अमित शाह के बाद अब अजीत डोभाल के बेटे पर सवाल

नई दिल्ली। पिछले दिनों भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के बेटे पर सवाल उठे थे। अब भारत सरकार के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल के बेटे शौर्य डोभाल पर भी सवाल उठाया गया है। दिल्ली की पत्रकार स्वाति चतर्वुेदी ने 'द वायर' में एक लेख लिखकर मामले को सबके सामने पेश किया है। आरोप लगाया गया है कि शौर्य डोभाल द्वारा संचालित संस्था इंडिया फाउंडेशन में कई केंद्रीय मंत्री निदेशक के तौर पर जुड़े हैं। यह संस्था उन कंपनियों से भी फंडिंग लेती है जो सरकार के साथ कारोबार करतीं हैं। यानि पिता के रुतबे का फायदा बेटे की संस्था को मिल रहा है। 

क्या है इंडिया फाउंडेशन
स्वाति ने लिखा है कि ‘केरल में चरमपंथी इस्लाम’ और ‘आदिवासियों का बलपूर्वक धर्मपरिवर्तन’ जैसे विषयों पर निबंध (मोनोग्राफ) छापने वाले संगठन के तौर पर इंडिया फाउंडेशन का अस्तित्व 2009 से है लेकिन 2014 से इंडिया फाउंडेशन का जिस तरह उभार हुआ है, उसे किसी चमत्कार से कम नहीं कहा जा सकता है। आज यह भारत का सबसे प्रभावशाली थिंक-टैंक है, जो विदेशों और भारत के औद्योगिक जगत के प्रमुख हस्तियों को मंत्रियों और अधिकारियों के साथ बैठकर सरकारी नीतियों पर तफसील से बातचीत करने के लिए मंच मुहैया करता है। 

कौन कौन हैं इस संस्थान में शामिल
जूनियर डोभाल और भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव राम माधव द्वारा चलाए जाने वाले इंडिया फाउंडेशन के निदेशकों में रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण, वाणिज्य और उद्योग मंत्री सुरेश प्रभु, दो राज्य मंत्रियों- जयंत सिन्हा (नागरिक उड्डयन) और एमजे अकबर (विदेश मंत्रालय) के नाम शामिल हैं। चार मंत्री, संघ परिवार के एक कद्दावर नेता और एक कारोबारी जिनके प्रभावशली पिता प्रधानमंत्री कार्यालय में हैं। 

प्रश्नों का किसी से जवाब नहीं दिया
पत्रकार स्वाति ने लिखा है कि इस मामले के अनुसंधान के दौरान संस्थान के सभी छह निदेशकों को एक विस्तृत प्रश्नावली भेजी गई थी लेकिन मंत्रियों ने उसका जवाब नहीं दिया, जबकि राम माधव ने यह वादा किया कि कोई ‘उचित व्यक्ति’ इन सवालों का जवाब देगा लेकिन, ऐसा नहीं हुआ। इस सवाल पर कि फाउंडेशन के राजस्व का स्रोत क्या है, शौर्य डोभाल भी बस इतना कहने के लिए तैयार हुए: ‘सम्मेलनों से, विज्ञापनों और जर्नल से। उन्होंने इस राजस्व के उद्गम को लेकर पूछे गए सवालों का कोई जवाब नहीं दिया। और न ही इस बात का ही कोई स्पष्टीकरण दिया कि इंडिया फाउंडेशन, जिसके बारे में उन्होंने कहा कि यह एक ट्रस्ट के तौर पर रजिस्टर्ड है, आखिर अपने रोज के कामकाज का खर्चा कैसे उठाता है? इस खर्चे में लुटियन दिल्ली के हेली रोड में लिए गए पॉश मकान का किराया और कर्मचारियों के वेतन शामिल हैं।

इकॉनमिक टाइम्स को भी नहीं दिया था जवाब
इंडिया फाउंडेशन को मिलने वाले पैसों के स्रोत की जानकारी देने को लेकर डोभाल का यह संकोच नया नहीं है। 2015 में भी वे द इकॉनमिक टाइम्स को बस इतना ही कहने को तैयार थे: ट्रस्ट के तौर पर रजिस्टर्ड फाउंडेशन की फंडिंग के बारे में पूछे जाने पर डोभाल ने कहा- मासिक जर्नल राजस्व का एक बड़ा स्रोत है। हमें प्रायोजक मिले हुए हैं और हमें विभिन्न स्रोतों से विज्ञापन मिलते हैं। यह सब हमारे द्वारा किए जाने वाले कामों या हमारे द्वारा आयोजित किए जाने वाले सेमिनारों के के इर्द-गिर्द किया जाता है। हम विभिन्न अंशधारकों के साथ साझेदारी करते हैं और हम अपने हिस्से का काम करते हैं और वे अपने हिस्से का काम करते हैं।’ द वायर ने दावा किया है कि इंडिया फाउंडेशन जर्नल के जिन अंकों की द वायर ने जांच की, उन्हें विज्ञापनों से भरा हुआ नहीं कहा जा सकता। यानि उनमें बहुत कम विज्ञापन थे। 

