2003 से ब्रिटिश कंपनी तय करती आ रही है किस राज्य में किस पार्टी की सरकार होगी | NATIONAL NEWS

नई दिल्ली। भारत की राजनीति में एक बार फिर ब्रिटिश कंपनी का दखल सामने आया है। ब्रिटिश कंपनी कैम्ब्रिज एनालिटिका के पूर्व रिसर्च हेड डेविड वायली ने खुलासा किया है कि कंपनी के पास भारत के 600 जिलों और 7 लाख गांवों के लोगों की विस्तृत जानकारी है। इसमें जातिगत और दूसरी श्रेणियां शामिल हैं। बताया गया है कि यह कंपनी 2003 से सफलतापूर्वक काम कर रही है। इस कंपनी के अधिकारी तय करते हैं कि किस राज्य में किस पार्टी की सरकार होगी। इस कंपनी के अधिकारी भारत में सक्रिय राजनीतिक पार्टियों से संपर्क करते हैं और मोटी रकम के बदले उन्हे बताते हैं कि उनके राज्यों में कौन से मुद्दे उठाए जाएं, चुनाव में क्या करें कि जीत पक्की हो और ऐसा होता आया है। 

कंपनी ने लोकसभा चुनाव समेत उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश, बिहार, दिल्ली और छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनाव में पार्टियों के लिए काम किया था। वायली ने सिर्फ एक पार्टी जनता दल यूनाइटेड का नाम लिया है, जिसके लिए उसने 2010 के बिहार विधानसभा चुनाव में काम किया था। कैम्ब्रिज एनालिटिका भारत में स्ट्रैटजिक कम्युनिकेशंस लैबोरेटरी (एससीएल) के जरिए सक्रिय थी। एससीएल की पैरेंट कंपनी एनालिटिका ही थी।

विदेशी कंपनी के पास पूरे देश की जानकारी
1) वायली ने जो डॉक्युमेंट ट्वीट किए हैं, उसमें दावा किया गया है कि एससीएल के पास भारत के 600 शहरों और 7 लाख गांवों का डेटा मौजूद है, जिसे लगातार अपडेट रखा जाता है। 
2) एससीएल का काम अपने क्लाइंट्स (राजनीतिक पार्टी) के लिए सही टारगेट ग्रुप की पहचान करना था। मकसद यह था कि आबादी के एक तबके के व्यवहार को इस तरह प्रभावित किया जाए कि क्लाइंट्स (राजनीतिक पार्टी) को मनमुताबिक नतीजे मिल सकें। 
3) कंपनी भारत में माइक्रो लेवल पर जानकारी जुटाती थी। इसमें परिवारों की स्थिति और जाति आधारित डेटा शामिल था जिसे ऑनलाइन मैपिंग एप्लीकेशंस से लिंक किया गया था। 
4) कंपनी अपने क्लाइंट्स को इस डेटा के बारे में पूरी रिसर्च मुहैया कराती थी ताकि वे सही कम्युनिकेशन चैनल्स का इस्तेमाल कर सही स्रोतों के जरिए सही जानकारी लोगों तक पहुंचा सके।

उत्तर प्रदेश चुनाव:
2012: चुनावी साल 2012 में एससीएल ने एक राष्ट्रीय पार्टी के लिए जातिगत सर्वे किया था। इसमें पार्टियों के मुख्य वोटर्स और बदलने वाले वोटर्स के व्यवहार का विश्लेषण भी किया गया था। 
2011: चुनाव से एक साल पहले 2011 में एससीएल ने राज्य के करीब 20 करोड़ वोटर्स पर जाति के आधार पर रिसर्च किया था। इसके आधार पर प्रत्याशियों को जो डेटा मुहैया कराया गया उससे उन्हें अपने क्षेत्र के समर्थकों और मुद्दों को लामंबद करने में आसानी हुई। 
2007: उत्तर प्रदेश चुनावों में एससीएल ने एक प्रमुख चुनावी पार्टी के लिए पूरे राज्य का राजनीतिक सर्वे किया था। इसमें पार्टी के ऑडिट समेत राज्यभर में राजनीति से जुड़े लोगों की अहम जानकारियां जुटाना भी शामिल था। 

आम चुनाव 2009:
इस साल आम चुनावों में एससीएल ने कई लोकसभा प्रत्याशियों के चुनाव अभियान चलाने में मदद की। प्रत्याशियों के रिसर्च ग्रुप्स ने एससीएल इंडिया के डेटा का इस्तेमाल किया। इससे पार्टियों को सफल योजनाएं बनाने और जीत दर्ज करने में आसानी हुई।

बिहार चुनाव 2010:
राज्य चुनाव में सत्ताधारी जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) ने एससीएल से चुनावी रिसर्च और प्लानिंग बनाने के लिए संपर्क किया था। एससीएल ने करीब 75% घरों की रिसर्च की थी। इस डेटा से पार्टी को सही मुद्दे और जातियों के सही समीकरण बिठाते हुए अभियान करने में मदद मिली थी।

मध्यप्रदेश चुनाव 2003:
एससीएल ने 2003 के मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में एक नेशनल पार्टी के लिए चुनावी विश्लेषण किया था। इसका मुख्य उद्देश्य आखिरी समय में फैसला करने वाले वोटर्स की राय जानना था। इन विश्लेषणों से पार्टी अपने हिसाब से जातिगत समीकरण बिठा सकती थीं और चुनाव की तैयारियां कर सकती थी।

राजस्थान चुनाव 2003:
एक मुख्य राजनीतिक दल ने एससीएल के साथ दो अहम सेवाओं के लिए संपर्क किया। पहला पार्टी की अंदरूनी ताकत जानने की कोशिश और दूसरा मतदाताओं के वोटिंग पैटर्न पता लगाना।

दिल्ली और छत्तसीगढ़ चुनाव:
दिल्ली और छत्तीसगढ़ चुनावों में भी एससीएल की तरफ से मतदाताओं के व्यवहार से जुड़े कुछ विश्लेषण किए गए थे। हालांकि, डॉक्युमेंट में चुनावों के साल की जानकारी नहीं दी गई है।

केरल, पश्चिम बंगाल, असम, बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश 2007
एससीएल ने 2007 में 6 राज्यों में लोगों की समझ और समीकरणों का पता लगाने के लिए एक अभियान में हिस्सा लिया था।

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