
उसका कहना है कि उसने वहीं किया था, जो अधिकारियों ने करने को कहा था। चयन समिति चयनित प्रत्याशियों की सूची उसे सौंपती थी। उसका काम सिर्फ उनके नियुक्ति के आर्डर टाइप करने की थी। चयन समिति ने प्रत्याशियों का चयन किस आधार पर किया इसकी जानकारी नहीं है। 2012 के पहले तीन साल तक मेडिकल कॉलेज से स्टाफ नर्स की नियुक्ति के आर्डर निकलते रहे हैं। कॉलेज इनके लिए विज्ञापन तो जारी करता था, लेकिन नियुक्ति का आधार नहीं बताता था।
फार्म की इंट्री तक नहीं
मेडिकल कॉलेज में पदों के लिए 60 हजार से ज्यादा आवेदन आए थे, लेकिन इनकी स्क्रूटनी का कोई सिस्टम नहीं था। फार्मों की इंट्री का काम कॉलेज ने प्रायवेट कंपनी को दिया था, लेकिन इसकी भी क्रास चेकिंग नहीं होती थी। हजारों फार्म तो बगैर इंट्री के ही रह गए थे। पारीख ने आरोप लगाया कि मेडिकल कॉलेज ने मुझ जैसे छोटे कर्मचारी पर तो कार्रवाई कर दी, लेकिन असल जिम्मेदार अब भी आजाद हैं। चयन के लिए जो समिति बनाई गई थी उसकी निगरानी की जिम्मेदारी तत्कालीन डीन डॉ.पुष्पा वर्मा की थी, लेकिन उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई। गौरतलब है कि 'नईदुनिया' ने मेडिकल कॉलेज में भर्ती के नाम पर हुई गड़बड़ियों को लेकर सोमवार प्रमुखता से खबर प्रकाशित की थी।