भोपाल। मध्यप्रदेश की शिवराज सिंह सरकार अब चुनावी मोड में है। वोट जुटाने के लिए सरकारी खजाना खर्च किया जा रहा है। मप्र पर वैसे भी डेढ़ लाख करोड़ से ज्यादा का कर्ज है। चुनावी साल में यह कर्ज भी काफी बढ़ जाएगा। चुनावी साल होने के कारण सरकार महंगे और खर्चीेले कार्यक्रमों पर रोक लगाना नहीं चाहती। खर्चीली यात्राएं भी ज्यादा होंगी। सड़क बनाने के लिए आम जनता पर एक नया टैक्स लगाया जा चुका है। हालात यह हैं कि मध्यप्रदेश की सरकार अब देश में अपनी जनता से सबसे ज्यादा टैक्स वसूलने वाली सरकार बन गई है। अत: मप्र के 5 लाख से ज्यादा कर्मचारियों को इस साल महंगाई भत्ता (डीए) लटकाने की तैयारी कर ली है।
वित्त विभाग के अधिकारियों के मुताबिक इस साल राज्य के वित्तीय संसाधन काफी सीमित हो गए हैं, इसलिए कर्मचारियों का महंगाई भत्ता कुछ समय के लिए अटक सकता है। हालांंकि केंद्र सरकार ने अभी केंद्रीय कर्मचारियों के लिए महंगाई भत्ता बढ़ाने का एलान नहीं किया है। केंद्र सरकार के फैसले के बाद ही राज्य सरकार उसी अनुपात में राज्य के कर्मचारियों का महंगाई भत्ता बढ़ाती है। लेकिन, फिलहाल राज्य सरकार की वित्तीय हालत बहुत अच्छी नहीं है।
अगले बजट की तैयारियों में जुटे वित्त विभाग ने फिलहाल नई योजनाओं को मंजूरी नहीं दी है। वित्त विभाग के अधिकारियों के मुताबिक कर्मचारियों को डीए देने पर करीब 500 करोड़ स्र्पए का राज्य सरकार पर बोझ आएगा। राज्य सरकार फिलहाल इतने बड़ा वित्तीय बोझ सहने की स्थिति में नहीं है।
इसलिए कर्मचारियों का महंगाई भत्ता बढ़ाने का फैसला लेने में कुछ देर हो सकती है। हालांकि जब भी डीए देने का फैसला होगा तो उन्हें एरियर भी दिया जाएगा। गौरतलब है कि केंद्र सरकार हर छह महीने में कर्मचारियों का महंगाई भत्ता बढ़ाती है। कर्मचारियों को 1 जनवरी से 30 जून और 1 जुलाई से 31 दिसंबर तक महंगाई भत्ता दिया जाता है। पिछली बार केंद्र ने महंगाई भत्ता 4 से बढ़ाकर 5 फीसदी किया था। इसके बाद मप्र सरकार ने भी नवंबर में एक प्रतिशत डीए बढ़ाने का फैसला किया था।