डायग्नॉस्टिक सेंटरों से डॉक्टरों को 200 करोड़ रुपए कमीशन: पर्दाफाश | DOCTOR BLACK MONEY

Bhopal Samachar
नई दिल्ली। आयकर विभाग के अधिकारियों ने बंगलुरु में आईवीएफ क्लीनिकों और डायग्नॉस्टिक सेंटरों में तलाशी के बाद मेडिकल सेंटरों और डॉक्टरों के बीच एक बड़े गठजोड़ का पर्दाफाश किया है। जांच में करीब 100 करोड़ रुपये के कथित काले धन का भी पता चला है। वहीं यह भी खुलासा हुआ है कि डायग्नॉस्टिक सेंटरों ने डॉक्टरों को कमीशन के रूप में 200 करोड़ रुपए बांटे। खातों में इसे प्रोफेशनल फीस के नाम पर दर्ज किया गया। पता चला है कि डायग्नॉस्टिक सेंटर्स पर लगने वाली फीस का 20 से 35 प्रतिशत तक कमीशन डॉक्टर को दिया जाता है। आयकर विभाग ने दावा किया है कि मरीजों को मेडिकल जांच के लिए भेजने के लिए डॉक्टरों को कमीशन दिया जा रहे थे।

विदेशी खातों का खुलासा
विभाग ने कहा कि आयकर अधिकारियों ने दो इन-विट्रो फर्टिलाइजेशन (आईवीएफ) सेंटरों और पांच डायग्नॉस्टिक सेंटरों के खिलाफ अपनी तीन दिन की कार्रवाई के दौरान 1.4 करोड़ रुपए नगद और 3.5 किलोग्राम सोने-चांदी के आभूषण बरामद किए। उन्होंने विदेशी मुद्रा जब्त की और विदेशी बैंक खातों का पता लगाया, जिनमें करोड़ों रुपए जमा होने की बात सामने आ रही है। विभाग ने एक बयान में कहा कि​ जिन लैबों की तलाशी ली गई। उन्होंने 100 करोड़ रुपए से ज्यादा की ऐसी धनराशि घोषित की है, जिन्हें कहीं दिखाया नहीं गया है, जबकि एक ही लैब के मामले में रेफरल फीस यानी मरीजों को लैब जांच के लिए भेजने के बदले में डॉक्टरों को दी जाने वाली रकम 200 करोड़ रुपए से ज्यादा है।

कमीशन का रेट था तय
एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि​ डायग्नॉस्टिक सेंटरों में तलाशी से ऐसे विभिन्न तौर-तरीकों का पता चला जिससे डॉक्टरों को मेडिकल जांचों के लिए मरीजों को भेजने की एवज में पैसे दिए जा रहे थे। बयान के मुताबिक, 'कमीशन लैब दर लैब बदलता है, लेकिन डॉक्टरों के लिए कमीशन की रेंज एमआरआई के मामलों में 35 फीसदी और सीटी स्कैन और लैब जांचों के मामले में 20 फीसदी है। पाया गया कि इन भुगतानों को मार्केटिंग खर्चों के तौर पर पेश किया जाता है। विभाग ने कहा कि डॉक्टरों को रेफरल फीस का कम से कम चार तरीकों से भुगतान किया जाता था। इसमें हर पखवाड़े नगद भुगतान और अग्रिम नगद भुगतान भी शामिल था.।

एजेंट के जरिए भुगतान
कुछ मामलों में डॉक्टरों को चेक के जरिए भुगतान की जाने वाली रेफरल फीस को खाता-पुस्तिकाओं में प्रोफेशनल फीस लिखा जाता था। बयान के मुताबिक, एक करार के अनुसार डॉक्टरों को कंसल्टेंट के तौर पर नियुक्त किया गया था। हालांकि, न तो वे डायग्नॉस्टिक सेंटर आते थे, न मरीजों को देखते थे और न ही रिपोर्ट लिखते थे। इस भुगतान को रेफरल फीस के तौर पर दर्ज किया जाता था। विभाग ने दावा किया कि राजस्व साझेदारी समझौते के तहत डॉक्टरों को चेक के जरिए रेफरल फीस का भुगतान किया जाता था। कुछ लैबों ने कमीशन एजेंट नियुक्त कर रखे थे जिनका काम लिफाफों में डॉक्टरों को पैसे बांटना था।
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