
गणेशजी तथा ज्योतिष महत्व
भगवान गणेश का जन्म मां पार्वती ने अपने उबटन से किया था। मां के तन से जन्म होने के कारण इनका एक नाम तनीष भी हुआ। माता ने इन्हे अपना द्वारपाल नियुक्त किया शिवजी ने जब अंदर प्रवेश करना चाहा तो इन्होने मना कर दिया फलस्वरूप सभी देवो से युद्ध हुआ अंततः शिव ने त्रिशूल से उनका शिरौछेदन किया। जब मां पार्वती को यह मालूम पड़ा तो वे क्रुद्ध हो गई और संसार को भस्म करने के लिये उद्धत हो गई तब सभी देवताओं ने हाथी का सर लगाकर अपने आशिष द्वारा उन्हे जीवन तथा आशीर्वाद दिया।
भगवान गणेश का जन्म मां के द्वारा हुआ जन्मते ही माता पिता मॆ विरोध हुआ तथा मां के द्वारा ही नया जीवन मिला। ज्योतिष मॆ मां का ग्रह चंद्र है।
मां के कष्ट हरण करते है गणेश
जो भी इस संसार मॆ मां है। उसके कष्टों को मूल रूप से हरने के लिये गणेशजी का जन्म हुआ है। इसीलिये प्रत्येक माता अपनी सभी समस्याओं के निराकरण के लिये गणेश पूजन तथा चतुर्थी व्रत ले सकती है। इससे निश्चित रूप से उन्हे लाभ होगा।
प्रतियोगिता मॆ विजय
सभी देवताओं तथा स्वयं के भाई कार्तिकेय के साथ ब्रम्हान्ड की परिक्रमा प्रतियोगिता मॆ प्रथम आकर स्वयं की बौद्धिक कुशलता सिद्ध (देव, दानव, मानव, यक्ष, किन्नर सभी) नायक कहलाये।
राहु केतु के दोषों का शमन
जब गणेश का जन्म हुआ तब उनके साथ वैसा ही हुआ जैसा राहु केतु जन्म मॆ समय हुआ था।इसीलिये भगवान गणेश के पूजन से राहु केतु जनित कष्ट चंद्र ग्रहण आदि का दोष दूर होता है।
मानसिक रोगों का निराकरण
भगवान गणेश के बड़े पेट को देखकर चंद्रमा के हँसने के कारण चंद्रमा को कलाहीन होने का श्राप मिला तथा प्रायश्चित स्वरूप आशीर्वाद भी मिला की जो जातक गणेश चतुर्थी के दिन दिनभर व्रत रखकर शाम को सर झुकाकर चंद्र को अर्ध्य देने के पश्चात गणेश पूजन कर अपना व्रत सम्पूर्ण करेगा उसके सभी मानसिक विघ्न समाप्त होंगे।
चतुर्थी व्रत तथा चंद्रदर्शन
चतुर्थी व्रत मॆ गणेश जी का हरी दूर्वा तथा घर मॆ बनाये मोदक का भोग लगाये। किसी ब्राम्हण के बच्चे को भोजन करायें अथवा किसी बटुक जो संस्कृत विद्यालय मॆ शिक्षा ले रहे है उनकी अध्यापन सामग्री व खानपान का खर्चा यथा सम्भव दान स्वरूप करे। भाद्रपद शुक्लचतुर्थी के दिन चंद्रदर्शन नही करना चाहिये अन्य संकट चतुर्थी के दिन सर झुकाकर ही चंद्र को अर्ध्य देना चाहिये।
वंश वृद्धि
लाल किताब के अनुसार गणेश भगवान वंश की जड़ या मूल हैं। भगवान गणेश कृपा से ही आपके यहां पुत्रों का जन्म होगा तथा वंशवृद्धि होती रहेगी।
धनवृद्धि तथा गुरु ग्रह दोषों का नाश
गणेश भगवान केतु ग्रह के कारक है यह केतु ग्रह गुरु की मूलत्रिकोण राशि धनु मॆ उच्च राशि का होता है। गुरु ग्रह पाचनतंत्र पेट, संतान तथा पैतृक सम्पत्ति, विद्या, संस्कारों का कारक होता है। सारी शारीरिक, आर्थिक तथा मानसिक परेशानियों की जड़ पेट ही होता है। ज्यादा खा लिया तो दिक्कत हराम का खा लिया तो दिक्कत। भगवान गणेश के विधि विधान से पूजन द्वारा संतान विद्या, अर्थ संकट, मानसिक संकट दूर होता है तथा जीवन मॆ सफलता प्राप्त होती है।
ग्रहण तथा दुर्योग का नाश
जब पेट बीमारी का घर बनता है तो अन्य बीमारी भी आश्रय लेती है। वैध सबसे पहले नियमित खानपान तथा पेट को ठीक करने पर जोर देते हैं। यही स्थिति आर्थिक बीमारी, कर्ज इत्यादि को दूर करने के लिये है। भगवान गणेश का नित्य पूजन हवन तथा स्वयं का उत्तम खानपान तथा गुरु की सेवा और आर्थिक रूप से धन का हिस्सा प्राणीमात्र के भोजन पर खर्च करने से जातक की आर्थिक शारीरिक तथा मानसीक सभी समस्याओं का समाधान होता है।
भगवान गणेश प्रथमपूज्य है विघ्नहरने वाले है सभी प्रकार के कष्ट कम करते है इनकी पूजा नही करने से किसी भी पूजा का फल नही मिलता। उदर रोग, संतानकष्ट, माता पिता कष्ट वंशवृद्धि आर्थिक लाभ के लिये गणेश पूजन अवश्य करना चाहिये।
विशेष
सभी के इष्ट अलग होते हैं। कई लोग अपने इष्टपूजन मॆ गणेश पूजा को नज़रंदाज़ करते हैं। बाद मॆ फल न मिलने का रोना रोते है। वे लोग ध्यान दे की आपका इष्ट कोई भी हो गणेश पूजन आपकी पूजा का आधार है। वैसे भी गणेशजी महाराज मानव के शरीर मॆ स्थित सात चक्रों मॆ से सबसे पहले चक्र के स्वामी है। इसीलिये गणेश पूजन न करने की गलती सुधारे इससे आप अपनी विजय पताका फहरा पायेंगे।
प.चंद्रशेखर नेमा "हिमांशु"
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