पितृ पक्ष 2017: पूजा विधि, नियम, तिथि वर्णय एवं सबकुछ जो जानना जरूरी है

हमारी पृथ्वी दो चुम्बकीय ध्रुवों धन और ऋण के बीच भ्रमण करती है। जब जीव इस संसार में जन्म लेता है तो अपना धन और ऋण साथ लेकर आता है। पितरों के द्वारा बने हमारे शरीर में बहने वाले रक्त में लोहा (शनि) विद्यमान रहता है तथा यही हमारे धन (पुण्य) और पाप (ऋण) के पृथ्वी में हमारे घूमने का कारण बनता है। दूसरे शब्दों में इसे हम शनिदेव का कर्मभोग का सिद्धांत भी कह सकते है।

पितृ यज्ञ
अपने पितरों के लिए जो भी कार्य करें उसे श्रद्धापूर्वक करें। बता दें कि श्राद्ध को ही पितरों का यज्ञ भी कहते हैं। प्रत्येक व्यक्ति को इस पक्ष में श्राद्ध का कार्य अपनी सामर्थ्य अनुसार श्रद्धापूर्वक करना चाहिये। पितरों के लिए किए जाने वाले सभी कार्य उन्हें श्राद्ध कहते हैं। शास्त्रों में तीन ऋण विशेष बताए गए हैं। देव, ऋषि और पितृ ऋण ये हैं वो तीन ऋण जो बेहद महत्व रखते हैं, श्राद्ध की क्रिया से पितरों का पितृ ऋण उतारा जाता है। शास्त्रों में कहा गया है की श्राद्ध से तृप्त होकर पितृ ऋण समस्त कामनाओं को तृप्त करते हैं।

आपके और पितरों के बीच सेतु है ब्राह्मण
शास्त्रों में वर्णन है की ब्राह्मणों के मुख से भगवान भोजन करते हैं। पितृपक्ष में अपने पितरों का विधि विधान से किया पूजन, तर्पण तथा भोजन आपके पितरों को ही प्राप्त होता है। इसीलिये ब्राह्मण ही हमारे तथा पितरों के बीच सेतु का कार्य करते हैं। हमे उनकी बेवजह आलोचना या प्रशंसा नही करके अपने कर्म पर ध्यान देना चाहिये। जिससे पितृ प्रसन्न होकर आपको भौतिक समृद्धि प्रदान करते है।

भगवान दत्त के प्रथम अवतार श्रीपाद वल्लभ की कथा
सप्तऋषि मंडल के ऋषि अत्रि तथा परम पतिव्रता के पुत्र ब्रम्हा विष्णु तथा शिव के रूप दत्त के *प्रथम अवतार श्रीपाद वल्लभ* के जन्म तथा पितृपक्ष के महत्व का वर्णन सभी धर्मप्रेमियों का जानना आवश्यक है। जैसा की सभी जानते है की ब्राह्मण भगवान का मुख है तथा सभी प्राणियों के पेट में दत्त भगवान का अधिकार होता है। दत्त महाराज गुरु भी है साथ ही परम ब्रह्मचारी तपस्वी संत और भगवान भी है।

कथा
उनके प्रथम अवतार की कथा इस प्रकार है कि आंध्रप्रदेश के पीठापुरम में श्राद्ध (पितृ) पक्ष के समय किसी कुलीन के घर में श्राद्धपक्ष के निमित्त ब्राह्मण भोजन की तैयारी चल रही थी। दत्त महाराज जो की ब्राह्मण वेष में भिक्षा मांगते है वे साधु रूप में भिक्षा मांगने उस दम्पत्ति के द्वार पर पहुंचे। उस समय पितृकार्य के भोजन तैयार था। ग्रहणि ने वही भोजन भिक्षा स्वरूप उस साधु को दे दिया। भगवान दत्त उसके निर्मल भाव से प्रसन्न हो गये तथा वर मांगने को कहा। तब उस दम्पति ने कहा की प्रभु मेरी संतान अंधी, गूंगी और बहरी है। हमारे कुल को कौन संभालेगा। तब दत्त महाराज ने स्वयं उसके यहां दत्त के प्रथम अवतार *श्री पाद वल्लभ* के रूप में जन्म लेने की बात कही। बाद में दत्तप्रभु ने उनके कुल में जन्म लेकर उस कुल का उद्धार किया साथ ही उनकी संतान को भी योग्य बनाया।

इस वर्ष की खास जानकारी
इस साल 7 से 20 सितंबर तक पितृ पक्ष रहेंगे। 
7 सितंबर को प्रतिपदा, 
8 सितंबर को द्वितीया, 
9 सितंबर को तृतीया, 
10 सितंबर को चतुर्थी एंव पंचमी, 
11 सितंबर को षष्ठी, 
12 सितंबर को सप्तमी, 
13 सितंबर को महालक्ष्मी व्रत, जीवत्पु़त्रिका व्रत एंव अष्टका श्राद्ध, 
14 सितंबर को नवमी और मातृ नवमी, श्राद्ध, 
15 सितंबर को दशमी,
16 सितंबर को एकादशी, 
17 सितंबर को द्वादशी श्राद्ध सन्यासियों, यति वैष्णवों का श्राद्ध मनाना चाहिए, 
18 सितंबर को त्रयोदशी एंव मघा, 
19 सितंबर को चतुर्दशी, 
20 सितंबर को स्नान दान श्राद्धिद की अमावस्या, पितृ विसर्जन, सर्वपैत्री महालया समाप्त व आज के दिन जिन लोगों की मृत्यु की तिथि नहीं ज्ञात है, उनका श्राद्ध मनाना चाहिये। 

