दत्त जयंती: गुरु के सम्मान का पर्व (3 दिसम्बर) | RELIGIOUS STORY Dattatreya‬

गुरु ब्रम्हा गुरु विष्णु गुरु देव महेश्वर, गुरु साक्षात परब्रम्हा तस्मै श्री गूरूवे नमह। ये पंक्तियां गुरु के महत्व को बताने के लिये पर्याप्त है। अगहन पूर्णिमा को दत्तात्रेय पजयंती के रूप मे मनाया जाता है। इस दिन ब्रम्हा विष्णु और शिव ने चंद्र, दुर्वासा और दत्त के रूप जन्म लिया था भगवान विष्णु ने दत्त के रूप मे जन्म लिया था। ब्रम्हा ने चंद्र तथा शिव ने दुर्वासा के रूप मे अवतार लिया था। बाद मे ये दोनो अवतार दत्तरुप मे समाहित हो गये थे। इसीलिये इसे दत्तात्रेय अवतार कहा जाता है।

दत्तात्रेय अवतार
भगवान दत्तात्रेय आदि गुरु-महामुनि अत्रि की पत्नी तथा परमसती अनुसुइया के सतीत्व की परीक्षा के लिये ब्रम्हा विष्णु तथा शिव ने सन्यासी का वेष धारण किया तथा उनसे नग्न होकर भिक्षा देने को कहा। मां अनुसुइया ने अपने पतिव्रता धर्म के बल पर उन तीनों को बालक बनाकर दूध पिलाया। तीनो देवों ने सती अनुसुइया के गर्भ से जन्म लेने के वचन देने के बाद शिव ने दुर्वासा, विष्णु ने दत्त तथा ब्रम्हा ने चंद्र के रूप मे जन्म लिया। बाद मे दुर्वासा तथा चंद्र ने अपना अंश स्वरूप दत्तात्रेय के साथ कर दिया। 

परमयोगी तथा आदि गुरु
भगवान दत्तात्रेय परमयोगी तथा आदि गुरु है। नवनाथ तथा 84 सिद्धों के ये गुरु हैं। सभी गुरुओं के ये गुरु है। दक्षिण भारत तथा महाराष्ट्र मे इनकी पूजा विशेष रूप से की जाती है। इनकी पूजा से जातक ज्ञान, भोग तथा मुक्ति पाता है। गुरु पूर्णिमा को इनकी विशेष पूजा की जाती है। लोग श्रीफल तथा भजन पूजन दक्षिणा से अपने गुरु की पूजा करते है।  

कलयुग मे भगवान दत्त के अवतार
भगवान दत्तात्रेय ने अपना पहला अवतार आंध्रप्रदेश के पीठपुरम मे श्रीपाद वल्लभ के रूप मे लिया था। यह अल्पायु अवतार था। मां के द्वारा अपने पुत्र को नमन करने के कारण इस अवतार कार्य को अल्पायु मे ही समाप्त करना पड़ा। दत्त महाराज का दूसरा अवतार नरसिंह सरस्वती के रुप मे महाराष्ट्र के कारंजा ग्राम मे हुआ। इन्होने पूरे भारतवर्ष मे भ्रमण किया तथा कर्नाटक के गाणगापुर ग्राम को अपना लीलास्थल बनाया। फ़िर यहीं अपनी पादुकाऐं अपने भक्तों के लिये इस स्थान में साक्षात अपने स्वरूप मे स्थापित कर उन्होने अपना अवतार कार्य पूर्ण किया। आज भी इस स्थान मे उनकी निर्गुण पादुका की पूजा होती है तथा यह स्थान दत्त भक्तों के लिये परम पवित्र तीर्थ स्थल है। 

माणिकप्रभु दत्तभगवान के तीसरे अवतार हुए ये कर्नाटक के हुमणाबाद स्थान मे इनका जन्म हुआ था। ये दत्त महाराज का शाही अवतार था। महाराष्ट्र के अक्कलकोट स्थान मे स्वामी समर्थ के रूप मे दत्त महाराज ने चौथा अवतार लिया। दत्त महाराज का यह स्वरूप आज भी दत्त भक्तों को निर्भयता व प्रेरणा देता है। इसके बाद शिरडी के साइँ बाबा मे दत्त महाराज के पांचवे अवतार के रूप मे जन्म लिया। यह जगतप्रसिद्घ व अत्यंत लोकप्रिय अवतार हुआ। 

आज भी भक्तों से मिलने आते हैं
आज भी दत्त महराज अपने भक्तों का कल्याण करने के लिये अपने भक्तों के यहां भिक्षुक के रूप मे आते हैं। वे किसी भी रूप मे आ सकते हैं। मुस्लिम फकीर, ओघड, संन्यासी आदि वे अपने भक्तों से अन्नदान की याचना करते है तथा बदले मे उन्हे समृद्धि का आशीर्वाद देते है।

नवग्रह मे गुरु
आकाश मंडल के नवग्रह मे देव गुरु व्रहस्पती की महिमा सबसे अलग है ये देवों के गुरु है इन्द्र अर्थात देवों के राजा इनकी सलाह से ही अपना शासन व सुख का भोग करते है। जीवन मे सुख शान्तिपूर्ण भोग करने है तो कुंडली मे गुरु ग्रह की स्थिति अच्छी होनी चाहिये। गुरु ग्रह को ज्ञान, कृपा, पुत्र, धन तथा समस्त प्रकार की वृद्धि का कारक माना गया है। कुंडली मे भाग्य भाव, मोक्ष तथा धनु राशि तथा मीन राशि का स्वामी गुरु ग्रह को माना गय़ा है। इनका रंग पीला, अंक 3 तथा दिन गुरुवार माना जाता है। जो भी व्यक्ति गुरु की सेवा करता है उसे उन्नति मान सम्मान तथा ऊंची स्थिति प्राप्त होती है।
प.चन्द्रशेखर नेमा"हिमांशु"
9893280184,7000460931
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