भोपाल। डॉक्टरों से नाराज लोगों को अक्सर यह पता ही नहीं होता कि उन्हे शिकायत कहां करनी है। वो या तो कलेक्टर के पास जाते हैं या पुलिस के पास। ज्यादातर लोग डॉक्टर के सामने या उसी अस्पताल में अपना गुस्सा जाहिर करते हैं और पैर पटकते हुए चले जाते हैं। हम आपको बताने जा रहे हैं कि डॉक्टर के खिलाफ यदि आप कार्रवाई चाहते है तो स्टेट मेडिकल काउंसिल में शिकायत करें। मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया (एमसीआई) ने आदेशित किया है कि छह महीने के भीतर स्टेट मेडिकल काउंसिल को डॉक्टरों के खिलाफ की गई शिकायत का निपटारा करना होगा। ऐसा नहीं करने पर एमसीआई खुद स्टेट मेडिकल काउंसिल को शिकायत निपटाने की डेड लाइन दे सकती है।
दरअसल, राज्यों की मेडिकल काउंसिल में पांच साल पुराने मामले भी चल रहे हैं। जांच व सुनवाई में देरी के चलते मरीजों को न्याय मिलने में देरी होती है। दो महीने पहले एमसीआई की एथिकल कमेटी की बैठक में भी यह मुद्दा उठा था। कुछ राज्यों में ऐसे केस भी मिले थे जो 15 साल तक पुराने थे। लिहाजा एमसीआई ने साफ कहा है कि हर हाल हाल में छह महीने के भीतर शिकायत का निपटारा किया जाए।
नहीं तो एमसीआई में रेफर हो जाएगा केस
एमसीआई ने कहा कि स्टेट मेडिकल काउंसिल छह महीने के भीतर केस का निपटारा नहीं करती तो उस केस को एमसीआई अपने पास रेफर करा सकती है। अभी सिर्फ शिकायतकर्ता को यह विकल्प दिया गया है। वह चाहे तो एमसीआई में केस की सुनवाई की मांग कर सकता है।
मप्र में चार साल पुराने केस भी
मप्र मेडिकल काउंसिल में चार साल पहले आई कुछ शिकायतों का निपटारा भी अभी तक नहीं हो पाया है। काउंसिल के सूत्रों ने बताया कि करीब 40 शिकायतें अभी लंबित हैं। इन पर सुनवाई चल रही है। इनमें ज्यादातर एक साल के भीतर के ही हैं। यहां पर डॉक्टर द्वारा गलत ऑपरेशन करने, इलाज में लापरवाही करने, दवा का गलत डोज देने, मरीज को बीमारी के बारे नहीं बताने, इलाज में देरी करने की शिकायतें पेडिंग हैं।
मरीज को बताने के बाद ही बंद की जा सकेगी शिकायत
स्टेट मेडिकल काउंसिल में चल रही शिकायत को मरीज को बताए बिना बंद नहीं किया जा सकेगा। एमसीआई के अधिकारियों ने बताया कि कई बार शिकायतकर्ता के नहीं आने पर एकपक्षीय निर्णय देते हुए केस बंद कर दिया जाता है। बहरहाल अब ऐसा नहीं होगा। मरीज को बताने के बाद ही केस बंद किया जाएगा। मरीज चाहे तो फिर सुनवाई शुरू करने के लिए बोल सकता है।
आॅनलाइन शिकायत करने के लिए यहां क्लिक करें
------------
इस वजह से हो रही देरी
मप्र मेडिकल काउंसिल में शिकायत आने के बाद मामले की जांच संबंधित जिले के सीएमएचओ या संभागीय संयुक्त संचालक को सौंपी जाती है। जांच रिपोर्ट मिलने में देरी होती है। तब तक मामला पेडिंग रहता है।
एक साथ कई डॉक्टरों की शिकायत होने पर सुनवाई में समय लगता है, क्योंकि डॉक्टर एक साथ आते नहीं हैं। उन्हें तीन बार मौका दिया जाता है। हालांकि, मौका देने का कोई नियम नहीं है।
कुछ शिकायतकर्ता शिकायत करने के बाद सुनवााई में नहीं आते न ही अपने पक्ष में दस्तावेज दे पाते हैें।
-----------
स्टेट मेडिकल काउंसिल में कई साल पुराने मामले पेडिंग रहते थे, इसलिए अब छह महीने के भीतर निपटारा करने को कहा गया है। केस बंद करने के पहले शिकायतकर्ता को भी जानकारी देना होगी। देरी होने पर एमसीआई खुद भी डेडलाइन तय कर सकेगी।
राजेन्द्र एरन
सदस्य, एथिकल कमेटी
एमसीआई