माता लक्ष्मी ने रखा था इस धाम का नाम, देवताओं ने कुण्ड से निकालकर दी थी प्रतिमा | HINDU TEMPLE

BADRINATH DHAM हिंदुओं के चार धामों में से एक है। यह मंदिर भगवान विष्णु के रूप बदरीनाथ को समर्पित है। जहां हर साल लाखों श्रद्धालु भगवान बदरी विशाल के दर्शन के लिए आते हैं। इस क्षेत्र का NAME बदरीनाथ कैसे पड़ा इसके पीछे रोचक कथा (STORY) है। माना जाता है कि  इस क्षेत्र में बदरी (बेड) का जंगल होने से यहां का नाम बदरीनाथ पड़ा। इस बारे में कहावत है कि 'जो जाए बदरी, वो ना आए ओदरी' यानी जो व्यक्ति बदरीनाथ के दर्शन कर लेता है, उसे पुनः माता के गर्भ में फिर नहीं आना पड़ता। माना जाता है बदरीनाथ के दर्शन मात्र से ही इंसान को पापों से मुक्ति मिल जाती है।  

भक्तों का उमड़ता है सैलाब

धार्मिक मान्यता है कि एक बार देवी लक्ष्मी, भगवान विष्णु से रूठकर मायके चले गयी थी। तब भगवान विष्णु देवी लक्ष्मी को मनाने के लिए तपस्या में लीन हो गए। कहा जता है जब देवी लक्ष्मी की नाराजगी दूर हुई, तो देवी लक्ष्मी भगवान विष्णु को ढूंढते हुए उस जगह पहुंच गई, जहां भगवान विष्णु तपस्या में लीन थे। उस समय उस स्थान पर बदरी (बेड) का जंगल था।

नारदकुण्ड से निकाल कर की स्थापित
माना जाता है कि भगवान विष्णु ने बेड के पेड़ में बैठकर तपस्या की थी। इसलिए लक्ष्मी जी ने भगवान विष्णु को बदरीनाथ नाम दिया। बदरीनाथ की मूर्ति शालिग्रामशिला से बनी हुई, चतुर्भुज ध्यानमुद्रा में है। कहा जाता है कि यह मूर्ति देवताओं ने नारदकुण्ड से निकालकर आदिगुरू शंकराचार्य ने स्थापित की थी। मंदिर के कपाट खुलते ही लोग भगवान बदरीनाथ के दर्शन के लिए लालायित रहते हैं। 

गजब का उत्साह  मिलता है देखने को 
कपाट खुलते ही बदरीनाथ के दर्शन के लिए श्रद्धालुओं में गजब का उत्साह देखने को मिलता है। भगवान बदरीनाथ धाम में मानों ऐसा प्रतीक होता है कि अलकनंदा नदी मानों भगवान बदरीनाथ के चरणों को पखार रही हो। कल-कल बहती अलकनंदा नदी श्रद्धालुओं को अपनी मौजूदगी का अहसास कराती रहती है। 

#buttons=(Accept !) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Check Now
Accept !