
आमतौर पर हर जगह मर्द ही नमाज़ की अगुवाई यानि इमामत करते हैं। जमीदा का कहना है कि इस निर्णय से पुरुष प्रधान समाज पर सवालिया निशान लगेगा। कुरान में किसी भी धार्मिक कृत्य या विश्वास को लेकर कोई लैंगिक भेदभाव नहीं है। जमीदा का कहना है कि नमाज़, हज, ज़कात, रोज़ा जैसे सभी धार्मिक कृत्यों में औरत या मर्द में भेदभाव नहीं किया गया है। ये बाद में कुछ मुस्लिम जानकारों द्वारा किया गया।
क़ुरान एवं सुन्नत सोसायटी की स्थापना इस्लामिक क्लेरिक चेकन्नूर मौलवी द्वारा किया गया था, जो कि इस्लाम के विवादित और गैर-रुढ़िवादी व्याख्या के लिए जाने जाते रहे थे। 29 जुलाई, 1993 को वो अचानक गायब हो गए और अब माना जा रहा है कि उनकी मृत्यु हो चुकी है। यूएसए की एक स्कॉलर और प्रोफेसर अमीना वदूद ने 2005 में जुमे की नमाज अदा कराना शुरू किया था।
केरल में महिला इमाम ने जुमे की नमाज़ करवाई अदा, आई कट्टरपंथियों के निशाने पर pic.twitter.com/cSgwQZVr7d— NBT Hindi News (@NavbharatTimes) January 27, 2018