नई दिल्ली। दिल्ली हाई कोर्ट ने इंश्योरेंस रेग्युलेशन डेवलपमेंट अथॉरिटी ऑफ इंडिया (IRDA) को फटकार लगाई है। हाई कोर्ट का कहना है कि बीमा कंपनी का द्वारा GENETIC DISORDER को हेल्थ बीमा के दायरे से बाहर रखना भेदभाव वाला है। ये भेदभाव संविधान के अनुच्छेद-14 का उल्लंघन करता है। हाई कोर्ट ने आईआरडीए को निर्देश दिए हैं कि वो जेनेटिक डिसऑर्डर को बाहर रखने के फैसले पर फिर से विचार करें। बता दें, इस मामले में निचली अदालत भी अपना DECISION सुना चुकी है। निचली अदालत के फैसले को सही ठहराते हुए दिल्ली हाई कोर्ट ने बीमा कंपनी को ORDER दिया है कि वह आवेदक को 5 लाख रुपये और दावे की तारीख से अब तक 12 फीसदी ब्याज का भुगतान करे।
साल 2000 में एक शख्स ने यूनाइटेड इंडिया इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड से पांच लाख की पॉलिसी ली थी। पॉलिसी लेने के बाद शख्स साल 2004 और 2006 में अस्पताल में भर्ती हुआ और उसने बिल को बीमा कंपनी को भेजा। बीमा कंपनी ने मेडिक्लेम दे दिया। इसके बाद ये शख्स फिर अस्पताल में भर्ती हुआ। 27 नवंबर से लेकर 30 नवंबर 2011 के बीच इलाज का खर्च 7 लाख 78 हजार का खर्च आया, लेकिन इस बार कंपनी ने ये कहकर पैसे देने से इनकार कर दिया कि जेनेटिक डिसऑर्डर पॉलिसी के दायरे से बाहर है।
याचिकार्ता ने दलिल दी कि जब उसने ये INSURANCE POLICY ली थी, उस वक्त ये पॉलिसी दायरे से बाहर नहीं थी, लेकिन कंपनी ने बाद में इसे जोड़ दिया और कंपनी ने उसे सूचित नहीं किया। निचली अदालत ने कहा कि आवेदक को 5 लाख रुपये का भुगतान करे।