
सोनिया गांधी 1998 में अध्यक्ष बनी थीं तो कांग्रेस टूटी थी। शरद पवार, तारिक अनवर और पीए संगमा ने अलग होकर राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी बनाई थी। उससे पहले सीताराम केसरी अध्यक्ष बने थे तब भी पार्टी टूटी थी और ममता बनर्जी ने अलग होकर तृणमूल कांग्रेस बनाई थी। उससे भी पहले पीवी नरसिंह के राव के अध्यक्ष बनने के बाद भी पार्टी टूटी थी और नारायण दत्त तिवारी के नेतृत्व में अर्जुन सिंह, माधव राव सिंधिया आदि नेताओं ने नई कांग्रेस बनाई थी। उसी समय जीके मूपनार ने अलग होकर तमिल मनीला कांग्रेस बनाई थी। यह सिलसिला और पीछे तक जाता है। इंदिरा गांधी ने ब्रह्मानंद रेड्डी को अध्यक्ष बनवाया था, तब भी पार्टी टूटी थी और खुद इंदिरा गांधी जब प्रधानमंत्री बनी थीं, तब भी कांग्रेस का विभाजन हुआ था।
लाख टके का सवाल है कि क्या फिर कांग्रेस का इतिहास दोहराया जाएगा और नया अध्यक्ष बनने के बाद पार्टी टूटेगी? कांग्रेस के जानकार नेताओं का कहना है कि सोनिया गांधी पार्टी के अंदर बगावत रोकने का प्रयास कर रही हैं। सूत्रों के मुताबिक 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद से ही पार्टी में टूट का अंदेशा है। कपिल सिब्बल, कमलनाथ, आनंद शर्मा जैसे कई नेता धुरी बने थे, जिनके संपर्क में राज्यों के कई नेता आ गए थे। पर बाद में इन नेताओं से बात की गई और उनको मनाया गया।
जानकार सूत्रों का कहना है कि कपिल सिब्बल ने राजनीतिक मामलों में हाथ डालने से इनकार कर दिया था। तभी उनको मनाने के लिए उन्हें ज्यादा तरजीह दी जा रही है। पार्टी के दूसरे वकील नेताओं के मुकाबले इस समय वे ज्यादा सक्रिय हैं। इसी तरह कमलनाथ को भी मनाया गया है। पर अब भी खतरा टला नहीं है। पार्टी के जानकार नेताओं का कहना है कि राहुल के कमान संभालने और उनके अपनी टीम बनाने का इंतजार किया जाएगा। उसके बाद कुछ नेता नई पार्टी का फैसला कर सकते हैं। इस काम में कांग्रेस छोड़ कर अलग पार्टी बनाने वाले पुराने नेता उनकी मदद करेंगे।