तो यह प्रदेश के इतिहास का अब तक का सबसे बड़ा घोटाला साबित हाेगा।
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