
क्या है गोटमार का इतिहास
पांढुर्ना और सांवरगांव के बीच में युवक-युवती की प्रेम कहानी की याद में हर साल गोटमार मेले का आयोजन किया जाता है। ऐसी मान्यता है कि पांढुर्ना गांव का एक युवक सांवरगांव की युवती को प्रेम विवाह करने के उद्देश्य से उठा ले गया था। गांव की बेटी को वापस लाने के लिए ग्रामीणों ने दोनों गांव के बीच में पथराव कर दिया। इस पथराव में दोनों युवक-युवती की मौत हो गई। प्रेम के लिए शहीद हुए इन युवक-युवती की याद में आस्था, विश्वास और अमर प्रेम कहानी का पर्व प्रतिवर्ष पोले के दूसरे दिन मनाया जाता है। इसी परंपरा का निर्वाह करते हुए दोनों गांव के लोग आज भी जाम नदी में गोटमार (पत्थरवाजी) करते हैं। पलाश वृक्ष को काटकर जाम नदी के बीच गाड़ते है उस वृक्ष पर लाल कपड़ा, तोरण, नारियल, हार और झाड़ियां चढ़ाकर उसका पूजन किया जाता है। फिर सुरु होता है खुनी खेल- इस झंडे को दोनों ओर से चल रहे पत्थरों के बीच उखाड़ना रहता है। जिस गांव के लोग झंडा उखाड़ लेते हैं वह विजयी माने जाते हैं। नदी के बीच से झंडा उखाड़ने के बाद इसे चंडी माता के मंदिर में ले जाया जाता है।
तैयारियां शुरू
22 अगस्त को जाम नदी के तट पर भरने वाले गोटमार मेले को लेकर खिलाडिय़ों की तैयारियां शुरू हो गई है। इस मेले के लिए अभी से पत्थर दोनों ओर गलियों में इकठ्ठा होने शुरू हो चुके है। एक ओर जहां खिलाडिय़ों का उत्साह चरम पर दिखाई दे रहा है वहीं प्रशासन भी इस मेले में हिंसा को रोकने के लिए कमर कसे हुए है।
प्रशासन ने भी दस स्थानों पर नाकाबंदी कर पत्थरों के आवाजाही को रोकने के लिए सख्त कदम उठाए है।शहर की ओर आने वाले हर छोटे-बड़े मार्गों को नाके बनाकर बंद कर दिया गया है ताकि इन रास्तों से पत्थर को लाया न जा सके।मेले में शराब न बिके इसके लिए कच्ची महुआ शराब के ठिकानों पर छापामार कार्रवाई कर अवैध शराब को पकड़ा जा रहा है।
गोटमार मेले के फलस्वरूप क्षेत्र में धारा 144 लागू कर दी गई है। मेले में होने वाली पत्थरबाजी से हिंसा का होना मुख्य कारण बताया गया है। उन्होंने कहा मेले में लोग एक दूसरे को पत्थर मारकर धारा 336, 339 का उल्लंघन करते है। इस वजह से सुरक्षा की दृष्टि से यह कदम उठाया गया है। मेला शांति से सम्पन्न हो इसके लिए प्रशासन ने मेले में धारदार हथियार, गोफन, अग्नेय शास्त्रों को लेकर चलना या इसका इस्तेमाल करने वाले पर कठोर कारवाही की बात कही.
प्रशासन रहा है असमर्थ
आस्था से जुड़ा होने के कारण इसे रोक पाने में असमर्थ प्रशासन व पुलिस एक दूसरे का खून बहाते लोगों को असहाय देखते रहने के अलावा और कुछ नहीं कर पाते। निर्धारित समय अवधि में पत्थरबाजी समाप्त कराने के लिए प्रशासन और पुलिस के अधिकारियों को बल प्रयोग भी करना पड़ता है।
श्री विनोद एम. नागवंशी, इंजीनियर एवं युवा लेखक हैं।
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