PEB: नॉर्मलाइजेशन के नाम पर घोटाले को वैधानिक कर दिया गया ? | MP NEWS

भोपाल। मप्र पटवारी भर्ती परीक्षा के बाद प्रोफेशनल एग्जामिनेशन बोर्ड एक बार फिर संदेह की जद में आ गया है। ये वही दफ्तर है जहां देश का एतिहासिक व्यापमं घोटाला किया जा चुका है। सिर्फ बोर्ड बदला है, बाकी सबकुछ पुराना ही है। याद दिला दें कि व्यापमं घोटाले के समय भी चीजों को इस तरह से जमाया गया था कि लम्बे समय तक कोई उसे पकड़ ना पाए। सवाल यह है कि क्या 'नॉर्मलाइजेशन' व्यापमं घोटाले से सबक लेकर तैयार की गई व्यवस्था है ताकि घोटाले को वैधानिक कर दिया जाए। फिर कभी इसे पकड़ा ही ना जा सके। 

कैसे जन्म हुआ नॉर्मलाइजेशन का
व्यापमं घोटाले के व्हिसल ब्लोअर एवं देश भर में नागरिकों के संवैधानिक अधिकारों के लिए लड़ने वाले सामाजिक कार्यकर्ता डॉ. आनंद राय ने बताया कि यदि कोई आॅनलाइन परीक्षा कई दिनों में होती है तो उसमें हर दिन अलग पेपर आता है। ऐसे में उम्मीदवारों ने इसका विरोध किया। उनका कहना था कि हमारी पाली में जो पेपर आया वो कठिन था। दूसरी पाली में सरल था। बस इसी शिकायत को आधार बनाकर 'नॉर्मलाइजेशन' की शुरूआत कर दी गई। 

क्या होता है 'नॉर्मलाइजेशन' पद्धति में
नॉर्मलाइजेशन सिस्टम के तहत पेपर कितना कठिन था इसका स्तर तय किया जाता है। इसके आधार पर अंक निर्धारित कर दिए जाते हैं। मान लीजिए, परीक्षा के पहले दिन पेपर कठिन था तो अनुमान लगा लिया गया कि इस ​पेपर में यदि कोई 70 नंबर भी ले आया तो उसे 100 नंबर मान लिया जाएगा। जबकि दूसरे दिन पेपर बहुत सरल था तो इसका उल्टा कर दिया जाएगा। 100 नंबर लाने वाले को 70 नंबर मान लिया जाएगा। 

इसमें अन्याय पूर्ण क्या है
डॉ. आनंद राय बताते हैं कि इस प्रक्रिया में अन्यायपूर्ण यह है कि सभी पेपरों का डिफिक्ल्टी लेवल एक समिति द्वारा तय किया जाता है। इस समिति में कुछ मनुष्यों को शामिल किया जाता है। चूंकि प्रक्रिया में मनुष्य शामिल हो गए अत: आॅनलाइन और कम्प्यूटराइज्ड परीक्षा का अर्थ ही खत्म हो गया। प्रत्येक मनुष्य किसी ना किसी चीज से प्रभावित होता है। वो अयोग्य हो सकता है, उसे मूर्ख बनाया जा सकता है, वो सरल हो सकता है, गलतियां कर सकता है, भाई भतीजावाद कर सकता है, किसी संगठन विशेष के प्रति रुचि रख सकता है और लालची भी हो सकता है। यदि किसी भी परीक्षा प्रणाली में पेपर सेट करने के बाद और परिणाम से पहले किसी मनुष्य का हस्तक्षेप हो गया तो इसे कम्प्यूटराइज्य नहीं कहा जा सकता। 

इसमें घोटाला कैसे हो सकता है
डॉ राय बताते हैं कि अब तो सबको पता है कि यदि उम्मीदवारों का एक समूह एक निर्धारित प्रक्रिया का पालन करते हुए पर्चा दाखिल करेंगे तो सभी को एक ही परीक्षा केंद्र और एक ही तारीख मिलेगी। समिति को आसानी से बताया जा सकता है कि जिस समूह को पास करना है उसका केंद्र व तारीख क्या थी। समिति उस पेपर का डिफिकल्टी लेवल हाईएस्ट कर देगी। इस तरह जिसे 60 नंबर मिले वो अपने आप 100 पर आ जाएगा। एक सिंडिकेट यह सबकुछ आसानी से कर सकता है। व्यापमं घोटाले में भी सिंडिकेट बन गया था। नॉर्मलाइजेशन में भी इससे इंकार नहीं किया जा सकता। 

