
न्यायमूर्ति आदर्श कुमार गोयल और न्यायमूर्ति यूयू ललित की पीठ ने केंद्र सरकार द्वारा मद्रास हाईकोर्ट के उस फैसले को चुनौती वाली याचिका खारिज कर दी है, जिसमें कहा गया था कि अमान्य शादी के जन्मे बच्चे अवैध नहीं होते। वास्तव में यह मामला रेलवे में अनुकंपा के आधार पर नियुक्ति से संबंधित है।
रेलवे में काम करने वाले एक शख्स ने पहली पत्नी के रहते दूसरी शादी कर ली थी। पहली पत्नी से उसे कोई बच्चा नहीं था। दूसरी शादी से उसे एक बच्चा हुआ। उस शख्स की मौत होेने पर रेलवे ने उसके बच्चे को अनुकंपा के आधार पर नौकरी देने से इनकार कर दिया।
शख्स की मौत के चंद दिनों बाद पहली पत्नी की भी मौत हो गई थी। रेलवे का कहना था कि दूसरी शादी से जन्मे बच्चे को अनुकंपा के आधार पर नौकरी नहीं दी जा सकती, क्योंकि पहली पत्नी के रहते दूसरी शादी करना अमान्य है।
रेलवे बोर्ड के 1992 के सर्कुलर के मुताबिक, दूसरी पत्नी के बच्चे को अनुकंपा के आधार पर नौकरी नहीं दी जा सकती। यह मामला केंद्रीय प्रशासनिक पंचाट (कैट) में गया। कैट ने दूसरी शादी से जन्मे बच्चे को अनुकंपा के आधार पर नौकरी नहीं देने की बात को सर्कुलर से निकाल दिया।
इसके बाद मद्रास हाईकोर्ट ने भी कैट के फैसले को सही ठहराया। हाईकोर्ट के फैसले से असंतुष्ट रेलवे ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने भी हाईकोर्ट के फैसले में दखल देने से इनकार कर दिया। शीर्ष अदालत ने कहा कि हाईकोर्ट के फैसले में दखल देने का कोई कारण नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट पहले भी ऐसा फैसला सुना चुका है
वर्ष 2000 में रामेश्वरी देवी बनाम बिहार सरकार के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने व्यवस्था दी थी कि पहली पत्नी के रहते दूसरी शादी करना भले ही गैरकानूनी हो, लेकिन दूसरी शादी से जन्मे बच्चे वैध हैं। हिंदू विवाह अधिनियम की धारा-16 में कहा गया है कि अमान्य शादी से जन्मे बच्चे वैध हैं।