
हमें एक सरल सी बात समझ लेनी होगी कि तूफान तापक्रमों के अंतरों से पैदा होते और चलते हैं। मैदानों में उच्च तापमान और दूसरे इलाकों में निम्न तापमान का अंतर हवाओं का रुख बदलता है व उच्च तापमान के कारण रिक्तता को भरने के लिए हवाएं चलती हैं। जितना बड़ा यह अंतर होगा,उतना ही तेज तूफान व बवंडर होगा। हाल में ही आया बवंडर पाकिस्तान बॉर्डर के गांव नवाबशाह के उच्च तापमान के कारण बना था। वहां अप्रैल के अंत में तापमान ५० डिग्री सेल्सियस पार कर गया था। इस तरह के तूफान को वैज्ञानिक भाषा में “डाउन बस्र्ट” कहते हैं और यही बवंडर राजस्थान, पंजाब व उत्तर प्रदेश में पहुंचने पर “थंडर स्टॉर्म” बना। इसी समय गरमी के कारण बंगाल की खाड़ी में उच्च तापक्रम में वाष्पोत्सर्जित हवा ने भी इस बवंडर का साथ दिया। यह पिछले २० साल में सबसे बड़ा तूफान था।
दुनिया भर में घट रही ऐसी चरम मौसमी आपदाएं बड़े खतरों की ओर संकेत कर रही हैं। और इन सबके पीछे एक ही कारण है, धरती का बढ़ता तापमान। माना जाता है कि अगर तापमान इसी तरह बढ़ता रहा, तो इस सदी के अंत तक तापक्रम में नौ डिग्री फारेनहाइट तक बढ़ोतरी हो जाएगी। डर यह है कि शायद उसके बाद वापसी असंभव होगी। इस बदलाव में एक बड़ा कारण वातावरण में कार्बन डाईऑक्साइड का बढ़ता घनत्व भी है।
बदलते जलवायु व तापमान को तूफान तक ही सीमित नहीं समझा जाना चाहिए, यह बर्फ पिघलने का भी सबसे बड़ा कारण बन गया है। एक अध्ययन के अनुसार, वर्ष 1960 से 2015 तक उत्तरी अमेरिका, यूरोप और एशिया में जहां एक तरफ तेज रफ्तार से बर्फ पिघली है, तो वहीं दूसरी तरफ ऊंचे इलाकों में बर्फ जमने में लगभग 10 प्रतिशत की कमी आई है। जलवायु परिवर्तन का एक बड़ा असर इस रूप में भी सामने आया है कि पहाड़ों में बर्फ पड़ने के समय में भी एक बड़ा अंतर आ चुका है। हिमालय में बर्फ गिरने का उचित समय नवंबर-दिसंबर ही होना चाहिए, ताकि उसे जमने के लिए पर्याप्त समय मिल सके। इन सब घटनाओं के शुरुआती संकेत 18वीं शताब्दी से ही मिलने शुरू हो गए थे, जब दुनिया में औद्योगिक क्रांति का जन्म हुआ। इसके ही बाद हम विकास के एक वीभत्स चक्रव्यूह में फंसते चले गए। आज हालात ये हैं कि कभी बवंडरों से या फिर बाढ़ से या फिर शीतलहर से दुबके पड़े हैं। इससे मुक्त होने का रास्ता अगर कहीं है, तो इन घटनाओं को समझने और इन पर सोचने का है, क्योंकि हम अब भी नहीं सोच रहे हैं।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।