स्वामी विवेकानंद सामान्य मनुष्य नहीं, सप्तऋषि मंडल के पुंज अवतार थे: JYOTISH का दावा

कहते है जब स्वामी विवेकानंद का जन्म होने वाला था, तब रामकृष्ण परमहंस ने सप्तऋषि मंडल के तेजपुंज को विवेकानंद के रुप में जन्म लेने की बात पहले ही जान ली थी। वे सप्तऋषि मंडल के पुंज थे इसीलिये बहुत कम समय में ही वे पूरे संसार में लोकप्रिय हो गये। जबकि उस समय  आज के समय जैसे संचार के साधन भी नही थे। स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी 1863 को धनु लग्न और कन्या राशि में हुआ था। धनु लग्न धर्म और मोक्ष के अधिपति गुरु का अग्नितत्व लग्न है। सूर्य इस लग्न में भाग्य का स्वामी होता है, जो उनके लग्न में स्थित है। इस कारण स्वामी विवेकानंद का भाग्य सूर्य के समान तेजस्विता लिये हुआ था। जिस तरह सूर्य पूरे विश्व को रोशनी देता है, उसी तरह स्वामीजी ने अल्पअवधि में पूरे विश्व को ज्ञान दिया। 

लग्न का स्वामी गुरु तुला राशि में लाभ भाव में स्थित है पंचम यानी विद्या, बुद्धि स्थान का स्वामी मंगल स्वग्रही होकर पंचम स्थान में गुरु की पूर्ण दृष्टि में है, स्वामी जी प्रखर तेजस्वि आत्मा थे। वे एक बार जिस चीज़ को पढ़ लेते थे वो उन्हे हमेशा याद रहता था। 

द्वितीय अर्थात वाणी स्थान में बुध और शुक्र विद्यमान है वही वाणी स्थान का स्वामी शनिचंद्र के साथ राज्यस्थान में स्थित है वाणी स्थान का स्वामी राज्य में राज्य का स्वामी वाणी स्थान में है, दोनों स्थान में राशि परिवर्तन हुआ है। जिससे उनकी वाणी आज भी अमर है, व्यय भाव में राहु तथा दशम स्थान में शनि ने उन्हे वैराग्य दिया, उनके विचारों की आज पूरे विश्व को आवश्यकता है, उनकी जन्मतिथि पर उन्हे शत-शत वंदना।
*प.चंद्रशेखर नेमा"हिमांशु"*
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