बड़े मुद्दे की बात
सबसे बड़े मुद्दे की बात यह है कि जिस दिन के पेपर का डिफिकल्टी लेवल सबसे नीचे कर दिया गया उस दिन पेपर देने वाले किसी भी उम्मीदवार को नॉर्मलाइजेशन के बाद 100 में से 100 नहीं मिलेंगे जबकि स्क्रीन पर उसे 100 दिखाई देंगे। पेपर में 100 से ज्यादा का आंकड़ा ही नहीं है। इस तरह वो अपने आप पीछे हो जाएगा। वो योग्यता होने के बावजूद टॉपर नहीं हो सकता। नॉर्मलाइजेशन पद्धति में टॉपर वही हो सकता है जिसके पेपर का डिफिकल्टी लेवल सबसे हाई कर दिया जाए। 

संदेह का एक कारण यह भी है
मप्र पटवारी परीक्षा में सीपीसीटी अनिवार्य हुआ करती थी परंतु इस परीक्षा से पहले सीपीसीटी की शर्त को स्थगित कर दिया गया। इस तरह सुनियोजित साजिश रची गई कि उम्मीदवारों की भीड़ लग जाए। जब भीड़ ज्यादा होगी तो नॉर्मलाइजेशन करने के सारे अवसर हाथ में आ जाएंगे। स्वभाविक है प्रतियोगिता बढ़ेगी तो सीट के दाम भी बढ़ जाएंगे। ज्यादा कालाधन कमाया जा सकेगा। 

कौन तय करेगा नॉर्मलाइजेशन सही हुआ या नहीं
सबसे बड़ा सवाल यह है कि सरकारी प्रक्रिया में शिकायत और उसके निवारण की प्रक्रिया होती है लेकिन 'नॉर्मलाइजेशन' के मामले में ऐसा कुछ भी नहीं है। यदि कोई उम्मीदवार चुनौती देना चाहता है कि 'नॉर्मलाइजेशन' गलत हुआ है तो वो कहां शिकायत करे, कैसे चुनौती दे। कहां इस चुनौती का परीक्षण होगा। कैसे तय किया जाएगा कि नॉर्मलाइजेशन सही हुआ या नहीं। एक समिति में मौजूद 5 लोग, 10 लाख उम्मीदवारों के भाग्यविधाता कैसे हो सकते हैं। 

इस समस्या का समाधान क्या है
इस समस्या का केवल एक ही समाधान है। पेपर एक ही दिन में होना चाहिए। सरकार के पास संसाधन नहीं है तो इसका खामियाजा उम्मीदवार क्यों भरें। सरकार को संसाधन बढ़ाना चाहिए। बोर्ड एक दिन में एक पेपर नहीं करा सकता, उसे भंग कर दिया जाना चाहिए। देश भर की कई परीक्षाओं में नॉर्मलाइजेशन पद्धति का उपयोग किया गया था परंतु अब सबको समाप्त किया जा रहा है। पीईबी में भी इसे समाप्त कर दिया जाना चाहिए।

सवाल डॉ राय से क्यों पूछा, पीईबी से क्यों नहीं पूछा
ये है वो जवाब जो पीईबी ने दिया

नॉर्मलाइजेशन के नाम पर यदि कोई सिंडीकेट काम कर रहा है तो उसके लोग आपत्ति उठा सकते हैं कि नॉर्मलाइजेशन सवाल डॉ. आनंद राय से क्यों पूछा। पीईबी से क्यों नहीं पूछा। नॉर्मलाइजेशन पद्धति पीईबी ने तैयार की है तो सवाल भी पीईबी से ही पूछा जाना चाहिए। मजेदार जवाब है कि पीईबी ने इसका जवाब पहले से ही दे रखा है। इस चित्र में देख लीजिए। समझ आ जाए तो सबको बता दीजिए कि यह किस तरह से पारदर्शी है और क्यों इसमें घोटाला नहीं हो सकता। डॉ. आनंद राय से यह सवाल इसलिए पूछा गया क्योंकि वो नार्मलाइजेशन के मामले में पहले भी एक लड़ाई लड़ चुके हैं। वो इस प्रक्रिया को भलीभांति जानते हैं और इसे रद्द करा चुके हैं। 

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