भोपाल। अंतरराष्ट्रीय बाल अधिकार दिवस पर राज्य बाल संरक्षण आयोग की ओर से बाल संसद का आयोजन किया गया था। टारगेट था बच्चों की परेशानियां जानना। करीब 150 निर्धन बच्चों को बुलाया गया। कहा गया कि भोजन मिलेगा, गिफ्ट भी मिलेगा। अंत में गिफ्ट तो दिया लेकिन आधे से ज्यादा बच्चों को बिना खाना दिए ही भगा दिया। दरअसल, खाना खत्म हो गया था। मार्के वाली बात तो यह है कि अधिकारियों के लिए होटल में लजीज व्यंजनों की व्यवस्था की गई। बच्चों को सूखी पूड़ी सब्जी भी नहीं दी गई।
रोज दिनभर पन्नी बीनने के बाद शाम को रूखी-सूखी रोटी ही नसीब होती है। साहब ने कहा था कि कार्यक्रम में चलो, बढ़िया भोजन मिलेगा और गर्म कपड़े भी। सुबह घर से यही सोचते हुए निकले थे कि आज तो मटर पनीर, पूड़ी और गुलाब जामुन खाएंगे। कार्यक्रम के दौरान भी वे बार-बार यही देख रहे थे कि कब भोजन मिले। अतिथि के इंतजार में पेट में सिलवटें आ गई थीं फिर भी रुके रहे तो सिर्फ स्वादिष्ट भोजन की आस में लेकिन जब भोजन की बारी आई तो लगभग आधे बच्चों को भी भोजन नहीं मिल पाया। वहीं अधिकारी-कर्मचारियों ने होटल में छककर खाया।
अंतरराष्ट्रीय बाल अधिकार दिवस पर सोमवार को राज्य बाल संरक्षण आयोग ने पन्नी बीनने वाले बच्चों के लिए एनआईटीटीआर सभागार में बाल संसद का आयोजन किया। इसमें बच्चों की परेशानियों को जानना था, लेकिन वहां बच्चों को सिर्फ नेताओं के नाम ही बताए जाते रहे। करीब 150 बच्चे आए थे, जिन्हें एक कॉलेज प्रबंधन की तरफ से उपहार स्वरूप गर्म कपड़े जरूर बांटे गए।
बच्चों को न तो उनके अधिकार बताए गए और न ही उनकी समस्याएं ही सुनी गईं। इस दौरान बच्चों के लिए की गई भोजन की व्यवस्था गड़बड़ा गई। कई बच्चों को भूखा ही लौटना पड़ा, जबकि अफसरों, कर्मचारियों और अन्य खास लोगों ने होटल में जाकर खाना खाया। कार्यक्रम में मुख्य अतिथि स्कूल शिक्षा राज्यमंत्री दीपक जोशी, मानवाधिकार आयोग के सदस्य सरबजीत सिंह भी उपस्थित थे।
इनका कहना है
कार्यक्रम में 150 बच्चे थे। बच्चों के लिए खाना कम नहीं पड़ा, बल्कि हमारे अफसर व कर्मचारियों के लिए कम पड़ गया, जिन्हें होटल में ले जाकर खिलाया
डॉ. राघवेन्द्र शर्मा, अध्यक्ष, राज्य बाल संरक्षण आयोग