
यह बात शनिवार को इंदौर आए ऑल इंडिया काउंसिल फॉर टेक्निकल एजुकेशन (एआईसीटीई) के चेयरमैन अनिल सहस्त्रबुद्धे ने कही। उन्होंने कहा कि सिर्फ एम टेक और पीएचडी करने से यह समझ विकसित नहीं हो पाती है कि पढ़ाया कैसे जाए। फैकल्टी बच्चों को ट्रेंड्र करें, इससे पहले उनकी ट्रेनिंग ज़रूरी है, ताकि वे उस विजन को समझ सकें। इसके लिए हम आठ नए मॉड्यूल ला रहे हैं। हमें सिस्टम में हर स्तर बदलाव करना हैं और इसकी कार्ययोजना पूरी तरह तैयार है।
इंजीनियरिंग कॉलेज में थिंकर्स लैब भी बनाएंगे
इस तरह स्टूडेंट्स को इनोवेशन के लिए समय मिलेगा जो देश और समाज की ज़रूरत है। इनोवेटर्स तैयार हों इसके लिए देशभर के इंजीनियरिंग और फॉर्मेसी कॉलेजेस में थिंकर्स लैब बनाएंगे। जहां बच्चे प्रयोग कर सकेंगे। यह सब जुलाई 2018 में शुरू होने वाले सत्र से होगा। आज जो युवा ग्रेजुएशन कर रहे हैं उनका कॅरियर अपने पीक पर तब होगा जब आर्टिफीशियल इंटेलीजेंस आधारित हो जाएगी दुनिया। ये बदलाव उसी की तैयारी हैं।
क्रेडिट में बांटेंगे कोर्स, ताकि इंडस्ट्री के मुताबिक तैयार हों युवा
इंजीनियरिंग कॉलेजों में हर सेमेस्टर, लैब वर्क, प्रोजेक्ट वर्क को क्रेडिट में बांटा गया है। डिग्री पाने के लिए स्टूडेंट्स को 200 या 220 क्रेडिट चाहिए होते हैं। इस सिस्टम के चलते वे नंबर और क्रेडिट पाने की दौड़ में ही रह जाते हैं। हमें सिर्फ रटने वाले नहीं, स्किल्ड यूथ चाहिए जो कॉलेज के दौरान ही इंडस्ट्री के मुताबिक बन जाएं। कुछ नया रचें जो आम आदमी की रोज़मर्रा की मुसीबतें सुलझाए। जैसे हाल ही में एक युवा ने रेलवे पार्सल गुम होने की समस्या हल करने के लिए सेंसर बनाया है। इसका पायलेट रन जल्द ही किया जाएगा। देशभर में नए इनोवेशन हों इसके लिए क्रेडिट्स 220 से घटाकर 160 किए जा रहे हैं।