विदेशी रक्षा कंपनियों से स्पॉन्सरशिप
इंडिया फाउंडेशन के दो आयोजन (एक हिंद महासागर पर और दूसरा ‘स्मार्ट बॉर्डर मैनेजमेंट’ पर) के प्रायोजकों के नाम तस्वीरों में दिखाई दे रहे थे। उदाहरण के लिए बोइंग जैसी विदेशी रक्षा और विमानन कंपनियां और इस्राइली फर्म मागल, साथ ही डीबीएस जैसे विदेशी बैंक और कई निजी भारतीय कंपनियों के नाम इसमें बतौर प्रायोजक लिखे हुए हैं। बता दें कि मई 2017 में, सीबीआई ने मनमोहन सिंह सरकार के कार्यकाल में भारत द्वारा बोइंग एयरक्राफ्ट की खरीद की प्राथमिक पड़ताल शुरू की है। इसमें लगाए गए आरोप 70,000 करोड़ रुपये की लागत से राष्ट्रीय एयरलाइंस के लिए 111 एयरक्राफ्ट की खरीद से संबंधित हैं।

डोभाल का जवाब क्या है 
हितों के टकराव का सवाल ही नहीं पैदा होता, क्योंकि इंडिया फाउंडेशन न तो खुद से, न ही किसी दूसरे की ओर से कोई व्यापारिक लेन-देन करता है। इंडिया फाउंडेशन एक थिंक टैंक है, जिसका अस्तित्व 2009 से है। इसकी गतिविधियों में रिसर्च, राष्ट्रीय महत्व के मसले पर एक दृष्टिकोण को एकत्र करना और उसका प्रसार करना, शामिल है। इसके चार्टर में लॉबीइंग या इससे जुड़ी कोई अन्य गतिविधि शामिल नहीं हैं।

आयोजन जिसमें कंपनियों को मंत्रियों से मिलने का मौका दिया गया
इंडिया फाउंडेशन द्वारा फिक्की के साथ मिलकर ‘स्मार्ट बॉर्डर मैनेजमेंट’ विषय पर एक आयोजन कराया गया। इसकी बुकलेट में लिखा है: ‘आप किससे मिलने की उम्मीद करते हैं’ उसके बाद मंत्रियों और विभागों की पूरी सूची प्रदर्शित की गई है, जो वहां आने वाले हैं।

प्रधानमंत्री कार्यालय की चुप्पी
द वायर  ने प्रधानमंत्री के प्रधान सचिव नृपेंद्र मिश्रा से पूछा कि क्या उन्होंने और मोदी ने उन निदेशकों के संभावित हितों के टकराव की ओर ध्यान दिया है, जो मंत्रियों के तौर पर भी काम कर रहे हैं? साथ ही इस तथ्य की ओर भी कि शौर्य डोभाल के पिता पीएमओ के शीर्ष अधिकारी हैं, जिनके अधिकार क्षेत्र में ऐसी वार्ताओं का हिस्सा होना शामिल है, जिनका सरोकार ऐसे फैसलों से हो सकता है, जो इंडिया फाउंडेशन के आयोजनों को प्रायोजित करने वाली कंपनियों से ताल्लुक रखते हों?
इस संबंध में भी कोई जवाब नहीं आया।

इंडिया फाउंडेशन के कुछ अन्य निदेशक
इन चार मंत्रियों और माधव एवं डोभाल के अलावा के अलावा इंडिया फाउंडेशन के अन्य निदेशक भी भाजपा प्रतिष्ठान के भीतरी गलियारे से जुड़े रहे हैं- स्वप्न दासगुप्ता, पूर्व स्तंभकार और नामांकित कोटे से राज्यसभा सदस्य, सेवानिवृत्त आईएएस और अब नेहरू मेमोरियल म्यूजियम एंड लाइब्रेरी के निदेशक शक्ति सिन्हा, प्रसार भारती बोर्ड के चेयरमैन ए. सूर्य प्रकाश। इनके अलावा अन्य निदेशक हैं भारतीय सेना के थिंक टैंक सेंटर फॉर लैंड वॉरफेयर स्टडीज के पूर्व निदेशक ध्रुव सी. कटोच, पूर्व नौसैना अधिकारी आलोक बंसल, जिन्होंने इससे पहले इडसा में काम किया, अशोल मित्तल जो खुद को एक स्टूडेंट मेंटरिंग कंपनी का मैनेजिंग डायरेक्टर बताते हैं, आईसीडब्ल्यूए के पूर्व अध्यक्ष चंद्र वाधवा और कोलकाता के बावरी ग्रुप के चेयरमैन बिनोद भंडारी।

#buttons=(Accept !) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Check Now
Accept !