ये हैं नरेंद्र मोदी की हेल्थ केयर पॉलिसी के नियम व शर्तें | NATIONAL NEWS

पवन कुमार/नई दिल्ली। केंद्र सरकार की घोषणा के अनुसार, देश की 50 करोड़ आबादी को पांच लाख रुपये तक का मुफ्त स्वास्थ्य बीमा (HEALTH INSURANCE) मिलेगा। मगर इसके जरिए किसी भी अस्पताल के निजी वार्ड में इलाज नहीं कराया जा सकेगा। यानी इस स्कीम के तहत सिर्फ जनरल वार्ड में ही इलाज की सुविधा मिलेगी। निजी वार्ड में इलाज कराते हैं तो सीधे तौर पर इस स्कीम से बाहर माने जाएंगे। कुल मिलाकर यह बीमा केवल गंभीर बीमारियों के लिए ही फायदेमंद होगा। इसके अलावा मौसमी बीमारियों का इलाज प्राइवेट अस्पताल में करा सकेंगे लेकिन यह प्राइवेट मेडिक्लैम पॉलिसी जैसा नहीं होगा। 

नीति आयोग के सलाहकार (स्वास्थ्य) आलोक कुमार ने इस संबंध में बताया कि जो लोग निजी वार्ड में इलाज कराना चाहेंगे तो उन्हें अपनी जेब से ही पूरा पैसा खर्च करना होगा। उन्होंने कहा कि इस स्कीम में इस तरह की भी कोई व्यवस्था नहीं है कि निजी वार्ड का खर्च मरीज दे और बाकी का खर्च स्वास्थ्य बीमा से काटा जाए। आलोक कुमार ने बताया कि देश के जरूरतमंद लोगों को हेल्थ सिक्योरिटी मिले इसके लिए योजना की शुरुआत की गई है। इससे जिन 50 करोड़ लोगों को स्वास्थ्य का लाभ मिलेगा उनमें ज्यादातर स्वास्थ्य के क्षेत्र में बुनियादी सुविधाओं तक ही सीमित थे। 

घुटना प्रत्यारोपण, किडनी और लिवर प्रत्यारोपण, बाइपास सर्जरी, हार्ट में स्टेंट लगवाना हो, वॉल्व लगवाना हो या दूसरी मंहगी सर्जरी करानी हो तो वे इससे वंचित ही रह जाते थे। योजना के अनुसार, हर बीमारी के इलाज का चार्ज भी तय किया गया है और इसके अनुसार ही पेमेंट होगा। निजी अस्पताल ने सही बिल बनाया है या नहीं इसे जांचने के लिए भी एक रेगुलेशन सिस्टम तैयार किया जाएगा। राज्य अपने यहां की जरूरतों के हिसाब से इलाज और सर्जरी की कीमत में मामूली फेरबदल कर सकेंगे। हर राज्य में निजी अस्पताल तय करने की जिम्मेदारी भी राज्य सरकार की होगी। 

आमतौर पर जो स्वास्थ्य बीमा होता है उसमें आपकी बीमा राशि के अनुसार प्रति दिन कितने रुपये वाला रूम मरीज ले सकता है, निर्भर करता है। मसलन यदि पांच लाख रुपये का स्वास्थ्य बीमा है तो आप प्रतिदिन ढाई हजार से पांच हजार रुपए तक का रूम ले सकते हैं। अलग-अलग बीमा कंपनियां बीमा राशि का एक से दो फीसदी हिस्सा बेड के लिए देती हैं। 

...तो कानून में करना होगा बदलाव 
जनरल वार्ड में इलाज का फैसला तो ठीक है लेकिन कानूनी तौर पर इसे लागू करा पाना मुश्किल होगा। दरअसल किसी भी इंश्योरेंस में कुल बीमा राशि के एक से दो फीसदी हिस्से से बिस्तर लिया जा सकता है। ऐसे में इसे लागू करने से पहले कानून में बदलाव करना पड़ सकता है। 
डॉ. केकेअग्रवाल, पूर्व अध्यक्ष, इंडियन मेडिकल एसोसिएशन 
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