मौकापरस्ती के खिलाफ गठित हुआ आजाद अध्यापक संघ बिखर गया | ADHYAPAK NEWS

भोपाल। मुरलीधर पाटीदार की मौकापरस्ती के खिलाफ गठित हुआ आजाद अध्यापक संघ अब पूरी तरह से बिखर गया है। महत्वहीन हो चुके संगठन में गुटबाजी तो 2016 में ही दिखाई दे गई थी। अब झगड़ा सड़कों पर आ गया है। एक तरफ शिल्पी शिवान हैं तो दूसरी तरफ भरत पटेल। गठन के समय ऐलान किया गया था कि नेताओं का सिर्फ एक ही लक्ष्य होगा अध्यापकों का हित, लेकिन अब सीन कुछ और ही नजर आ रहा है। संगठन पर कब्जे के लिए लड़ाई चल रही है और अध्यापक कभी शिल्पी तो कभी भरत की तरफ देख रहे हैं। 

भोपाल समाचार ने आजाद अध्यापक संघ के खाते में आए एकमात्र सफल आंदोलन के बाद नेताओं में उपजे अहंकार पर टिप्पणी करते हुए लिख दिया था कि इस संगठन का हश्र भी वैसा ही हो सकता है जैसा आम आदमी पार्टी या उमा भारती का हुआ। (पढ़ें: छोटी छोटी बातों में उलझ रहा है आजाद अध्यापक संघ) और आज वही हुआ जो भारतीय जनशक्ति पार्टी का हुआ था। आजाद अध्यपक संघ का कोई खास महत्व नहीं रह गया। उसके पास कोई बड़ी सफलता नहीं है। नेता आपस में उलझे हुए हैं, अध्यापकों में जोश भरने की कोशिश करते रहते हैं परंतु नेताओं में मुरलीधर पाटीदार जैसी जिद दिखाई नहीं देती। 

5 साल से एक नए नेता की तलाश
मध्यप्रदेश के 2.5 लाख अध्यापक पिछले करीब 5 साल से एक नए नेता की तलाश कर रहे हैं। ऐसा नेता जो कम से कम मुरलीधर पाटीदार जैसा हो, बस मौकापरस्त ना हो। याद दिलाना होगा कि पाटीदार फेसबुक पर बयानबाजी करके अध्यापकों का नेता नहीं बना था। उसने सरकार के खिलाफ संघर्ष किया। शुरूआत में जब मुरलीधर धरना प्रदर्शन करते थे तो मुट्ठीभर अध्यापक ही साथ हुआ करते थे। पाटीदार की जिद ने अध्यापकों को उसके साथ आने पर मजबूर किया। अध्यापक आज भी तलाश रहे हैं एक ऐसा नेता जो सरकार से टकरा सके, सीएम शिवराज सिंह की आखों में आखें डालकर बात कर सके। 

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