शीतला सप्तमी क्यों मनाई जाती है, पढ़िए पूरी कथा

देश के तमाम हिस्सों में गुरूवार को महिलाओं ने बड़े उत्साह के साथ शीतला सप्तमी मनाई। कुछ लोग शुक्रवार को मनाएंगे। घरों को शुद्ध और पवित्र करते हुए बुधवार की रात को तैयार किये गए ठंडे खाने का भोग लेकर महिलाएं प्रातः काल से ही शीतला माता मंदिर में पहुंचने लगी। प्रदेश के सभी शीतला माता मंदिरों पर सुरक्षा को लेकर प्रशासन के खासे इंतज़ाम भी किये गए, माता की पूजा अर्चना को लेकर काफी उल्लास के साथ लंबी-लंबी कतारे देखी गई। महिलाओं ने शीतला माता को भोग लगाने के बाद घरों पर हल्दी के छापे लगाए गए। 

जानकारों के अनुसार अनेक हिस्सों में यह पर्व शुक्रवार को भी मनाया जाएगा, यहां गुरुवार को सप्तमी का पूजन किया गया वहीं 9 मार्च को अष्टमी का पूजन होगा। पूजा अर्चना के दौरान महिलाओं द्वारा 'हृं श्रीं शीतलायै नमः' मंत्र का मन में उच्चारण किया गया। कहा जाता है कि सर्दी में हम रखा हुआ भोजन दूसरे दिन भी ग्रहण कर लेते है परंतु इस दिन के बाद से रखा हुआ भोजन स्वास्थ्य के लिए ठीक नहीं है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार माँ शीतला को ठन्डे भोजन का भोग इसी मान्यता के अनुरूप लगाया जाता है।

कथा इस प्रकार है....
एक बार शीतला सप्तमी के दिन एक परिवार में बूढ़ी औरत और उनकी दो बहुओं ने शीतला माता का व्रत रखा। मान्यता के अनुसार इस दिन सिर्फ बासी भोजन ही खाया जाता है, इसी वजह से रात को ही माता का भोग सहित अपने लिए भी भोजन बना लिया। लेकिन बूढ़ी औरत की दोनों बहुओं ने ताज़ा खाना बनाकर खा लिया। क्योंकि हाल ही में उन दोनों को संतान हुई थीं, इस वजह से दोनों को डर था कि बासी खाना उन्हें नुकसान ना करे।

यह बात उनकी सास को मालूम चली कि दोनों ने ताज़ा खाना खा लिया, इस बात को जान वह नाराज हुई। थोड़ी देर बाद पता चला कि उन दोनों बहुओं के नवजात शिशुओं की अचानक मृत्यु हो गई। अपने परिवार में बच्चों की मौत के बाद गुस्साई सास ने दोनों बहुओं को घर से बाहर निकाल दिया। दोनों अपने बच्चों के शवों के लेकर जाने लगी कि बीच रास्ते कुछ देर विश्राम के लिए रूकीं। वहां उन दोनों को दो बहनें ओरी और शीतला मिली। दोनों ही अपने सिर में जूंओं से परेशान थी। उन बहुओं को दोनों बहनों को ऐसे देख दया आई और वो दोनों के सिर को साफ करने लगीं, कुछ देर बाद दोनों बहनों को आराम मिला, आराम मिलते ही दोनों ने उन्हें आशार्वाद दिया और कहा कि तुम्हारी गोद हरी हो जाए। 

इस बात को सुन दोनों बहुएं रोने लगी और अपने बच्चों के शव दिखाए। ये सब देख शीतला ने दोनों से कहा कि कर्मों का फल इसी जीवन में मिलता है, ये बात सुनकर वो दोनों समझ गई कि ये कोई और नहीं बल्कि स्वंय शीतला माता हैं। ये सब जान दोनों ने माता से माफी मांगी और कहा कि आगे से शीतला सप्तमी के दौरान वो कभी भी ताज़ा खाना नहीं खाएंगी। इसके बाद माता ने दोनों बच्चों को फिर से जीवित कर दिया। इस दिन के बाद शीतला माता का व्रत धूमधाम से मनाए जाने लगा।
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