अध्यापकों की ई-अटेंडेंस मामले में हाई कोर्ट ने सरकार को दिया नोटिस

मंडला। अध्यापकों/शिक्षकों सहित स्कूली अमले के लिये एम शिक्षा मित्र के माध्यम से ई-अटेंडेंस लगाने के स्कूल शिक्षा विभाग के आदेश के खिलाफ माननीय उच्च न्यायालय ने सरकार को नोटिस जारी किया है और 6 सप्ताह के अंदर जवाब मांगा है। डी.के.सिंगौर व अन्य विरुद्ध मप्र शासन मामले में दायर याचिका पर 18 मई को माननीय विजय कुमार शुक्ला की एकल पीठ में सुनवाई हुई। सुनवाई उपरांत माननीय न्यायालय ने याचिका स्वीकार करते हुये दोनो मोड में नोटिस जारी किया है और 6 सप्ताह के अंदर जवाब मांगा है। माननीय न्यायालय ने यह भी आदेशित किया है कि याचिका का एक मीमो अलग से सह पत्रों सहित शासकीय अधिवक्ता को भी दिया जाये ताकि उन्हें भी निर्देश प्राप्त करने के लिये सक्षम बनाया जा सके। याचिकाकर्ताओं द्वारा आदेश के अमल पर रोक लगाये जाने की मांग पर न्यायालय ने कहा कि शासन का लिखित में जवाब आने के बाद रोक लगाने पर विचार किया जायेगा।  अगली सुनवाई की तारीख 25 जून तय की गई है। 

उल्लेखनीय है कि राज्य अध्यापक संघ जिला मंडला के डी के सिंगौर सहित 53 अध्यापक और शिक्षकों ने मिलकर एम शिक्षा मित्र के माध्यम से स्वयं के मोबाइल द्वारा अटेंडेंस लगाने और उसी आधार पर वेतन बिल जनरेट किये जाने वाली कन्डिका को न्यायालय में चुनौती दी थी और उस पर रोक लगाने की मांग की थी। याचिकाकर्ताओं ने याचिका में कहा था कि ग्रामीण क्षेत्रों वाली अधिकांश शालाओं में मोबाइल नेटवर्क नहीं रहता जिससे अटेंडेंस नहीं लग सकेगी और बेवजह उनका वेतन काटा जायेगा। लगभग 30 याचिकाकर्ताओं ने शपथ के साथ बताया कि उनके स्कूल वाले गांव में नेटवर्क कभी भी नहीं रहता है। याचिका कर्ताओं ने यह भी कहा कि निजी मोबाइल से अटेंडेंस लगवाया जाना उचित नहीं है कर्मचारी इसे घर पर भूल भी सकते हैं गुम या खराब भी हो सकता है ऐसे में स्कूल में उपस्थित होने के बावजूद वेतन काट लिया जायेगा। कोर्ट में यह दलील भी दी गई कि कई कर्मचारी मोबाइल उपयोग नहीं करते हैं उन्हें मोबाइल उपयोग करने के लिये बाध्य नहीं किया जा सकता है। 

याचिकाकर्ताओं ने कहा कि वे ई अटेंडेंस के विरोधी नहीं है पर निजी मोबाइल के स्थान पर अन्य कार्यालयों की  भांति बायोमेट्रिक मशीन आदि का उपयोग होना चाहिये। उल्लेखनीय है कि एम शिक्षा मित्र मोबाइल एप के जरिये 2एप्रिल 2018 से अटेंडेंस लगाने के निर्देश सरकार ने दिये थे इस मामले की पहली सुनवाई 2 एप्रिल को ही कोर्ट में हुई थी लेकिन सरकारी अधिवक्ता ने यह कहकर समय ले लिया था कि मुख्यमंत्री जी ने अध्यापकों और शिक्षकों के विरोध के बाद खुद इस पर रोक लगाने की बात कही है। शासन ने एम शिक्षा मित्र मामले में कोर्ट में पहले से ही केवियेट दायर कर दिया था। बता दें कि शासन ने जून माह से फिर इसे अनिवार्य कर दिया है। याचिकाकर्ताओं की ओर से अधिवक्ता के.सी.घिल्डियाल ने पैरवी की।

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