भोपाल। भाजपा के लिए राहत भरी खबर है। इंदौर की महू विधानसभा से विधायक एवं भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय के खिलाफ दायर की गई याचिका हाईकोर्ट ने खारिज कर दी है। उनके खिलाफ वोट के लिए रिश्वत देने का आरोप था। इस फैसले के साथ ही अब कैलाश विजयवर्गीय की विधायकी पर मंडरा रहा संकट समाप्त हो गया। याचिका पर कुल 45 महीने तक सुनवाई चली और 41 गवाहों के बयान हुए।
विजयवर्गीय के खिलाफ यह चुनाव याचिका महू विधानसभा सीट पर कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ने वाले अंतरसिंह दरबार ने 20 जनवरी 2014 को दायर की थी। फैसला आने के बाद दरबार ने सुप्रीम कोर्ट जाने की बात कही है। पहले यह जबलपुर में दायर हुई थी जिसे बाद में इंदौर बेंच में शिफ्ट किया गया। याचिका में आरोप था कि विजयवर्गीय ने चुनाव आचार संहिता का उल्लंघन किया। उनका चुनाव निरस्त किया जाए।
दरबार ने 21 तो विजयवर्गीय ने कराए 15 गवाहों के बयान
हाई कोर्ट में दायर चुनाव याचिका में याचिकाकर्ता अंतरसिंह दरबार ने 21 गवाहों के बयान कराए, जबकि कैलाश विजयवर्गीय ने 15 के। कोर्ट ने भी अपनी तरफ से कोर्ट विटनेस के रूप में चार लोगों को गवाही के लिए बुलाया। इनमें मानपुर सीएमओ आधार सिंह, तत्कालीन उपजिला निर्वाचन अधिकारी संतोष टैगोर, कांस्टेबल मनोज और कांस्टेबल अनिल हैं।
वर्तमान में जस्टिस आलोक वर्मा ने इस मामले में सुनवाई की। इसके पहले जस्टिस जेके जैन भी सुनवाई कर चुके हैं। तीन साल 9 महीने चली सुनवाई में 91 पेशियां हुईं। याचिकाकर्ता की तरफ से 75 दस्तावेज पेश किए गए। इनमें 5 सीडी भी शामिल हैं।
याचिका में कोर्ट ने ये मुद्दे बनाए
कोर्ट ने याचिका में चार मुद्दे बनाए थे। इनमें मोहर्रम के कार्यक्रम में विजयवर्गीय द्वारा मंच पर मेडल और ट्रॉफी बांटना, पेंशनपुरा में चुनाव प्रचार के दौरान आरती उतारने वाली महिलाओं को नोट बांटना, मतदाताओं को शराब बांटना और मुख्यमंत्री द्वारा चुनावसभा में मेट्रो को महू तक लाने और गरीबों को पट्टे देने की घोषणा शामिल रहीं।