
पत्रकार राजीव सोनी की रिपोर्ट के अनुसार 8 से 10 दिसंबर तक चले इस मुशायरे में बड़ी संख्या में राजधानी के गणमान्य नागरिक और शासकीय अधिकारी-कर्मचारी मौजूद थे। कार्यक्रम के दूसरे दिन शनिवार को गजल पढ़ते हुए शायरा डॉ. परवीन कैफ बोलीं 'शहादत बाबरी मस्जिद की जब भी याद आती है फरोगे गम में सब हंसना-हंसाना भूल जाती हूं।" गजल में और भी शेर थे, लेकिन बाबरी शहादत को लेकर वह अपनी बात पर अडिग रहीं।
इंसानियत के साथ धोखा...
अपनी प्रस्तुति के बाद पत्रकार राजीव सोनी से बातचीत के दौरान भी डॉ. कैफ ने इस मुद्दे पर खुलकर अपनी बात रखी। जब उनसे पूछा गया कि शायर-कलाकार तो अमूमन सियासत और मजहब से ऊपर उठकर इंसानियत की बात करता है? इस पर उनका जवाब था कि इंसानियत के साथ धोखा हुआ। कार्यक्रम में तनवीर गाजी भी मौजूद थे जो कि अपनी शायरी में मोदी सरकार और गुजरात को निशाने पर रखने के लिए जाने जाते हैं।
आयोजकों को टोकना था...
कार्यक्रम में मौजूद एक अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि उर्दू तो मोहब्बत की जुबान है। बाबरी मस्जिद को लेकर जब शेर पढ़ा जा रहा था, तब आयोजकों को टोकना चाहिए था। ऐसा नहीं होना चाहिए, उन्होंने कहा कि सवाल तो उप्र विधान परिषद सदस्य वसीम बरेलवी और मुनव्वर राणा को लेकर भी उठना चाहिए।
'संस्कृत" का पर्व क्यों नहीं मनाते
आश्चर्य तो यह है कि संस्कृति विभाग 'संस्कृत" का पर्व तो मनाता नहीं, जश्न-ए-उर्दू में बाबरी का विलाप करने वालों को बुलाकर क्या संदेश देना चाहता है। भारतीय संस्कृति को संप्रदाय विशेष की तरफ इंगित कराना उचित नहीं।
रघुनंदन शर्मा, पूर्व सांसद एवं वरिष्ठ भाजपा नेता
मैंने नहीं सुना
इस पर मैं कोई प्रतिक्रिया नहीं दे सकता, क्योंकि मैं कार्यक्रम में देर से पहुंचा था। इसलिए मैंने कुछ सुना नहीं।
मुनव्वर राना, शायर
हम इसे शायरी नहीं मानते
मुशायरे के जिस शेर की आप बात कर रहे हैं उसे हम शायरी नहीं मानते। हम तो मुशायरे में आने वालों को पहले ही बोल देते हैं कि सियासी और सद्भावना खराब करने वाली शायरी न करें।
नुसरत मेहदी, सचिव, मप्र उर्दू अकादमी