अरविंद भदौरिया: अपना अटेर जीत नहीं पाए, मुंगावली के भाग्य विधाता | MP NEWS

भोपाल। कोलारस एवं मुंगावली उपचुनाव में प्रभारियों की नियुक्तियों पर भाजपा के भीतर ही सवाल उठ रहे हैं। लोग खुलकर कह रहे हैं कि इस तरह के प्रभारियों की नियुक्ति करके सीएम शिवराज सिंह ने सिंधिया के सामने हथियार डाल दिए हैं। सबसे बड़ा सवालिया निशान अरविंद भदौरिया की नियुक्ति पर लगा है। भदौरिया को अटेर का चुनाव प्रभारी बनाया गया है। लोग सवाल कर रहे हैं कि जो अरविंद भदौरिया पूरी ताकत लगाने के बाद अपना अटेर चुनाव नहीं जीत पाए वो सिंधिया के खिलाफ मुंगावली की रणनीति कैसे बनाए पाएंगे। 

मुंगावली विधानसभा सीट सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया के संसदीय क्षेत्र में आती है। यहां से महेन्द्र सिंह कालूखेड़ा विधायक थे, उनके निधन के बाद स्थान रिक्त हुआ और उपचुनाव हो रहे हैं। भाजपा के पास इस सीट से कोई भी दमदार प्रत्याशी नहीं है जबकि कांग्रेस को सहानुभूति का लाभ भी मिलेगा। कहने की जरूरत नहीं कि सिंधिया इस सीट को जीतने के लिए पूरी ताकत लगा देंगे। यह उनकी प्रतिष्ठा का प्रश्न है। कहा जा रहा है कि कोलारस एवं मुंगावली का उपचुनाव शिवराज सिंह और ज्योतिरादित्य सिंधिया के बीच सीधा मुकाबला होगा लेकिन शिवराज सिंह ने मुंगावली के लिए अरविंद भदौरिया पर भरोसा जताया है। 

अरविंद भदौरिया पर सवाल क्यों 
अरविंद के मुंगावली सीट का प्रभारी बनाए जाने पर इसीलिए सवाल उठ रहे हैं क्योंकि अटेर से कांग्रेस विधायक सत्यदेव कटारे के निधन के बाद उपचुनाव में बीजेपी ने अरविंद भदौरिया को ही चुनावी मैदान में उतारा था। इस चुनाव के लिए भदौरिया ने काफी पहले से तैयारियां शुरू कर दीं थीं। सीएम शिवराज सिंह ने भी भदौरिया को जिताने के लिए पूरी ताकत लगा दी थी। मंत्रियों का लश्कर अटेर में भदौरिया के लिए प्रचार कर रहा था। चुनाव प्रचार का सिलसिला अधिसूचना जारी होने से पहले ही शुरू हो गया था। यहां तक कि भाजपा के असंतुष्टों को शिवराज सिंह ने व्यक्तिगत रूचि लेकर भदौरिया के समर्थन में खड़ा कर दिया था। एक तरह से कहा जाए तो भदौरिया के पास जितनी भी ताकत और अनुभव था, सबकुछ उपचुनाव में झोंक दिया गया था बावजूद इसके हेमंत कटारे ने उन्हे करारी शिकस्त थी। कटारे की तरफ से ज्योतिरादित्य सिंधिया अकेले स्टार प्रचारक थे। जबकि अटेर सिंधिया की लोकसभा क्षेत्र में आने वाली सीट भी नहीं थी। 

मुंगावली में क्या कर लेंगे भदौरिया
अटेर विधानसभा सीट अरविंद भदौरिया का क्षेत्र था। वो पहले भी यहां से चुनाव लड़ चुके थे। मुंगावली से उनका कोई खास संपर्क ही नहीं है। भाजपा के लिए समस्या तो यह है कि मुंगावली में उसके पास कोई दमदार नेता भी नहीं है। जबकि मुंगावली सीट कांग्रेस का गढ़ कही जाती है। सिंधिया का यहां की जनता से जीवंत संपर्क है। वो अक्सर मुंगावली आते जाते रहते हैं। ऐसी स्थिति में सवाल यह उठता है कि अरविंद भदौरिया ऐसा क्या चमत्कार कर लेंगे कि वो सिंधिया के सामन चुनौती भी पेश कर सकें। 

गोपाल भार्गव की शरण में भदौरिया
चुनावी राजनीति में करारी हार का स्वाद चख चुके अरविंद भदौरिया के लिए मुंगावली का चुनाव वाइल्ड कार्ड एंट्री जैसा है। शायद इसीलिए भदौरिया के चेहरे पर चिंताएं भी साफ दिखाई दे रहीं हैं और यही कारण हैं कि वो पंचायत मंत्री गोपाल भार्गव की शरण में जा पहुंचे हैं। भार्गव को इस क्षेत्र का पुराना अनुभव है। भाजपाईयों का कहना है कि यदि भार्गव को फ्रीहेंड दिया जाता तो मुकाबले की उम्मीद भी थी। अब देखना यह है कि भदौरिया उनसे कितना कुछ हासिल कर पाते हैं। यदि इस चुनाव में भदौरिया कोई चमत्कार नहीं दिखा पाए तो भाजपा में कम से कम चुनावी राजनीति के लिए तो उन्हे अयोग्य मान लिया जाएगा। 

#buttons=(Accept !) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Check Now
Accept !