प्रवीण दुबे। मैंने कई बार मुख्यमंत्री Shivraj Singh Chouhan से इंटरव्यू के दौरान पूछा है कि छोटे-छोटे चुनावों में क्यूँ इतनी ऊर्जा लगाते हैं..? हर बार हुलस कर शिवराज जी जवाब देते हैं कि.. "जब हमारा कार्यकर्त्ता हमारे लिए जी-जान एक करता है, तो हम उसके लिए क्यूँ न करें...." दरअसल इसके पीछे वज़ह कुछ और है.. 15 साल में बीजेपी एक भी ऐसा नेता पैदा नहीं कर पाई [या पैदा होने नहीं दिया गया] जो अपने दम से किसी एक इलाक़े का छोटा चुनाव जिता सकें। इसमें सबसे बड़ा जोखिम ये है कि जीत तो सीधे सेनापति के खाते में जाती है लेकिन हार गए, तो सेनापति के धराशाई होते ही पूरी सेना में भगदड़ मच जाती है।
शहडोल लोकसभा चुनावों तक, जब तक शिवराज जी का सिक्का चलता रहा, तब तक हर जीत का सेहरा उनके सिर पर बंधा लेकिन अटेर, चित्रकूट और उसके बाद ये नगरीय निकाय चुनाव... जहां एक तरफ थे शिवराज जी, उनके तमाम मंत्री, नरेंद्र सिंह तोमर और दूसरी तरफ सिर्फ कांग्रेस का आम कार्यकर्ता था, फिर भी भाजपा ने बहुत ख़राब प्रदर्शन किया।
अब भाजपा के अंदर से ही ये सवाल उठेगा कि क्या शिवराज जी की ग्राहता लोगों के बीच कम हो रही है...? युद्ध में सेनापति सबसे आख़िरी में होता है ताकि कुछ प्यादे खेत भी रहें, तो योद्धाओं का हौसला तो बना रहे। एमपी का सेनापति तो बख्तरबंद पहनावे में हर समय अग्रिम मोर्चे पर रहता है। अब बारी मुंगावली और कोलारस की है, वहां भी बीजेपी की पूरी सरकार, कुछ अधिकारी [जो भाजपा कार्यकर्त्ता के रोल में हैं] कई महीनों से जुटे हैं।
यदि वहां के नतीज़े भी गडबडाए तो शिवराज जी के लिए मुश्किल इस साल के आखिर में होने वाले विधानसभा चुनावों में हो सकती है। वैसे भी ये वोटर कांग्रेस के पक्ष में वोट नहीं दे रहा बल्कि मतदान भाजपा के खिलाफ़ हो रहा है। हालांकि मेरी सूचना है कि चुनाव से पहले संविदा कर्मचारियों को नियमित किया जाएगा। कई सारे लॉलीपॉप आएंगे सभी धर्मों के लोगों के लिए।
फिर भी संभलने की बारी भाजपा की है। अबकी बार दो सौ पार...या अबकी बार, नहीं पायेंगे पार... जय हो।
पत्रकार श्री PRAVEEN DUBEY ईटीवी मध्यप्रदेश के सीनियर एडिटर हैं।