घनश्याम अवस्थी अशोकनगर पर अनगिनत उपकार कर गए: श्रद्धांजली विशेष | GHANSHYAM AWASTHI ASHOKNAGAR

विनोद कुमार शर्मा। अशोकनगर के एक होनहार, समाजसेवी, एवं कस्बे को समर्पित घनश्याम अवस्थी का निधन, कस्बे पर कई प्रश्न छोड़ गया। घनश्याम अवस्थी परिवार से बहुत सम्पन्न एवं जमीन जायदाद वाले युवक थे, परन्तु वर्षों पहले पहले पिताजी ने कहा कि बाहर ही घूमते रहते हो घर भी रूका करो, तो उन्होंने घर से निकलना बन्द कर दिया था, एक खिड़की के पास कुर्सी लगा ली, वहीं से पूरी दुनियां देखने की कोशिश की। फिर एक दिन परेशान होकर पिताजी ने कहा इतना घर में रहने की जरूरत नहीं है, बाहर भी निकलने को कहा तो उसके बाद वे कभी अपने घर नहीं लौटे। 

पूरी क्लास को फेल कर दिया था
एक कमरा किराये पर लेकर प्रायवेट स्कूलों में पढाने का काम करने लगे। उनकी नियमानुसार चलने की जिद ने उन्हे हर जगह परास्त किया। एक स्कूल में जब वे पढाते थे तो कापी जांचने में उनकी पूरी क्लास के बच्चों को उन्होंने फेल कर दिया। मैनेजमेंट ने कहा कि इससे अगली क्लास बिगड़ जायेगी, इसलिये इन्हे पास करो। उन्होने एसा करने से मना कर दिया। इस तरह की ही घटनाआें के चलते वे कहीं भी नौकरी नहीं कर सके। दसवीं ग्यारहवी की उम्र से घर से निकले इन महानुभाव को सबने मनाया परन्तु घर नहीं लौटे। पिताजी की मृत्यु पर अंतिम संस्कार में सम्मिलित होने घर के बाहर तक आए। 

प्रशंसा पत्रों के बोरे भरे हुए हैं
फिर सुबह से शाम तक उनका एक ही काम था कि कहां उनकी जरूरत है। जैसे खेल हों, अस्पताल हो, रामलीला हो, वाचनालय हो, लाईफलाईन एक्सप्रेस हो, निर्वाचन का काम हो, जहां भी उनकी जरूरत रही उन्होने दिन रात काम किया। जिलाधीशों ने उन्हें सरकारी कर्मचारियों की तरह ही काम करने की छूट दे रखी थी। उनके पास उनके काम करने के एवज में प्रमाण पत्रों के बोरे भरे हुये थे। वर्षों से यही चलता रहा। शहर ने भी उन्हे इसी रूप में स्वीकार कर लिया था। किसी का इस बात पर ध्यान नहीं गया कि इस आदमी की कोई जरूरत भी हो सकती है। शहर के कलेक्टर एवं विधायक से लेकर एक सामान्य आम आदमी तक एक एक आदमी उन्हे उनके काम की वजह से जानता था। दैनिक खर्च उनका कम से कमतर होता चला गया। 

जीवित रहने के लिए अनिवार्य भोजन करते थे
मेरा व्यक्तिगत रूप से ऐसा मानना है। हो सकता है कि ये गलत भी हो कि शायद उस आदमी ने अपनी जिन्दगी शायद भूखे रहकर ही गुजारी क्योंकि कुछ लोगों ने बताया कि वे ज्यादातर पारलेजी बिस्किट खाकर ही काम चलाते रहे। भोजन भी करते थे पर लोगों का कहना है कभी कभार। फिर लोगों ने बताया कि पिछले कुछ दिनों से बीमार थे परन्तु इलाज नहीं करवाया। अंतत: वे अपने किराये के कमरे में मृत पाये गये। 

शहर ने कभी नहीं पूछा तुम्हारे लिए क्या करें
मुझे दुख इस बात का है कि यदि कोई आदमी प्रकृति ने अलग तरह का बनाया जो किसी से सेट नहीं होता था। पूरा समय समाज एवं शहर के लिये बिताता था। पता नहीं कहां जाकर सो जाता था। पता नहीं कहां खाना खाता था। अपनी निजी चीजें समस्याएं, दुख, बीमारी किसी से शेयर नहीं की। स्वाभिमान या जिद, इतनी की बीमारी को भी सुधारने का प्रयास नहीं। बहुत दुख है। ये मानकर भी कि एक आदमी ने शहर को इतना कुछ किया परन्तु शहर ने आगे रहकर कभी नहीं पूछा कि हम तुम्हारे लिये क्या करें। इसके पीछे ये भी कारण रहा होगा कि उनके बडे भाई ने कई बार उन्हे घर आने को लौट आने को कहा परन्तु उन्होंने कभी स्वीकार नहीं किया। 

खेती बाडी वाला समृद्ध परिवार है। कहीं कचोटता जरूर है कि ऐसा नहीं होना चाहिये था। संभवत: उनकी उम्र 40 वर्ष के आसपास थी। समाज के एसे मिसफिट युवक को .........विनम्र श्रद्धांजली। 18 दिसम्बर 2013 को श्री घनश्याम अवस्थी कैलाशवासी हुए। 

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