वीर सावरकर: महात्मा गांधी नहीं लेनिन से प्रभावित थे

प्रभास के दत्ता/नई दिल्ली। त्रिपुरा में 25 साल के कम्युनिस्ट शासन को उखाड़ फेंकने के जोश में कई लोग व्लादिमीर लेनिन की मूर्तियां तोड़ने में लग गए हैं. कई दक्ष‍िणपंथी नेता तो इसे वाजिब ठहराते हुए इसके लिए तर्क भी गढ़ने लगे हैं. लेकिन ऐसे लोग यह जानकर चकित हो सकते हैं कि उनके लिए हिंदुत्व के प्रतीक पुरुष वीर सावरकर खुद साम्यवादी क्रांति के अगुआ व्लादीमीर लेनिन से लंदन में मिले थे. साम्यवाद के अंध विरोधी बीजेपी-आरएसएस के कार्यकर्ताओं और समर्थकों को यह जानकर भी हैरानी होगी कि हिंदू हृदय सम्राट कहे जाने वाले विनायक दामोदर सावरकर लेनिन के प्रशंसक थे और अक्सर रूसी नेताओं द्वारा लिखे जाने वाले पर्चों को पढ़ते थे.

यह हर कोई जानता है कि महात्मा गांधी की विचारधारा को सावरकर पसंद नहीं करते थे. उन्होंने महात्मा गांधी की अहिंसक स्वतंत्रता संग्राम के विचार का विरोध किया था. इस मामले में सावरकर लेनिन जैसे क्रांतिकारियों को ज्यादा व्यावहारिक मानते थे. बीसवीं सदी में देश से बाहर स्वतंत्रता संग्राम का एक प्रमुख केंद्र लंदन का इंडिया हाउस था. क्रांतिकारी श्यामजी कृष्ण वर्मा ने 1905 में लंदन में एक मकान खरीदा था, जिसे बाद में भारतीय छात्रों के हॉस्टल के रूप में इंडिया हाउस में बदल दिया गया. इसके उद्घाटन समारोह में स्वतंत्रता संग्राम के हमारे प्रमुख नायकों में से दादाभाई नौरोजी, लाला लाजपत राय और मैडम भीकाजी कामा गई थीं. ब्रिटिश शासन के दौरान यह भारत की आजादी के आंदोलन का मुख्य केंद्र बन गया था.

साल 1906 में वीर सावरकर कानून की पढ़ाई के लिए लंदन गए थे. उन्होंने तीन साल तक इंडिया हाउस में रह कर पढ़ाई की. वे एक प्रखर वक्ता थे जिसकी वजह से जल्दी ही लंदन में रहने वाले भारतीयों के बीच काफी लोकप्रिय हो गए.

इंडिया हाउस में अक्सर दूसरे देशों जैसे रूस, आयरलैंड, टर्की, मिस्र, ईरान और चीन जैसे देशों के क्रांतिकारी नेता आते थे. सावरकर के एक ब्रिटिश मित्र थे जी. अल्फ्रेड जिनका संपर्क रूसी क्रांति के नायक लेनिन से था. लेनिन की ख्याति उन दिनों रूस से लेकर यूरोप तक पहुंच गई थी. खुद वीर सावरकर के जीवन पर आधारित वेबसाइट के अनुसार अल्फ्रेड 1909 में लेनिन को वीर सावरकर से मिलाने के लिए इंडिया हाउस लेकर गए थे. बताया जाता है कि लेनिन चार बार इंडिया हाउस गए थे.

लेनिन से काफी प्रभावित थे सावरकर  
यह पता नहीं चल पाया है कि दोनों की मुलाकात के दौरान क्या बातें हुईं थीं, लेकिन यह कहा जाता है कि सावरकर इन मुलाकातों के बाद लेनिन के विचारों से काफी प्रभावित हुए. उन्होंने जार के शासन वाले रूस में बदलाव लाने के लेनिन के तरीके की सराहना की. बाद में यही सावरकर जनसंघ, बीजेपी और तमाम दक्ष‍िणपंथी संगठनों के प्रेरणास्रोत बन गए.

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