
साल 2000 में एक शख्स ने यूनाइटेड इंडिया इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड से पांच लाख की पॉलिसी ली थी। पॉलिसी लेने के बाद शख्स साल 2004 और 2006 में अस्पताल में भर्ती हुआ और उसने बिल को बीमा कंपनी को भेजा। बीमा कंपनी ने मेडिक्लेम दे दिया। इसके बाद ये शख्स फिर अस्पताल में भर्ती हुआ। 27 नवंबर से लेकर 30 नवंबर 2011 के बीच इलाज का खर्च 7 लाख 78 हजार का खर्च आया, लेकिन इस बार कंपनी ने ये कहकर पैसे देने से इनकार कर दिया कि जेनेटिक डिसऑर्डर पॉलिसी के दायरे से बाहर है।
याचिकार्ता ने दलिल दी कि जब उसने ये INSURANCE POLICY ली थी, उस वक्त ये पॉलिसी दायरे से बाहर नहीं थी, लेकिन कंपनी ने बाद में इसे जोड़ दिया और कंपनी ने उसे सूचित नहीं किया। निचली अदालत ने कहा कि आवेदक को 5 लाख रुपये का भुगतान करे।