एक दिन जनमेजय वेदव्यास जी के पास बैठे थे। बातों ही बातों में जन्मेजय ने कुछ नाराजगी से वेदव्यास जी से कहा.. कि,"जहां आप समर्थ थे ,भगवान श्रीकृष्ण थे, भीष्म पितामह, गुरु द्रोणाचार्य कुलगुरू कृपाचार्य जी, धर्मराज युधिष्ठिर, जैसे महान लोग उपस्थित थे.....फिर भी आप महाभारत के युद्ध को होने से नहीं रोक पाए और देखते-देखते अपार जन-धन की हानि हो गई। यदि मैं उस समय रहा होता तो, अपने पुरुषार्थ से इस विनाश को होने से बचा लेता"।
अहंकार से भरे जन्मेजय के शब्द सुन कर भी, व्यास जी शांत रहे।
उन्होंने कहा," पुत्र अपने पूर्वजों की क्षमता पर शंका न करो। यह विधि द्वारा निश्चित था,जो बदला नहीं जा सकता था, यदि ऐसा हो सकता तो श्रीकृष्ण में ही इतनी सामर्थ्य थी कि वे युद्ध को रोक सकते थे।
जन्मेजय अपनी बात पर अड़ा रहा और बोला,"मैं इस सिद्धांत को नहीं मानता। आप तो भविष्यवक्ता है, मेरे जीवन की होने वाली किसी होनी को बताइए...मैं उसे रोककर प्रमाणित कर दूंगा कि विधि का विधान निश्चित नहीं होता"।
व्यास जी ने कहा,"पुत्र यदि तू यही चाहता है तो सुन...."।
कुछ वर्ष बाद तू काले घोड़े पर बैठकर शिकार करने जाएगा दक्षिण दिशा में समुद्र तट पर पहुंचेगा...वहां तुम्हें एक सुंदर स्त्री मिलेगी.. जिसे तू महलों में लाएगा, और उससे विवाह करेगा। मैं तुमको मना करूँगा कि ये सब मत करना लेकिन फिर भी तुम यह सब करोगे। इस के बाद उस लड़की के कहने पर तू एक यज्ञ करेगा..। मैं तुमको आज ही चेता कर रहा हूं कि उस यज्ञ को तुम वृद्ध ब्राह्मणो से कराना.. लेकिन, वह यज्ञ तुम युवा ब्राह्मणो से कराओगे.... और..
जनमेजय ने हंसते हुए व्यासजी की बात काटते हुए कहा कि,"मै आज के बाद काले घोड़े पर ही नही बैठूंगा..तो ये सब घटनाऐ घटित ही नही होगी।
व्यासजी ने कहा कि,"ये सब होगा..और अभी आगे की सुन...,"उस यज्ञ मे एक ऐसी घटना घटित होगी....कि तुम ,उस रानी के कहने पर उन युवा ब्राह्मणों को प्राण दंड दोगे, जिससे तुझे ब्रह्म हत्या का पाप लगेगा...और..तुझे कुष्ठ रोग होगा.. और वही तेरी मृत्यु का कारण बनेगा। इस घटनाक्रम को रोक सको तो रोक लो"।