
हमारे देश में लाखों वेबसाइट शुरू हो रही हैं हर दिन इनकी संख्या में इजाफा हो रहा है , तो दूसरी ओर वेबसाइट हैकिंग की घटनाएं भी दिनों-दिन बढ़ती जा रही हैं। तमाम सरकारी वादों और दावों के बाद भी देश में साइबर सुरक्षा का ऐसा मजबूत नेटवर्क नहीं बना है, जो इन घटनाओं को रोक सके। यदि दूसरे देशों द्वारा वेबसाइटों की हैकिंग की जाती है, तो किस नीति और कानून के तहत उन्हें सजा के दायरे में लाया जाएगा। देश में साइबर अपराध के मामलों में ‘सूचना तकनीक कानून २००० ’ और ‘सूचना तकनीक (संशोधन) कानून२००८ ’ लागू होते हैं। साइबर अपराध के कुछ मामलों में आइटी डिपार्टमेंट की तरफ से जारी किए गए आइटी नियम २०११ के तहत भी कार्रवाई की जाती है। आइटी (संशोधन) एक्ट २००८ की धारा ४३ (ए), धारा ६६ , आइपीसी की ३७९ और ४०६ के तहत अपराध साबित होने पर तीन साल तक की जेल या पांच लाख रुपए तक जुर्माना हो सकता है। बावजूद इसके साइबर अपराधों में कोई कमी नहीं आई है।
देश में हजारों मामले ऐसे होते हैं, जिन्हें या तो लोग दर्ज नहीं करवाते हैं या स्थानीय पुलिस दर्ज नहीं करती। वरना इस तरह के मामलों की संख्या और भी ज्यादा होती। अगर अब भी सरकार, साइबर सिक्योरिटी को लेकर कोई ठोस पहल या कदम नहीं उठाती, तो देश को इसके गंभीर नतीजे भुगतना पड़ेंगे।
वर्ष २००० का ‘इन्फॉरमेशन टेक्नोलॉजी एक्ट (आइटी एक्ट)’ साइबर सुरक्षा की द्रष्टि से ज्यादा सशक्त था, लेकिन साल २००८ के संशोधन ने इस कानून को बिल्कुल अपाहिज बना दिया है। कानून में संशोधनों ने ज्यादातर साइबर अपराधों को जमानती बना दिया है। इसका नतीजा यह हुआ कि अगर कोई अपराधी जमानत पर बाहर आता है, तो वह सबूतों को नष्ट कर देता है। सबूतों के अभाव में साइबर अपराधी बरी हो जाते हैं।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।