पितरों को प्रसन्न करने और उनका आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए वर्ष के 16 दिनों को श्राद्धपक्ष कहा जाता है। जानकार व पंडितों के अनुसार श्राद्धपक्ष आश्विन माह के कृष्णपक्ष की प्रतिपदा से अमावस्या तक 15 का होता है और इसमें पूर्णिमा के श्राद्ध के लिए भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा को भी शामिल किया जाता है। इस तरह श्राद्धपक्ष कुल 16 दिनों का हो जाता है। इन सोलह दिनों में धरती पर रहने वाले मनुष्य अपने मृत परिजनों यानी पितरों के निमित्त पिंड दान, तर्पण, ब्राह्मण भोज, गरीबों को दान आदि जैसे कर्म करते हैं ताकि पितर प्रसन्न होकर उन्हें अच्छे आशीर्वाद प्रदान करें।

इन बातों का ध्यान रखें
श्राद्धपक्ष में पिंडदान, तर्पण आदि योग्य और जानकार कर्मकांडी पंडितों से ही करवाना चाहिये।दूध, दही, घी गाय का हो: मृत परिजनों के श्राद्ध में दूध, दही, घी का प्रयोग किया जाता है। इसमें ध्यान रखने वाली बात यह है कि दूध, दही, घी गाय का ही होना चाहिए। वह भी ऐसी गाय का ना हो जिसने हाल ही में बच्चे को जन्म दिया हो। मतलब उस गाय का बच्चा कम से कम 10 दिन का हो गया हो। 

चांदी के बरतन या पेड़ की पत्तलो में भोजन
शास्त्रों में चांदी को श्रेष्ठ धातु माना गया है। श्राद्ध में ब्राह्मणों को भोजन चांदी के बर्तनों में करवाया जाना चाहिए। चांदी पवित्र और शुद्ध होती है। जिसमें समस्त दोषों और नकारात्मक शक्तियों को खत्म करने की ताकत होती है। यदि पितरों को भी चांदी के बर्तन में रखकर पिंड या पानी दिया जाए तो वे संतुष्ट होते हैं। चांदी की उपलब्ध न हो तो पेड़ के पत्तों से बनी की पत्तलो में भोजन परोसें। ब्राह्मणों को भोजन दोनों हाथों से परोसना चाहिए। एक हाथ से भोजन परोसने पर माना जाता है कि वह बुरी शक्तियों को प्राप्त होता है और पितर उसे ग्रहण नहीं कर पाते।

ये हैं शास्त्रों के नियम
ब्राह्मण शांति से भोजन करें:  ब्राह्मणों को भोजन करते समय एकदम शांतचित्त होकर भोजन ग्रहण करना चाहिए। भोजन करते समय बीच-बीच में न तो बोलें और न ही भोजन के अच्छे या बुरे होने के बारे में कुछ कहें। इसका कारण यह है कि आपके पितर ब्राह्मणों के जरिए ही भोजन का अंश ग्रहण करते हैं और इस दौरान उन्हें बिलकुल शांति चाहिए। 

पितरों की तिथि को ही करें श्राद्ध
शास्त्रों के नियमों के अनुसार श्राद्ध परिजन की मृत्यु तिथि और चतुर्दशी के दिन ही किया जाना चाहिए। दो दिन श्राद्ध करने से पितर संतुष्ट होते हैं। श्राद्ध केवल परिजनों के साथ ही करें। उसमें पंडित को छोड़कर बाहर का कोई व्यक्ति श्राद्ध पूजा के समय उपस्थित न हो।

जौ, तिल,कुशा का महत्व
श्राद्ध पूजा के दौरान पिंड बनाने में जौ तिल का प्रयोग किया जाता है। जौ, तिल पितरों को पसंद होते हैं। कुश का प्रयोग भी श्राद्ध पूजा में होता है। ये सब चीजें अत्यंत पवित्र मानी गई है और बुरी शक्तियों को दूर रखती है।

नदी,सरोवर या जलक्षेत्र का महत्व
अक्सर हम देखते हैं कि श्राद्धकर्म नदियों, तालाबों के किनारे किया जाता है। इसका कारण यह होता है कि श्राद्ध ऐसी जगह किया जाना चाहिए जो किसी के आधिपत्य में नहीं आती है। नदियां और तालाब किसी के आधिपत्य में नहीं होते इसलिए उन स्थानों पर श्राद्ध कर्म करके उसी के जल से पितरों का तर्पण किया जाता है।

रक्त सम्बंधों का खास महत्व
अपने मृत परिजनों के श्राद्ध में बहन, उसके पति और बच्चों यानी भांजे-भांजियों को अवश्य बुलाना चाहिए। यदि वे शहर में नहीं हैं, कहीं दूर रहते हों तो बात अलग है, लेकिन शहर में ही होते हुए उन्हें आमंत्रित करना चाहिए।

भिखारी द्वार मे आना शुभ
श्राद्ध करते समय कोई भिखारी आपके द्वार पर आ जाए तो इससे अच्छी बात और कोई नहीं हो सकती। उसे ससम्मान भोजन करवाएं। श्राद्धपूजा के बाद गरीबों, निशक्तों को भी भोजन करवाना चाहिए। 

श्राद्ध मे भोजन
श्राद्ध में खीर सबसे आवश्यक खाद्य पदार्थ है। खीर के अलावा जिस मृत परिजन के निमित्त श्राद्ध किया जा रहा है उसकी पसंदीदा वस्तु भी बनाएं।  ब्राह्मणों के अलावा देवताओं, गाय, कुत्ता, कौवा, चींटी का भी भोजन में हिस्सा होता है। इन्हें कभी न भूलें। श्राद्ध के बाद ब्राह्मणों को यथाशक्ति दान-दक्षिणा, वस्त्र दान दें।
प.चंद्रशेखर नेमा"हिमांशु"
9893280184,7000460931
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